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Question 1 of 41
1. Question
2 points
गुर्जर-प्रतिहारों की राजधानी कौन सी थी?
Correct
व्याख्या :
गुर्जर जाति का सर्वप्रथम उल्लेख चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय के एहोल अभिलेख में हुआ है
बाणभट्ट ने अपनी पुस्तक ‘हर्षचरित’ में गुर्जरों का वर्णन किया है।
चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत सी-यू-की में कु-चे लो (गुर्जर) देश का उल्लेख करता है। जिसकी राजधानी पि-लो-मो-लो ( भीनमाल) में थी।
अरबी यात्रियों ने गुर्जरों को ‘जुर्ज’ भी कहा है।
अल मसूदी प्रतिहारों को ‘अल गुर्जर’ तथा प्रतिहार राजा को ‘बोरा’ कहकर पुकारता है।
Incorrect
व्याख्या :
गुर्जर जाति का सर्वप्रथम उल्लेख चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय के एहोल अभिलेख में हुआ है
बाणभट्ट ने अपनी पुस्तक ‘हर्षचरित’ में गुर्जरों का वर्णन किया है।
चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत सी-यू-की में कु-चे लो (गुर्जर) देश का उल्लेख करता है। जिसकी राजधानी पि-लो-मो-लो ( भीनमाल) में थी।
अरबी यात्रियों ने गुर्जरों को ‘जुर्ज’ भी कहा है।
अल मसूदी प्रतिहारों को ‘अल गुर्जर’ तथा प्रतिहार राजा को ‘बोरा’ कहकर पुकारता है।
Unattempted
व्याख्या :
गुर्जर जाति का सर्वप्रथम उल्लेख चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय के एहोल अभिलेख में हुआ है
बाणभट्ट ने अपनी पुस्तक ‘हर्षचरित’ में गुर्जरों का वर्णन किया है।
चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत सी-यू-की में कु-चे लो (गुर्जर) देश का उल्लेख करता है। जिसकी राजधानी पि-लो-मो-लो ( भीनमाल) में थी।
अरबी यात्रियों ने गुर्जरों को ‘जुर्ज’ भी कहा है।
अल मसूदी प्रतिहारों को ‘अल गुर्जर’ तथा प्रतिहार राजा को ‘बोरा’ कहकर पुकारता है।
Question 2 of 41
2. Question
2 points
निम्नलिखित में से किस शासक के राज्यकाल के दौरान दिल्ली शिवालिक स्तंभ अभिलेख उत्कीर्ण कराया गया था?
Correct
दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में फ़िरोज़ तुगलक ने यहाँ लाकर स्थापित अशोक के एक स्तंभ लेख पर विग्रहराज- IV (बीसलदेव) के काल का एक और लेख उत्कीर्ण है।
यह शिलालेख 1163 ई. का है, इसे शिवालिक स्तंभ लेख भी कहते हैं।
इस शिलालेख के अनुसार बीसलदेव मुस्लिम आक्रांताओं का सफाया करने एवं आक्रांताओं को अटक नदी के पार तक सीमित रखने का निर्देश अपने उत्तराधिकारियों को देता है।
Incorrect
दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में फ़िरोज़ तुगलक ने यहाँ लाकर स्थापित अशोक के एक स्तंभ लेख पर विग्रहराज- IV (बीसलदेव) के काल का एक और लेख उत्कीर्ण है।
यह शिलालेख 1163 ई. का है, इसे शिवालिक स्तंभ लेख भी कहते हैं।
इस शिलालेख के अनुसार बीसलदेव मुस्लिम आक्रांताओं का सफाया करने एवं आक्रांताओं को अटक नदी के पार तक सीमित रखने का निर्देश अपने उत्तराधिकारियों को देता है।
Unattempted
दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में फ़िरोज़ तुगलक ने यहाँ लाकर स्थापित अशोक के एक स्तंभ लेख पर विग्रहराज- IV (बीसलदेव) के काल का एक और लेख उत्कीर्ण है।
यह शिलालेख 1163 ई. का है, इसे शिवालिक स्तंभ लेख भी कहते हैं।
इस शिलालेख के अनुसार बीसलदेव मुस्लिम आक्रांताओं का सफाया करने एवं आक्रांताओं को अटक नदी के पार तक सीमित रखने का निर्देश अपने उत्तराधिकारियों को देता है।
Question 3 of 41
3. Question
2 points
किस राजपूत शासक को राजपूताना का कर्ण’ कहा जाता है?
Correct
व्याख्या :
बीकानेर का शासक रायसिंह ने अपने राज्य में 1578 ई. में पड़े व्यापक दुर्भिक्ष के समय राज्य की ओर से तेरह महीने प्रजा व पशुओं के लिए अन्न-जल की व्यवस्था की गई।
ख्यात लेखकों द्वारा उसकी दानशीलता की प्रशंसा की गई है।
मुंशी देवीप्रसाद ने रायसिंह को ‘राजपूताने का कर्ण’ कहा है।
रायसिंह ने बीकानेर के जूनागढ़ किले का निर्माण करवाया (1589 से 1594 के मध्य), एवं रायसिंह महोत्सव’ नामक वैद्यक व ज्योतिष रत्नमाला’ नामक ज्योतिष ग्रंथ की टीका लिखी थी।
Incorrect
व्याख्या :
बीकानेर का शासक रायसिंह ने अपने राज्य में 1578 ई. में पड़े व्यापक दुर्भिक्ष के समय राज्य की ओर से तेरह महीने प्रजा व पशुओं के लिए अन्न-जल की व्यवस्था की गई।
ख्यात लेखकों द्वारा उसकी दानशीलता की प्रशंसा की गई है।
मुंशी देवीप्रसाद ने रायसिंह को ‘राजपूताने का कर्ण’ कहा है।
रायसिंह ने बीकानेर के जूनागढ़ किले का निर्माण करवाया (1589 से 1594 के मध्य), एवं रायसिंह महोत्सव’ नामक वैद्यक व ज्योतिष रत्नमाला’ नामक ज्योतिष ग्रंथ की टीका लिखी थी।
Unattempted
व्याख्या :
बीकानेर का शासक रायसिंह ने अपने राज्य में 1578 ई. में पड़े व्यापक दुर्भिक्ष के समय राज्य की ओर से तेरह महीने प्रजा व पशुओं के लिए अन्न-जल की व्यवस्था की गई।
ख्यात लेखकों द्वारा उसकी दानशीलता की प्रशंसा की गई है।
मुंशी देवीप्रसाद ने रायसिंह को ‘राजपूताने का कर्ण’ कहा है।
रायसिंह ने बीकानेर के जूनागढ़ किले का निर्माण करवाया (1589 से 1594 के मध्य), एवं रायसिंह महोत्सव’ नामक वैद्यक व ज्योतिष रत्नमाला’ नामक ज्योतिष ग्रंथ की टीका लिखी थी।
Question 4 of 41
4. Question
2 points
राणा साँगा और बाबर के बीच ऐतिहासिक युद्ध कहाँ लड़ा गया? .
Correct
व्याख्या :
खानवा का युद्ध 17 मार्च 1527 ई. को महाराणा सांगा एवं बाबर के मध्य बयाना के पास (वर्तमान में रुपवास में) हुआ था।
Incorrect
व्याख्या :
खानवा का युद्ध 17 मार्च 1527 ई. को महाराणा सांगा एवं बाबर के मध्य बयाना के पास (वर्तमान में रुपवास में) हुआ था।
Unattempted
व्याख्या :
खानवा का युद्ध 17 मार्च 1527 ई. को महाराणा सांगा एवं बाबर के मध्य बयाना के पास (वर्तमान में रुपवास में) हुआ था।
Question 5 of 41
5. Question
2 points
राजस्थान के इतिहास में पट्टा रेख’ से क्या अभिप्राय है ?
Correct
व्याख्या :
रेख – मुगल राजस्व व्यवस्था की भाँति राजपूत शासकों द्वारा सामंतों की जागीर की उपज का वार्षिक अनुमान निर्धारित किया गया, उसे रेख कहा जाता था।
पट्टा रेख – जागीर की अनुमानित वार्षिक आय, जिसका शासक द्वारा प्रदान किये गये जागीर पट्टे में उल्लेख किया जाता था।
भरतु रेख – वह रकम जो जागीरदार ‘पट्टा रेख’ के आधार पर राज्य के खजाने में जमा करवाता था।
Incorrect
व्याख्या :
रेख – मुगल राजस्व व्यवस्था की भाँति राजपूत शासकों द्वारा सामंतों की जागीर की उपज का वार्षिक अनुमान निर्धारित किया गया, उसे रेख कहा जाता था।
पट्टा रेख – जागीर की अनुमानित वार्षिक आय, जिसका शासक द्वारा प्रदान किये गये जागीर पट्टे में उल्लेख किया जाता था।
भरतु रेख – वह रकम जो जागीरदार ‘पट्टा रेख’ के आधार पर राज्य के खजाने में जमा करवाता था।
Unattempted
व्याख्या :
रेख – मुगल राजस्व व्यवस्था की भाँति राजपूत शासकों द्वारा सामंतों की जागीर की उपज का वार्षिक अनुमान निर्धारित किया गया, उसे रेख कहा जाता था।
पट्टा रेख – जागीर की अनुमानित वार्षिक आय, जिसका शासक द्वारा प्रदान किये गये जागीर पट्टे में उल्लेख किया जाता था।
भरतु रेख – वह रकम जो जागीरदार ‘पट्टा रेख’ के आधार पर राज्य के खजाने में जमा करवाता था।
Question 6 of 41
6. Question
2 points
मुगल सम्राट अकबर द्वारा जिस सन्त को फतेहपुर सीकरी आमंत्रित किया गया था. वह था
Correct
व्याख्या:
मुगल सम्राट अकबर द्वारा सन्त दादु को फतेहपुर सीकरी आमंत्रित किया गया था
1585 ई. में फतेहपुर सीकरी की यात्रा के दौरान संत दादु ने मुगल सम्राट अकबर से भेंट कर उसे अपने विचारों से प्रभावित किया।
दादु दयाल आमेर के शासक राजा मानसिंह के समकालीन थे। इनकी प्रमुख गद्दी नरैना (जयपुर) में है। इन्हें ‘राजस्थान का कबीर’ भी कहा जाता है।।
खालसा, विरक्त, नागा, खाकी, उत्तरादे व स्थानधारी दादू पंथ की शाखाएँ हैं।
दादू जी के 52 शिष्य थे, जो 52 स्तम्भ कहलाते है।
दादू पंथी सम्प्रदाय के सत्संग स्थल ‘अलख-दरीवा’ कहलाते है।
दादू के शिष्य रज्जब जी आजीवन दूल्हे के वेश में रहे।
अफीम से संबंधित रॉयल कमीशन निम्न में से किस वर्ष में राजस्थान आया था?
Correct
व्याख्या :
अफ़ीम का भारत (राजस्थान-मालवा क्षेत्र) में उत्पादन करके इसे चीन निर्यात किया जाता था।
अफ़ीम के भारत तथा चीन पर पड़ रहे दुष्प्रभावों के कारण राष्ट्रवादी नेता, ईसाई मिशनरी इत्यादि अफ़ीम उत्पादन का विरोध कर रहे थे।
कमीशन की नियुक्ति अफ़ीम खेती की लाभ-हानि जाँचने के लिए की गई थी।
1893 में गवर्नर जनरल लार्ड एमहर्ट ने अफ़ीम रॉयल कमीशन की स्थापना की तथा इसी वर्ष यह राजस्थान आया।
थॉमस ब्रासे अफ़ीम रॉयल कमीशन (नौ सदस्य कमीशन) के अध्यक्ष थे।
इस कमीशन में दो भारतीय लक्ष्मेश्वर सिंह (दरभंगा के महाराजा) तथा जूनागढ़ दीवान हरिदास विहारीदास देसाई भी थे।
कमीशन की संस्तुति में अफ़ीम की खेती को लाभदायक माना गया तथा अफ़ीम की खेती बंद होने की स्थिति में सरकार, किसानों एवं व्यापारियों को आर्थिक हानि होना बताया गया।
Incorrect
व्याख्या :
अफ़ीम का भारत (राजस्थान-मालवा क्षेत्र) में उत्पादन करके इसे चीन निर्यात किया जाता था।
अफ़ीम के भारत तथा चीन पर पड़ रहे दुष्प्रभावों के कारण राष्ट्रवादी नेता, ईसाई मिशनरी इत्यादि अफ़ीम उत्पादन का विरोध कर रहे थे।
कमीशन की नियुक्ति अफ़ीम खेती की लाभ-हानि जाँचने के लिए की गई थी।
1893 में गवर्नर जनरल लार्ड एमहर्ट ने अफ़ीम रॉयल कमीशन की स्थापना की तथा इसी वर्ष यह राजस्थान आया।
थॉमस ब्रासे अफ़ीम रॉयल कमीशन (नौ सदस्य कमीशन) के अध्यक्ष थे।
इस कमीशन में दो भारतीय लक्ष्मेश्वर सिंह (दरभंगा के महाराजा) तथा जूनागढ़ दीवान हरिदास विहारीदास देसाई भी थे।
कमीशन की संस्तुति में अफ़ीम की खेती को लाभदायक माना गया तथा अफ़ीम की खेती बंद होने की स्थिति में सरकार, किसानों एवं व्यापारियों को आर्थिक हानि होना बताया गया।
Unattempted
व्याख्या :
अफ़ीम का भारत (राजस्थान-मालवा क्षेत्र) में उत्पादन करके इसे चीन निर्यात किया जाता था।
अफ़ीम के भारत तथा चीन पर पड़ रहे दुष्प्रभावों के कारण राष्ट्रवादी नेता, ईसाई मिशनरी इत्यादि अफ़ीम उत्पादन का विरोध कर रहे थे।
कमीशन की नियुक्ति अफ़ीम खेती की लाभ-हानि जाँचने के लिए की गई थी।
1893 में गवर्नर जनरल लार्ड एमहर्ट ने अफ़ीम रॉयल कमीशन की स्थापना की तथा इसी वर्ष यह राजस्थान आया।
थॉमस ब्रासे अफ़ीम रॉयल कमीशन (नौ सदस्य कमीशन) के अध्यक्ष थे।
इस कमीशन में दो भारतीय लक्ष्मेश्वर सिंह (दरभंगा के महाराजा) तथा जूनागढ़ दीवान हरिदास विहारीदास देसाई भी थे।
कमीशन की संस्तुति में अफ़ीम की खेती को लाभदायक माना गया तथा अफ़ीम की खेती बंद होने की स्थिति में सरकार, किसानों एवं व्यापारियों को आर्थिक हानि होना बताया गया।
Question 8 of 41
8. Question
2 points
1857 में कोटा में विद्रोह का नेता कौन था?
Correct
व्याख्या :
कोटा की क्रांति राजस्थान में हुए 1857 के विद्रोह में सर्वाधिक महत्वपूर्ण थी।
मेजर बर्टन 12 अक्टूबर 1857 को वापस कोटा लौटा।
कोटा महाराव ने बर्टन का स्वागत विजयी सेनानायक की भांति किया।
मेजर बर्टन ने कोटा नरेश रामसिंह को गुप्त परामर्श दिया कि वह उन सैनिक अधिकारियों को बर्खास्त कर दे जिनमें ब्रिटिश विद्रोही भावनाएं हैं।
15 अक्टूबर 1857 से कोटा में आरंभ हुई क्रांति का नेतृत्व जयदयाल व मेहराब खाँ ने किया था।
कोटा के पॉलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन की हत्या कर विद्रोहियों ने उसका कटा सिर पूरे शहर में घुमाया गया तथा तत्कालीन कोटा महाराव रामसिंह को उनके महल में नजरबंद कर दिया।
Incorrect
व्याख्या :
कोटा की क्रांति राजस्थान में हुए 1857 के विद्रोह में सर्वाधिक महत्वपूर्ण थी।
मेजर बर्टन 12 अक्टूबर 1857 को वापस कोटा लौटा।
कोटा महाराव ने बर्टन का स्वागत विजयी सेनानायक की भांति किया।
मेजर बर्टन ने कोटा नरेश रामसिंह को गुप्त परामर्श दिया कि वह उन सैनिक अधिकारियों को बर्खास्त कर दे जिनमें ब्रिटिश विद्रोही भावनाएं हैं।
15 अक्टूबर 1857 से कोटा में आरंभ हुई क्रांति का नेतृत्व जयदयाल व मेहराब खाँ ने किया था।
कोटा के पॉलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन की हत्या कर विद्रोहियों ने उसका कटा सिर पूरे शहर में घुमाया गया तथा तत्कालीन कोटा महाराव रामसिंह को उनके महल में नजरबंद कर दिया।
Unattempted
व्याख्या :
कोटा की क्रांति राजस्थान में हुए 1857 के विद्रोह में सर्वाधिक महत्वपूर्ण थी।
मेजर बर्टन 12 अक्टूबर 1857 को वापस कोटा लौटा।
कोटा महाराव ने बर्टन का स्वागत विजयी सेनानायक की भांति किया।
मेजर बर्टन ने कोटा नरेश रामसिंह को गुप्त परामर्श दिया कि वह उन सैनिक अधिकारियों को बर्खास्त कर दे जिनमें ब्रिटिश विद्रोही भावनाएं हैं।
15 अक्टूबर 1857 से कोटा में आरंभ हुई क्रांति का नेतृत्व जयदयाल व मेहराब खाँ ने किया था।
कोटा के पॉलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन की हत्या कर विद्रोहियों ने उसका कटा सिर पूरे शहर में घुमाया गया तथा तत्कालीन कोटा महाराव रामसिंह को उनके महल में नजरबंद कर दिया।
Question 9 of 41
9. Question
2 points
उदयपुर में हिन्दी विद्यापीठ’ की स्थापना किसने की?
Correct
व्याख्या :
राजस्थान हिन्दी विद्यापीठ, उदयपुर की स्थापना सन् 1937 में श्री जनार्दन राय नागर ने की थी।
इसका प्रमुख उद्देश्य हिन्दी भाषा के माध्यम से विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करना था।
Incorrect
व्याख्या :
राजस्थान हिन्दी विद्यापीठ, उदयपुर की स्थापना सन् 1937 में श्री जनार्दन राय नागर ने की थी।
इसका प्रमुख उद्देश्य हिन्दी भाषा के माध्यम से विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करना था।
Unattempted
व्याख्या :
राजस्थान हिन्दी विद्यापीठ, उदयपुर की स्थापना सन् 1937 में श्री जनार्दन राय नागर ने की थी।
इसका प्रमुख उद्देश्य हिन्दी भाषा के माध्यम से विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करना था।
Question 10 of 41
10. Question
2 points
पोपाबाई की पोल’ नामक पुस्तिका की रचना की गई थी
Correct
व्याख्या :
जयनारायण व्यास द्वारा रचित ‘पोपाबाई की पोल’ व ‘मारवाड़ की अवस्था’ नामक पुस्तिकाएँ जोधपुर के महाराजा उम्मेदसिंह के अनुभवहीन शासन के विरुद्ध लिखी गई थी।
जयनारायण व्यास मारवाड़ यूथ लीग के संस्थापक थे।
मारवाड़ यूथ लीग की स्थापना 10 मई 1931 की थी। इसके मंत्री भानमल जैन थे
Incorrect
व्याख्या :
जयनारायण व्यास द्वारा रचित ‘पोपाबाई की पोल’ व ‘मारवाड़ की अवस्था’ नामक पुस्तिकाएँ जोधपुर के महाराजा उम्मेदसिंह के अनुभवहीन शासन के विरुद्ध लिखी गई थी।
जयनारायण व्यास मारवाड़ यूथ लीग के संस्थापक थे।
मारवाड़ यूथ लीग की स्थापना 10 मई 1931 की थी। इसके मंत्री भानमल जैन थे
Unattempted
व्याख्या :
जयनारायण व्यास द्वारा रचित ‘पोपाबाई की पोल’ व ‘मारवाड़ की अवस्था’ नामक पुस्तिकाएँ जोधपुर के महाराजा उम्मेदसिंह के अनुभवहीन शासन के विरुद्ध लिखी गई थी।
जयनारायण व्यास मारवाड़ यूथ लीग के संस्थापक थे।
मारवाड़ यूथ लीग की स्थापना 10 मई 1931 की थी। इसके मंत्री भानमल जैन थे
Question 11 of 41
11. Question
2 points
सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिए और सूचियों के नीचे दिए गए कूटों की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिए
आन्दोलन/घटनाएँ) (आन्दोलन/घटनाओं के प्रारम्भ होने का वर्ष)
सूची-I सूची-II
(1) बिजोलिया (a) 1942
(II) सीकर (b) 1947
(III) डाबड़ा (c) 1922
(IV) चण्डावल (d) 1897
Correct
व्याख्या :
चण्डावल तथा डाबरा दोनों मारवाड रियासत के किसान आंदोलन से संबंधित हैं ।
28 मार्च 1942 को चण्डावल (सोजत ठिकाना) में जागीरदारी अत्याचार के विरोध में उत्तरदायी शासक दिवस मनाने का निर्णय किया।
चण्डावल में साजता ने परिषद के कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट करवाई। इसकी सर्वत्र आलोचना हुई।
चण्डावल 1942 में घटित हुई थी
Incorrect
व्याख्या :
चण्डावल तथा डाबरा दोनों मारवाड रियासत के किसान आंदोलन से संबंधित हैं ।
28 मार्च 1942 को चण्डावल (सोजत ठिकाना) में जागीरदारी अत्याचार के विरोध में उत्तरदायी शासक दिवस मनाने का निर्णय किया।
चण्डावल में साजता ने परिषद के कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट करवाई। इसकी सर्वत्र आलोचना हुई।
चण्डावल 1942 में घटित हुई थी
Unattempted
व्याख्या :
चण्डावल तथा डाबरा दोनों मारवाड रियासत के किसान आंदोलन से संबंधित हैं ।
28 मार्च 1942 को चण्डावल (सोजत ठिकाना) में जागीरदारी अत्याचार के विरोध में उत्तरदायी शासक दिवस मनाने का निर्णय किया।
चण्डावल में साजता ने परिषद के कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट करवाई। इसकी सर्वत्र आलोचना हुई।
चण्डावल 1942 में घटित हुई थी
Question 12 of 41
12. Question
2 points
निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए तथा नीचे दिए गए कूटों की सहायता से सही उत्तर का चुनाव कीजिए
प्रदेश पर्वत चोटी
A उत्तरी अरावली 1. ऋषिकेश
B मध्य अरावली 2 तारागढ़
C दक्षिण अरावली 3.भानगढ़
Correct
व्याख्या :
राजस्थान के मध्य में स्थित पर्वत अरावली है। अरावली विश्व की प्राचीनतम वलित पर्वतमाला’ है।
वर्तमान में अवशिष्ट पर्वत के रूप में है।
अरावली की उत्पत्ति प्री. कैम्ब्रीयन युग में हुई।
अरावली की समुद्र तल से औसत उँचाई 930 मीटर, अरावली की तुलना अमेरिका के अप्लेशियन पर्वत से की गई है।
अरावली की कुल लम्बाई 692 किमी. (पालनपुर [गुजरात] से रायसीना हिल्स [दिल्ली] तक)
अरावली की राजस्थान में लम्बाई 550 किमी. (80%) खेड़ब्रह्मा (सिरोही) से खेतडी (झंझा ऊँचाई के आधार पर)
बनास रामेश्वरम (सवाई माधोपुर) में जाकर चम्बल में मिल जाती है।
बनास सर्वाधिक जलग्रहण क्षेत्र वाली नदी है।
पूर्णतः राजस्थान में प्रवाहित होने वाली सबसे लंबी नदी बनास है। (512 किमी.)
बनास, चम्बल की सबसे लंबी सहायक नदी है।
सर्वाधिक त्रिवेणी संगम वाली नदी बनास है।
गिलूण्ड सभ्यता (राजसमंद में) बनास नदी के किनारे है।
बनास नदी पर राजसमंद में नन्दसमंद बाँध, टोंक में बीसलपुर बाँध तथा सवाई माधोपुर में ईसरदा बाँध बना है। बनास नदी को वर्णाशा/वन की आशा कहा जाता है।
बनास की सहायक नदियाँ-बेड़च, मेनाल, कोठारी, खारी, डाई, सहोदरा, मानसी, बांडी, मोरेल (ढूंढ), ढील, कालीसिल इत्यादि।
विशेष-पार्वती नदी, चम्बल की सहायक नदी है।
Question 14 of 41
14. Question
2 points
कोपेन के वर्गीकरण के अनुसार गंगानगर, हनुमानगढ़ और बीकानेर में किस प्रकार की जलवायु मिलती है
Correct
**** डाॅ. ब्लादिमीर कोपेन-
डाॅ. ब्लादिमीर कोपेन जर्मनी के प्रसिद्ध भूगोल वेता है।
डाॅ. ब्लादिमीर कोपेन ने सन् 1918 में वनस्पति के आधार पर राजस्थान की जलवायु को चार भागों में बाटा है।
इस वर्गीकरण के लिए डाॅ. ब्लादिमीर कोपेन ने राजस्थान की वर्षा तथा तापमान को महत्व दिया है।
डाॅ. ब्लादिमीर कोपेन ने राजस्थान की जलवायु को चार सांकेतिक शब्दों में वर्णीत किया है जैसे-
Bwhw जलवायु प्रदेश
Bshw जलवायु प्रदेश
Cwg जलवायु प्रदेश
Aw जलवायु प्रदेश
Bwhw जलवायु प्रदेश-
Bwhw का पूरा नाम- शुष्क मरुस्थलीय जलवायु प्रदेश
Bwhw जलवायु प्रदेश में राजस्थान के श्री गंगानगर, हनुमानगढ़, जैसलमेर, बीकानेर तथा उत्तरी-पश्चिमी जोधपुर का हिस्सा आता है।
Bwhw जलवायु प्रदेश का राजस्थान में प्रतिनिधित्व वाला जिला बीकानेर है।
Bwhw जलवायु प्रदेश की विशेष दिशा या विस्तार उत्तरी राजस्थान में है।
Bwhw जलवायु प्रदेश में वार्षिक वर्षा का औसत 10 से 20 सेंटीमीटर है।
Bwhw जलवायु प्रदेश का औसत तापमान 35℃ रहता है।
Incorrect
**** डाॅ. ब्लादिमीर कोपेन-
डाॅ. ब्लादिमीर कोपेन जर्मनी के प्रसिद्ध भूगोल वेता है।
डाॅ. ब्लादिमीर कोपेन ने सन् 1918 में वनस्पति के आधार पर राजस्थान की जलवायु को चार भागों में बाटा है।
इस वर्गीकरण के लिए डाॅ. ब्लादिमीर कोपेन ने राजस्थान की वर्षा तथा तापमान को महत्व दिया है।
डाॅ. ब्लादिमीर कोपेन ने राजस्थान की जलवायु को चार सांकेतिक शब्दों में वर्णीत किया है जैसे-
Bwhw जलवायु प्रदेश
Bshw जलवायु प्रदेश
Cwg जलवायु प्रदेश
Aw जलवायु प्रदेश
Bwhw जलवायु प्रदेश-
Bwhw का पूरा नाम- शुष्क मरुस्थलीय जलवायु प्रदेश
Bwhw जलवायु प्रदेश में राजस्थान के श्री गंगानगर, हनुमानगढ़, जैसलमेर, बीकानेर तथा उत्तरी-पश्चिमी जोधपुर का हिस्सा आता है।
Bwhw जलवायु प्रदेश का राजस्थान में प्रतिनिधित्व वाला जिला बीकानेर है।
Bwhw जलवायु प्रदेश की विशेष दिशा या विस्तार उत्तरी राजस्थान में है।
Bwhw जलवायु प्रदेश में वार्षिक वर्षा का औसत 10 से 20 सेंटीमीटर है।
Bwhw जलवायु प्रदेश का औसत तापमान 35℃ रहता है।
Unattempted
**** डाॅ. ब्लादिमीर कोपेन-
डाॅ. ब्लादिमीर कोपेन जर्मनी के प्रसिद्ध भूगोल वेता है।
डाॅ. ब्लादिमीर कोपेन ने सन् 1918 में वनस्पति के आधार पर राजस्थान की जलवायु को चार भागों में बाटा है।
इस वर्गीकरण के लिए डाॅ. ब्लादिमीर कोपेन ने राजस्थान की वर्षा तथा तापमान को महत्व दिया है।
डाॅ. ब्लादिमीर कोपेन ने राजस्थान की जलवायु को चार सांकेतिक शब्दों में वर्णीत किया है जैसे-
Bwhw जलवायु प्रदेश
Bshw जलवायु प्रदेश
Cwg जलवायु प्रदेश
Aw जलवायु प्रदेश
Bwhw जलवायु प्रदेश-
Bwhw का पूरा नाम- शुष्क मरुस्थलीय जलवायु प्रदेश
Bwhw जलवायु प्रदेश में राजस्थान के श्री गंगानगर, हनुमानगढ़, जैसलमेर, बीकानेर तथा उत्तरी-पश्चिमी जोधपुर का हिस्सा आता है।
Bwhw जलवायु प्रदेश का राजस्थान में प्रतिनिधित्व वाला जिला बीकानेर है।
Bwhw जलवायु प्रदेश की विशेष दिशा या विस्तार उत्तरी राजस्थान में है।
Bwhw जलवायु प्रदेश में वार्षिक वर्षा का औसत 10 से 20 सेंटीमीटर है।
Bwhw जलवायु प्रदेश का औसत तापमान 35℃ रहता है।
Question 15 of 41
15. Question
2 points
राजस्थान का मरुस्थल विश्व के इन्हीं अक्षांशों में स्थित अन्य मरुस्थलों से सर्वथा भिन्न है। यहाँ मरुस्थलीकरण प्रक्रिया के सम्बन्ध में क्या अवधारणा सटीक है?
Correct
व्याख्या :
राजस्थान का मरुस्थल (थार का मरुस्थल) इन्हीं अक्षांशों में स्थित अन्य मरुस्थलों से भिन्न है क्योंकि यहाँ कि मरुस्थलीय प्रक्रिया के संबंध में निम्न अवधारणा सटीक है
(1) यह सूखे के कारण प्रारम्भ होती है यह गलत अवधारणा है। सूखे से मात्र भूमि प्रबंधन के असंगत हानिकारक प्रभावों को बढ़ावा मिलता है।
(2) मरुस्थल हृदय स्थल से प्रारम्भ होकर पुनः प्रसारित होता है, वास्तव में ऐसी नहीं है भूमि या मृदा विनाश कही से भी उसके अत्यधिक विदोहन के स्थान से प्रारम्भ हो सकता है।
(3) मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया अतिचारण, अति वनदोहन (वनोन्मूलन) , अतिहलन, अनुचित मृदा एवं जल प्रबंधन और भूमि प्रदूषण द्वारा प्रारम्भ एवं प्रोत्साहित होती है।
Incorrect
व्याख्या :
राजस्थान का मरुस्थल (थार का मरुस्थल) इन्हीं अक्षांशों में स्थित अन्य मरुस्थलों से भिन्न है क्योंकि यहाँ कि मरुस्थलीय प्रक्रिया के संबंध में निम्न अवधारणा सटीक है
(1) यह सूखे के कारण प्रारम्भ होती है यह गलत अवधारणा है। सूखे से मात्र भूमि प्रबंधन के असंगत हानिकारक प्रभावों को बढ़ावा मिलता है।
(2) मरुस्थल हृदय स्थल से प्रारम्भ होकर पुनः प्रसारित होता है, वास्तव में ऐसी नहीं है भूमि या मृदा विनाश कही से भी उसके अत्यधिक विदोहन के स्थान से प्रारम्भ हो सकता है।
(3) मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया अतिचारण, अति वनदोहन (वनोन्मूलन) , अतिहलन, अनुचित मृदा एवं जल प्रबंधन और भूमि प्रदूषण द्वारा प्रारम्भ एवं प्रोत्साहित होती है।
Unattempted
व्याख्या :
राजस्थान का मरुस्थल (थार का मरुस्थल) इन्हीं अक्षांशों में स्थित अन्य मरुस्थलों से भिन्न है क्योंकि यहाँ कि मरुस्थलीय प्रक्रिया के संबंध में निम्न अवधारणा सटीक है
(1) यह सूखे के कारण प्रारम्भ होती है यह गलत अवधारणा है। सूखे से मात्र भूमि प्रबंधन के असंगत हानिकारक प्रभावों को बढ़ावा मिलता है।
(2) मरुस्थल हृदय स्थल से प्रारम्भ होकर पुनः प्रसारित होता है, वास्तव में ऐसी नहीं है भूमि या मृदा विनाश कही से भी उसके अत्यधिक विदोहन के स्थान से प्रारम्भ हो सकता है।
(3) मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया अतिचारण, अति वनदोहन (वनोन्मूलन) , अतिहलन, अनुचित मृदा एवं जल प्रबंधन और भूमि प्रदूषण द्वारा प्रारम्भ एवं प्रोत्साहित होती है।
Question 16 of 41
16. Question
2 points
निम्न में से राजस्थान में किस श्रेणी के वनों का सर्वाधिक क्षेत्र है ?
Correct
व्याख्या :
प्रशासनिक दृष्टि से वनों को 3 भागों में बांटा जाता है :
राजस्थान की वनस्पति के वनो को तीन भागो में बांटा गया है।
आरक्षित वन– वृक्षों की कटाई व पशुओं की चराई वर्जित होती है। सर्वाधिक – उदयपुर
रक्षित वन– वृक्षों की कटाई वर्जित परन्तु वनपाल की आज्ञा से पशु चराई संभव। सर्वाधिक – बारां
अवर्गीकृत वन(Unclassified) – पशु चराना व पेड़ काटना संभव।
क्र. सं.
कानूनी स्थिति
क्षेत्रफल (वर्ग Km)
प्रतिशत
1.
आरक्षित वन
12352.75
37.63%
2.
सुरक्षित वन
18058.37
56.08%
3.
अवर्गीकृत वन
2066.73
6.29%
Incorrect
व्याख्या :
प्रशासनिक दृष्टि से वनों को 3 भागों में बांटा जाता है :
राजस्थान की वनस्पति के वनो को तीन भागो में बांटा गया है।
आरक्षित वन– वृक्षों की कटाई व पशुओं की चराई वर्जित होती है। सर्वाधिक – उदयपुर
रक्षित वन– वृक्षों की कटाई वर्जित परन्तु वनपाल की आज्ञा से पशु चराई संभव। सर्वाधिक – बारां
अवर्गीकृत वन(Unclassified) – पशु चराना व पेड़ काटना संभव।
क्र. सं.
कानूनी स्थिति
क्षेत्रफल (वर्ग Km)
प्रतिशत
1.
आरक्षित वन
12352.75
37.63%
2.
सुरक्षित वन
18058.37
56.08%
3.
अवर्गीकृत वन
2066.73
6.29%
Unattempted
व्याख्या :
प्रशासनिक दृष्टि से वनों को 3 भागों में बांटा जाता है :
राजस्थान की वनस्पति के वनो को तीन भागो में बांटा गया है।
आरक्षित वन– वृक्षों की कटाई व पशुओं की चराई वर्जित होती है। सर्वाधिक – उदयपुर
रक्षित वन– वृक्षों की कटाई वर्जित परन्तु वनपाल की आज्ञा से पशु चराई संभव। सर्वाधिक – बारां
अवर्गीकृत वन(Unclassified) – पशु चराना व पेड़ काटना संभव।
क्र. सं.
कानूनी स्थिति
क्षेत्रफल (वर्ग Km)
प्रतिशत
1.
आरक्षित वन
12352.75
37.63%
2.
सुरक्षित वन
18058.37
56.08%
3.
अवर्गीकृत वन
2066.73
6.29%
Question 17 of 41
17. Question
2 points
राजस्थान में पूगल’ नस्ल है
Correct
व्याख्या भेड़-
देश में भेड़ों की संख्या के आधार पर राज्य का तीसरा स्थान है सर्वाधिक भेड़ें बाड़मेर में और न्यूनतम बांसवाड़ा में पाई जाती हैं
भेड़ों की नस्लें
चोकला भेड़ – झुंझुनू ,सीकर ,चूरू, बीकानेर व जयपुर जिले में यह पाई जाती है ।इससे छापर एवं शेखावाटी के नाम से भी जाना जाता है। इसे भारत की मेरिनो कहा जाता है ।इससे प्राप्त हुई फाइन मध्यम किस्म का है।
मालपुरी भेड़ – यह जयपुर, टोंक, सवाई माधोपुर ,बूंदी ,अजमेर ,भीलवाड़ा में पाई जाती है ।उन मोटी होने के कारण गलीचे के लिए उपयुक्त है। इसे देसी नस्ल भी कहा जाता है।
सोनाड़ी भेड़ – उदयपुर, डूंगरपुर, चित्तौड़गढ़ ,बांसवाड़ा भीलवाड़ा में पाई जाती है ।इसका उपनाम – चनोथर भी है है।
पूगल भेड़ – बीकानेर के पश्चिमी भाग व जैसलमेर ,नागौर में पाई जाती है।
मगरा भेड़ – इसे बीकानेरी चोकला भी कहा जाता है ।यह बीकानेर जैसलमेर और नागौर जिले में पाई जाती है।
नाली भेड़ – यह गंगानगर झुंझुनू सीकर बीकानेर चूरू में पाई जाती है ।इसकी ऊन घने व लंबे रेशे वाली होती है।
मारवाड़ी भेड़ – जोधपुर बाड़मेर नागौर पाली सिरोही में पाई जाती है।
जैसलमेरी भेड़ – यह जैसलमेर जोधपुर बाड़मेर में पश्चिमी भाग में पाई जाती है। सर्वाधिक ऊन इस नस्ल की भेड़ों से प्राप्त होती है।
भेड़ों की विदेशी नस्लें
रूसी मैरिनो भेड़ – टोंक, सीकर, जयपुर में बहुतायत में पायी जाती है।
रेडबुल भेड़ – टोंक
कोरिडेल भेड़ – टोंक में बहुतायत में पायी जाती है।
डोर्सेट भेड़ – चित्तौड़गढ़ में बहुतायत में पायी जाती है।
******** : राजस्थान में 19वीं पशुगणना के मुकाबले 20वीं पशुगणना में भेड़ों की संख्या में 12.95% की कमी आई। भेड़ों के मामले में राजस्थान, भारत में चौथा स्थान (10.64% भारत का) रखता है। सर्वाधिक भेड़ें बाड़मेर जिले में। भेड़ों की नस्लें:-• चोकला (छापर)-शेखावटी क्षेत्र (सीकर, चुरू, झुंझुनूं) में, सर्वोत्तम किस्म की ऊन देती है। अतः इसे भारतीय मेरिनो कहा जाता है।
सोनाड़ी (चनोथर)–दक्षिणी राजस्थान के डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, चित्तौड़ में।
पूगल-बीकानेर, जैसलमेर में।
नाली-गंगानगर, हनुमानगढ़ में (उत्तरी राजस्थान में)।
बागड़ी-अलवर, भरतपुर (पूर्वी राजस्थान में)।
जैसलमेरी-जैसलमेर, जोधपुर, बाड़मेर। प्रति भेड़ सर्वाधिक ऊन देती है।
मगरा-बीकानेर, नागौर। • मालपुरी-मालपुरा (टोंक) देशी नस्ल। .मारवाड़ी-जोधपुर व आसपास के क्षेत्र में। इसी नस्ल की भेड़ें सर्वाधिक पाई जाती है। इस नस्ल की रोग-प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है।
खेरी-राजसमंद, पाली, अजमेर, नागौर। भेड़ों की विदेशी नस्लें-रूसी मेरिनो (शेखावटी क्षेत्र), डोर्सेट, रेम्बुल (टोंक में), कोरिडेल (चित्ताई में)।
Incorrect
व्याख्या भेड़-
देश में भेड़ों की संख्या के आधार पर राज्य का तीसरा स्थान है सर्वाधिक भेड़ें बाड़मेर में और न्यूनतम बांसवाड़ा में पाई जाती हैं
भेड़ों की नस्लें
चोकला भेड़ – झुंझुनू ,सीकर ,चूरू, बीकानेर व जयपुर जिले में यह पाई जाती है ।इससे छापर एवं शेखावाटी के नाम से भी जाना जाता है। इसे भारत की मेरिनो कहा जाता है ।इससे प्राप्त हुई फाइन मध्यम किस्म का है।
मालपुरी भेड़ – यह जयपुर, टोंक, सवाई माधोपुर ,बूंदी ,अजमेर ,भीलवाड़ा में पाई जाती है ।उन मोटी होने के कारण गलीचे के लिए उपयुक्त है। इसे देसी नस्ल भी कहा जाता है।
सोनाड़ी भेड़ – उदयपुर, डूंगरपुर, चित्तौड़गढ़ ,बांसवाड़ा भीलवाड़ा में पाई जाती है ।इसका उपनाम – चनोथर भी है है।
पूगल भेड़ – बीकानेर के पश्चिमी भाग व जैसलमेर ,नागौर में पाई जाती है।
मगरा भेड़ – इसे बीकानेरी चोकला भी कहा जाता है ।यह बीकानेर जैसलमेर और नागौर जिले में पाई जाती है।
नाली भेड़ – यह गंगानगर झुंझुनू सीकर बीकानेर चूरू में पाई जाती है ।इसकी ऊन घने व लंबे रेशे वाली होती है।
मारवाड़ी भेड़ – जोधपुर बाड़मेर नागौर पाली सिरोही में पाई जाती है।
जैसलमेरी भेड़ – यह जैसलमेर जोधपुर बाड़मेर में पश्चिमी भाग में पाई जाती है। सर्वाधिक ऊन इस नस्ल की भेड़ों से प्राप्त होती है।
भेड़ों की विदेशी नस्लें
रूसी मैरिनो भेड़ – टोंक, सीकर, जयपुर में बहुतायत में पायी जाती है।
रेडबुल भेड़ – टोंक
कोरिडेल भेड़ – टोंक में बहुतायत में पायी जाती है।
डोर्सेट भेड़ – चित्तौड़गढ़ में बहुतायत में पायी जाती है।
******** : राजस्थान में 19वीं पशुगणना के मुकाबले 20वीं पशुगणना में भेड़ों की संख्या में 12.95% की कमी आई। भेड़ों के मामले में राजस्थान, भारत में चौथा स्थान (10.64% भारत का) रखता है। सर्वाधिक भेड़ें बाड़मेर जिले में। भेड़ों की नस्लें:-• चोकला (छापर)-शेखावटी क्षेत्र (सीकर, चुरू, झुंझुनूं) में, सर्वोत्तम किस्म की ऊन देती है। अतः इसे भारतीय मेरिनो कहा जाता है।
सोनाड़ी (चनोथर)–दक्षिणी राजस्थान के डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, चित्तौड़ में।
पूगल-बीकानेर, जैसलमेर में।
नाली-गंगानगर, हनुमानगढ़ में (उत्तरी राजस्थान में)।
बागड़ी-अलवर, भरतपुर (पूर्वी राजस्थान में)।
जैसलमेरी-जैसलमेर, जोधपुर, बाड़मेर। प्रति भेड़ सर्वाधिक ऊन देती है।
मगरा-बीकानेर, नागौर। • मालपुरी-मालपुरा (टोंक) देशी नस्ल। .मारवाड़ी-जोधपुर व आसपास के क्षेत्र में। इसी नस्ल की भेड़ें सर्वाधिक पाई जाती है। इस नस्ल की रोग-प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है।
खेरी-राजसमंद, पाली, अजमेर, नागौर। भेड़ों की विदेशी नस्लें-रूसी मेरिनो (शेखावटी क्षेत्र), डोर्सेट, रेम्बुल (टोंक में), कोरिडेल (चित्ताई में)।
Unattempted
व्याख्या भेड़-
देश में भेड़ों की संख्या के आधार पर राज्य का तीसरा स्थान है सर्वाधिक भेड़ें बाड़मेर में और न्यूनतम बांसवाड़ा में पाई जाती हैं
भेड़ों की नस्लें
चोकला भेड़ – झुंझुनू ,सीकर ,चूरू, बीकानेर व जयपुर जिले में यह पाई जाती है ।इससे छापर एवं शेखावाटी के नाम से भी जाना जाता है। इसे भारत की मेरिनो कहा जाता है ।इससे प्राप्त हुई फाइन मध्यम किस्म का है।
मालपुरी भेड़ – यह जयपुर, टोंक, सवाई माधोपुर ,बूंदी ,अजमेर ,भीलवाड़ा में पाई जाती है ।उन मोटी होने के कारण गलीचे के लिए उपयुक्त है। इसे देसी नस्ल भी कहा जाता है।
सोनाड़ी भेड़ – उदयपुर, डूंगरपुर, चित्तौड़गढ़ ,बांसवाड़ा भीलवाड़ा में पाई जाती है ।इसका उपनाम – चनोथर भी है है।
पूगल भेड़ – बीकानेर के पश्चिमी भाग व जैसलमेर ,नागौर में पाई जाती है।
मगरा भेड़ – इसे बीकानेरी चोकला भी कहा जाता है ।यह बीकानेर जैसलमेर और नागौर जिले में पाई जाती है।
नाली भेड़ – यह गंगानगर झुंझुनू सीकर बीकानेर चूरू में पाई जाती है ।इसकी ऊन घने व लंबे रेशे वाली होती है।
मारवाड़ी भेड़ – जोधपुर बाड़मेर नागौर पाली सिरोही में पाई जाती है।
जैसलमेरी भेड़ – यह जैसलमेर जोधपुर बाड़मेर में पश्चिमी भाग में पाई जाती है। सर्वाधिक ऊन इस नस्ल की भेड़ों से प्राप्त होती है।
भेड़ों की विदेशी नस्लें
रूसी मैरिनो भेड़ – टोंक, सीकर, जयपुर में बहुतायत में पायी जाती है।
रेडबुल भेड़ – टोंक
कोरिडेल भेड़ – टोंक में बहुतायत में पायी जाती है।
डोर्सेट भेड़ – चित्तौड़गढ़ में बहुतायत में पायी जाती है।
******** : राजस्थान में 19वीं पशुगणना के मुकाबले 20वीं पशुगणना में भेड़ों की संख्या में 12.95% की कमी आई। भेड़ों के मामले में राजस्थान, भारत में चौथा स्थान (10.64% भारत का) रखता है। सर्वाधिक भेड़ें बाड़मेर जिले में। भेड़ों की नस्लें:-• चोकला (छापर)-शेखावटी क्षेत्र (सीकर, चुरू, झुंझुनूं) में, सर्वोत्तम किस्म की ऊन देती है। अतः इसे भारतीय मेरिनो कहा जाता है।
सोनाड़ी (चनोथर)–दक्षिणी राजस्थान के डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, चित्तौड़ में।
पूगल-बीकानेर, जैसलमेर में।
नाली-गंगानगर, हनुमानगढ़ में (उत्तरी राजस्थान में)।
बागड़ी-अलवर, भरतपुर (पूर्वी राजस्थान में)।
जैसलमेरी-जैसलमेर, जोधपुर, बाड़मेर। प्रति भेड़ सर्वाधिक ऊन देती है।
मगरा-बीकानेर, नागौर। • मालपुरी-मालपुरा (टोंक) देशी नस्ल। .मारवाड़ी-जोधपुर व आसपास के क्षेत्र में। इसी नस्ल की भेड़ें सर्वाधिक पाई जाती है। इस नस्ल की रोग-प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है।
खेरी-राजसमंद, पाली, अजमेर, नागौर। भेड़ों की विदेशी नस्लें-रूसी मेरिनो (शेखावटी क्षेत्र), डोर्सेट, रेम्बुल (टोंक में), कोरिडेल (चित्ताई में)।
Question 18 of 41
18. Question
2 points
राजस्थान में ‘वालरा’ कृषि का एक प्रकार है
Correct
झूमिग कृषि
राजस्थान में इस प्रकार की खेती को वालरा कहा जाता है। भील जनजाति द्वारा पहाडी क्षेत्रों में इसे “चिमाता” व मैदानी में “दजिया” कहा जाता है। इस प्रकार की खेती से पर्यावरण को अत्यधिक नुकसान पहुंचता है। राजस्थान में उदयपुर, डूंगरपुर, बांरा में वालरा कृषि की जाती है।
***** : स्थानान्तरित कृषि–वनों को काटकर व जलाकर की जाने वाली कृषि (स्लेश एण्ड बर्न कृषि) । दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान में स्थानान्तरित कृषि को “वालरा” कहा जाता है। वालरा के दो प्रकार है चिमाता व दजिया। स्थानान्तरित कृषि को उत्तरी-पूर्वी भारत में झूमिंग, उड़ीसा में कमान, धरवी, बिंगा तथा बस्तर छत्तीसगढ़ में दीपा, मध्यप्रदेश में वेवर-दहिया, केरल में कुमारी, दक्षिण भारत में जारा एवं एरका कषि के नाम से जाना जाता है।
Incorrect
झूमिग कृषि
राजस्थान में इस प्रकार की खेती को वालरा कहा जाता है। भील जनजाति द्वारा पहाडी क्षेत्रों में इसे “चिमाता” व मैदानी में “दजिया” कहा जाता है। इस प्रकार की खेती से पर्यावरण को अत्यधिक नुकसान पहुंचता है। राजस्थान में उदयपुर, डूंगरपुर, बांरा में वालरा कृषि की जाती है।
***** : स्थानान्तरित कृषि–वनों को काटकर व जलाकर की जाने वाली कृषि (स्लेश एण्ड बर्न कृषि) । दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान में स्थानान्तरित कृषि को “वालरा” कहा जाता है। वालरा के दो प्रकार है चिमाता व दजिया। स्थानान्तरित कृषि को उत्तरी-पूर्वी भारत में झूमिंग, उड़ीसा में कमान, धरवी, बिंगा तथा बस्तर छत्तीसगढ़ में दीपा, मध्यप्रदेश में वेवर-दहिया, केरल में कुमारी, दक्षिण भारत में जारा एवं एरका कषि के नाम से जाना जाता है।
Unattempted
झूमिग कृषि
राजस्थान में इस प्रकार की खेती को वालरा कहा जाता है। भील जनजाति द्वारा पहाडी क्षेत्रों में इसे “चिमाता” व मैदानी में “दजिया” कहा जाता है। इस प्रकार की खेती से पर्यावरण को अत्यधिक नुकसान पहुंचता है। राजस्थान में उदयपुर, डूंगरपुर, बांरा में वालरा कृषि की जाती है।
***** : स्थानान्तरित कृषि–वनों को काटकर व जलाकर की जाने वाली कृषि (स्लेश एण्ड बर्न कृषि) । दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान में स्थानान्तरित कृषि को “वालरा” कहा जाता है। वालरा के दो प्रकार है चिमाता व दजिया। स्थानान्तरित कृषि को उत्तरी-पूर्वी भारत में झूमिंग, उड़ीसा में कमान, धरवी, बिंगा तथा बस्तर छत्तीसगढ़ में दीपा, मध्यप्रदेश में वेवर-दहिया, केरल में कुमारी, दक्षिण भारत में जारा एवं एरका कषि के नाम से जाना जाता है।
Question 19 of 41
19. Question
2 points
राजस्थान सहकारी डेयरी फैडरेशन लिमिटेड (RCDF) का मुख्यालय कहाँ है?
Correct
व्याख्या : राजस्थान सहकारी डेयरी फैडरेशन (RCDF) की स्थापना 1977 में, मुख्यालय- जयपुर, RCDE सरस ब्रांड से डेयरी उत्पाद उपलब्ध करवाती है। RCDFराज्य की शीर्ष डेयरी संस्था है।
श्वेत/धवल क्रांति के जनक वर्गीजकुरियन थे। (श्वेत क्रांति 1970-1996 तक आनंद गुजरात से शुरू)
ऑपरेशन फ्लड-1970 में, उद्देश्य- दुग्ध उत्पादन में वृद्धि।
राजस्थान डेयरी विकास निगम (RCDD, 1975) का 1977 में नाम बदलकर RCDF कर दिया। RCDF द्वारा पशु-पोषाहार संयंत्रों का संचालन किया जाता है।
RCDF राज्य में दुग्ध विकास कार्यक्रमों का संचालन तथा पशुपालकों को उनके दूध का उचित मूल्य दिलाने व उपभोक्ताओं का शुद्ध व गुणवत्तापूर्ण दूध उपलब्ध कराने का कार्य करती हैं। राज्य में RCDF से संबंद्ध 21 जिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ है।
Incorrect
व्याख्या : राजस्थान सहकारी डेयरी फैडरेशन (RCDF) की स्थापना 1977 में, मुख्यालय- जयपुर, RCDE सरस ब्रांड से डेयरी उत्पाद उपलब्ध करवाती है। RCDFराज्य की शीर्ष डेयरी संस्था है।
श्वेत/धवल क्रांति के जनक वर्गीजकुरियन थे। (श्वेत क्रांति 1970-1996 तक आनंद गुजरात से शुरू)
ऑपरेशन फ्लड-1970 में, उद्देश्य- दुग्ध उत्पादन में वृद्धि।
राजस्थान डेयरी विकास निगम (RCDD, 1975) का 1977 में नाम बदलकर RCDF कर दिया। RCDF द्वारा पशु-पोषाहार संयंत्रों का संचालन किया जाता है।
RCDF राज्य में दुग्ध विकास कार्यक्रमों का संचालन तथा पशुपालकों को उनके दूध का उचित मूल्य दिलाने व उपभोक्ताओं का शुद्ध व गुणवत्तापूर्ण दूध उपलब्ध कराने का कार्य करती हैं। राज्य में RCDF से संबंद्ध 21 जिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ है।
Unattempted
व्याख्या : राजस्थान सहकारी डेयरी फैडरेशन (RCDF) की स्थापना 1977 में, मुख्यालय- जयपुर, RCDE सरस ब्रांड से डेयरी उत्पाद उपलब्ध करवाती है। RCDFराज्य की शीर्ष डेयरी संस्था है।
श्वेत/धवल क्रांति के जनक वर्गीजकुरियन थे। (श्वेत क्रांति 1970-1996 तक आनंद गुजरात से शुरू)
ऑपरेशन फ्लड-1970 में, उद्देश्य- दुग्ध उत्पादन में वृद्धि।
राजस्थान डेयरी विकास निगम (RCDD, 1975) का 1977 में नाम बदलकर RCDF कर दिया। RCDF द्वारा पशु-पोषाहार संयंत्रों का संचालन किया जाता है।
RCDF राज्य में दुग्ध विकास कार्यक्रमों का संचालन तथा पशुपालकों को उनके दूध का उचित मूल्य दिलाने व उपभोक्ताओं का शुद्ध व गुणवत्तापूर्ण दूध उपलब्ध कराने का कार्य करती हैं। राज्य में RCDF से संबंद्ध 21 जिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ है।
Question 20 of 41
20. Question
2 points
1874 में आगरा किला (उत्तरप्रदेश) और राजस्थान के किस स्टेशन के बीच पहली रेल चलाई गई थी?
Correct
राजस्थान में पहली ट्रेन बांदीकुई जंक्शन से आगरा किले तक चली, अप्रैल 1874 में भारत में औपनिवेशिक सरकार द्वारा शुरू की गई थी। इसने बांदीकुई (दौसा) से आगरा किला (उत्तर प्रदेश) तक यात्रा की। यह उत्तर भारत के शुरुआती रेलवे स्टेशनों में से एक है और भाप इंजनों का गंतव्य भी था।
Incorrect
राजस्थान में पहली ट्रेन बांदीकुई जंक्शन से आगरा किले तक चली, अप्रैल 1874 में भारत में औपनिवेशिक सरकार द्वारा शुरू की गई थी। इसने बांदीकुई (दौसा) से आगरा किला (उत्तर प्रदेश) तक यात्रा की। यह उत्तर भारत के शुरुआती रेलवे स्टेशनों में से एक है और भाप इंजनों का गंतव्य भी था।
Unattempted
राजस्थान में पहली ट्रेन बांदीकुई जंक्शन से आगरा किले तक चली, अप्रैल 1874 में भारत में औपनिवेशिक सरकार द्वारा शुरू की गई थी। इसने बांदीकुई (दौसा) से आगरा किला (उत्तर प्रदेश) तक यात्रा की। यह उत्तर भारत के शुरुआती रेलवे स्टेशनों में से एक है और भाप इंजनों का गंतव्य भी था।
Question 21 of 41
21. Question
2 points
बीकानेर-नागौर नेमिन में ऑयल इण्डिया लिमिटेड द्वारा खोजे गये तेल क्षेत्र को निम्न में से कौन सा नाम दिया गया है?
Correct
ऑयल इंडिया के पूनम-1 को अनुमति-हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय ने राजस्थान में ऑयल इंडिया प्रालि की तेल खोज को वाणिज्यिक घोषणा पत्र जारी कर दिया है। इस तेल क्षेत्र को पूनम-1 नाम दिया गया है। यहां प्रतिदिन 30 हजार बैरल तेल का उत्पादन हो सकेगा।
बीकानेर-नागौर तेल क्षेत्र को पूनम रिजन तथा बाड़मेर-सांचौर तेल क्षेत्र को सरस्वती रिजन के नाम से जाना जाता है।
Incorrect
ऑयल इंडिया के पूनम-1 को अनुमति-हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय ने राजस्थान में ऑयल इंडिया प्रालि की तेल खोज को वाणिज्यिक घोषणा पत्र जारी कर दिया है। इस तेल क्षेत्र को पूनम-1 नाम दिया गया है। यहां प्रतिदिन 30 हजार बैरल तेल का उत्पादन हो सकेगा।
बीकानेर-नागौर तेल क्षेत्र को पूनम रिजन तथा बाड़मेर-सांचौर तेल क्षेत्र को सरस्वती रिजन के नाम से जाना जाता है।
Unattempted
ऑयल इंडिया के पूनम-1 को अनुमति-हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय ने राजस्थान में ऑयल इंडिया प्रालि की तेल खोज को वाणिज्यिक घोषणा पत्र जारी कर दिया है। इस तेल क्षेत्र को पूनम-1 नाम दिया गया है। यहां प्रतिदिन 30 हजार बैरल तेल का उत्पादन हो सकेगा।
बीकानेर-नागौर तेल क्षेत्र को पूनम रिजन तथा बाड़मेर-सांचौर तेल क्षेत्र को सरस्वती रिजन के नाम से जाना जाता है।
Question 22 of 41
22. Question
2 points
2011 की जनगणना के अनुसार निम्नलिखित जिलों के समूह में से सही जनसंख्या घनत्व का अवरोही क्रम कौनसा है
Correct
राजस्थान में जनगणना 2011 के अनुसार सर्वाधिक जनघनत्व वाले जिले : (पूर्वी राजस्थान)
क्र. सं.
जिले
जनसंख्या घनत्व
1
जयपुर
595
2
भरतपुर
503
3
दौसा
476
4
अलवर
438
5
धोलपुर
398
राजस्थान में जनगणना 2011 के अनुसार न्यूनतम जनघनत्व वाले जिले : (प. मरुस्थलीय प्रदेश)
क्र. सं.
जिले
जनसंख्या घनत्व
1
जैसलमेर
17
2
बीकानेर
78
3
बाड़मेर
92
4
चुरू
147
5
जोधपुर
161
Incorrect
राजस्थान में जनगणना 2011 के अनुसार सर्वाधिक जनघनत्व वाले जिले : (पूर्वी राजस्थान)
क्र. सं.
जिले
जनसंख्या घनत्व
1
जयपुर
595
2
भरतपुर
503
3
दौसा
476
4
अलवर
438
5
धोलपुर
398
राजस्थान में जनगणना 2011 के अनुसार न्यूनतम जनघनत्व वाले जिले : (प. मरुस्थलीय प्रदेश)
क्र. सं.
जिले
जनसंख्या घनत्व
1
जैसलमेर
17
2
बीकानेर
78
3
बाड़मेर
92
4
चुरू
147
5
जोधपुर
161
Unattempted
राजस्थान में जनगणना 2011 के अनुसार सर्वाधिक जनघनत्व वाले जिले : (पूर्वी राजस्थान)
क्र. सं.
जिले
जनसंख्या घनत्व
1
जयपुर
595
2
भरतपुर
503
3
दौसा
476
4
अलवर
438
5
धोलपुर
398
राजस्थान में जनगणना 2011 के अनुसार न्यूनतम जनघनत्व वाले जिले : (प. मरुस्थलीय प्रदेश)
क्र. सं.
जिले
जनसंख्या घनत्व
1
जैसलमेर
17
2
बीकानेर
78
3
बाड़मेर
92
4
चुरू
147
5
जोधपुर
161
Question 23 of 41
23. Question
2 points
दादूपंथी कितने उपसम्प्रदाय में विभाजित थे?
Correct
दादू पंथी की 5 शाखाएँ :-
(i) खालसा :- मुख्य पीठ (नरायणा) से सम्बद्ध, इसके मुखिया गरीबदास थे।
(ii) विरक्त :– रमते-फिरते दादू पंथी साधु, जो गृहस्थियों को उपदेश देते थे।
(iii) उतरादे व स्थान धारी :– संस्थापक – बनवारीदास जी। गद्दी – रतिया (हिसार)
(iv) खाकी :– ये शरीर पर भस्म लगाते थे तथा खाकी वस्त्र पहनते थे।
(v) नागा :– संस्थापक – सुन्दरदास जी। ये वैरागी होते थे, नग्न रहते हैं तथा शस्त्र धारण करते हैं।
– दादू पंथ के 52 स्तम्भ :– दादू के 52 प्रमुख शिष्य। (राधौदास के ग्रन्थ ‘भक्तमाल’ में दादूजी के 52 शिष्यों के नामों का उल्लेख है)
Incorrect
दादू पंथी की 5 शाखाएँ :-
(i) खालसा :- मुख्य पीठ (नरायणा) से सम्बद्ध, इसके मुखिया गरीबदास थे।
(ii) विरक्त :– रमते-फिरते दादू पंथी साधु, जो गृहस्थियों को उपदेश देते थे।
(iii) उतरादे व स्थान धारी :– संस्थापक – बनवारीदास जी। गद्दी – रतिया (हिसार)
(iv) खाकी :– ये शरीर पर भस्म लगाते थे तथा खाकी वस्त्र पहनते थे।
(v) नागा :– संस्थापक – सुन्दरदास जी। ये वैरागी होते थे, नग्न रहते हैं तथा शस्त्र धारण करते हैं।
– दादू पंथ के 52 स्तम्भ :– दादू के 52 प्रमुख शिष्य। (राधौदास के ग्रन्थ ‘भक्तमाल’ में दादूजी के 52 शिष्यों के नामों का उल्लेख है)
Unattempted
दादू पंथी की 5 शाखाएँ :-
(i) खालसा :- मुख्य पीठ (नरायणा) से सम्बद्ध, इसके मुखिया गरीबदास थे।
(ii) विरक्त :– रमते-फिरते दादू पंथी साधु, जो गृहस्थियों को उपदेश देते थे।
(iii) उतरादे व स्थान धारी :– संस्थापक – बनवारीदास जी। गद्दी – रतिया (हिसार)
(iv) खाकी :– ये शरीर पर भस्म लगाते थे तथा खाकी वस्त्र पहनते थे।
(v) नागा :– संस्थापक – सुन्दरदास जी। ये वैरागी होते थे, नग्न रहते हैं तथा शस्त्र धारण करते हैं।
– दादू पंथ के 52 स्तम्भ :– दादू के 52 प्रमुख शिष्य। (राधौदास के ग्रन्थ ‘भक्तमाल’ में दादूजी के 52 शिष्यों के नामों का उल्लेख है)
Question 24 of 41
24. Question
2 points
स्थान जहाँ गोगाजी का जन्म हुआ, वह है
Correct
गोगा जी
जन्म स्थान – ददरेवा (जेवरग्राम) राजगढ़ तहसील (चुरू)।
समाधि – गोगामेड़ी, नोहर तहसील (हनुमानगढ)
उपनाम – सांपों के देवता, जाहरपीर (यह नाम महमूद गजनवी ने दिया)
इनका वंश – चैहान वंश था।
गोगा जी ने महमूद गजनवी से युद्ध लडा।
प्रमुख स्थल:-श्शीर्ष मेडी ( ददेरवा),धुरमेडी – (गोगामेडी), नोहर मे।
गोगा मेंडी का निर्माण “फिरोज शाह तुगलक” ने करवाया।
Incorrect
गोगा जी
जन्म स्थान – ददरेवा (जेवरग्राम) राजगढ़ तहसील (चुरू)।
समाधि – गोगामेड़ी, नोहर तहसील (हनुमानगढ)
उपनाम – सांपों के देवता, जाहरपीर (यह नाम महमूद गजनवी ने दिया)
इनका वंश – चैहान वंश था।
गोगा जी ने महमूद गजनवी से युद्ध लडा।
प्रमुख स्थल:-श्शीर्ष मेडी ( ददेरवा),धुरमेडी – (गोगामेडी), नोहर मे।
गोगा मेंडी का निर्माण “फिरोज शाह तुगलक” ने करवाया।
Unattempted
गोगा जी
जन्म स्थान – ददरेवा (जेवरग्राम) राजगढ़ तहसील (चुरू)।
समाधि – गोगामेड़ी, नोहर तहसील (हनुमानगढ)
उपनाम – सांपों के देवता, जाहरपीर (यह नाम महमूद गजनवी ने दिया)
इनका वंश – चैहान वंश था।
गोगा जी ने महमूद गजनवी से युद्ध लडा।
प्रमुख स्थल:-श्शीर्ष मेडी ( ददेरवा),धुरमेडी – (गोगामेडी), नोहर मे।
गोगा मेंडी का निर्माण “फिरोज शाह तुगलक” ने करवाया।
Question 25 of 41
25. Question
2 points
मोरचंग है
Correct
मोरचंग
• यह लोहे का बना छोटा सा वाद्य है, जिसे होठों के बीच रखकर बजाया जाता है।
• इसमें एक धातु के बने गोलाकार हैंडिल से दो छोटी व लंबी धातु की छड़े निकली होती है। इन दो छड़ों के बीच में लोहे की एक पतली लंबी रोड रहती है जिसके मुँह पर थोड़ा सा घुमाव दे दिया जाता है।
• इस वाद्य को होठों से दबाने के बाद श्वास-प्रश्नवास से रोड में कंपन्न होता है और इस तरंगित रोड के मुड़े हुए हिस्से पर अँगुली से आघात करके स्वर व लयपूर्ण ध्वनि निकाली जाती है।
• यह लोहे का बना छोटा सा वाद्य है, जिसे होठों के बीच रखकर बजाया जाता है।
• इसमें एक धातु के बने गोलाकार हैंडिल से दो छोटी व लंबी धातु की छड़े निकली होती है। इन दो छड़ों के बीच में लोहे की एक पतली लंबी रोड रहती है जिसके मुँह पर थोड़ा सा घुमाव दे दिया जाता है।
• इस वाद्य को होठों से दबाने के बाद श्वास-प्रश्नवास से रोड में कंपन्न होता है और इस तरंगित रोड के मुड़े हुए हिस्से पर अँगुली से आघात करके स्वर व लयपूर्ण ध्वनि निकाली जाती है।
• यह लोहे का बना छोटा सा वाद्य है, जिसे होठों के बीच रखकर बजाया जाता है।
• इसमें एक धातु के बने गोलाकार हैंडिल से दो छोटी व लंबी धातु की छड़े निकली होती है। इन दो छड़ों के बीच में लोहे की एक पतली लंबी रोड रहती है जिसके मुँह पर थोड़ा सा घुमाव दे दिया जाता है।
• इस वाद्य को होठों से दबाने के बाद श्वास-प्रश्नवास से रोड में कंपन्न होता है और इस तरंगित रोड के मुड़े हुए हिस्से पर अँगुली से आघात करके स्वर व लयपूर्ण ध्वनि निकाली जाती है।
निम्नलिखित में से कौन सा भीलों का प्रसिद्ध लोक-नाट्य है ?
Correct
भील जनजाति के नृत्य –
गवरी/राई नृत्य – यह नृत्य भीलों का धार्मिक नृत्य है। इसका सम्बन्ध पार्वती की पूजा से है। इस नृत्य का मुख्य पात्र शिव तथा पार्वती होते है। यह राजस्थान का सबसे प्राचीन लोक नाट्य है। इसे लोक नाट्यों का मेरुनाटय कहा जाता है।
नेजा नृत्य – यह नृत्य महिलाओं द्वारा होली के तीसरे दिन किया जाता है।
गैर नृत्य – यह नृत्य भील पुरुषों द्वारा होली के अवसर पर ढोल, मादल तथा थाली वाद्य के साथ किया जाता है। ‘कनाणा’ बाड़मेर का गैर नृत्य है।
द्विचक्री नृत्य – यह नृत्य युगल में दो अलग-अलग वृत्त बनाकर किया जाता है।
घूमरा/झूमर नृत्य – यह नृत्य महिलाओं द्वारा मांगलिक अवसरों पर ढोल एवं थाली वाद्य के साथ अर्द्धवृत्त में घूम-घूम कर किया जाता है।
हाथिमना नृत्य – यह नृत्य विवाह के अवसर बैठकर किया जाता है।
युद्ध नृत्य – यह नृत्य दो दल बनाकर तीर कमना, भाले, बरछी और तलवारें लेकर तालबद्ध तरिके से किया जाता है। इस नृत्य का रणघोष फाइरे-फाइरे होता है। इसका वाद्य यंत्र मादल होता है।
Incorrect
भील जनजाति के नृत्य –
गवरी/राई नृत्य – यह नृत्य भीलों का धार्मिक नृत्य है। इसका सम्बन्ध पार्वती की पूजा से है। इस नृत्य का मुख्य पात्र शिव तथा पार्वती होते है। यह राजस्थान का सबसे प्राचीन लोक नाट्य है। इसे लोक नाट्यों का मेरुनाटय कहा जाता है।
नेजा नृत्य – यह नृत्य महिलाओं द्वारा होली के तीसरे दिन किया जाता है।
गैर नृत्य – यह नृत्य भील पुरुषों द्वारा होली के अवसर पर ढोल, मादल तथा थाली वाद्य के साथ किया जाता है। ‘कनाणा’ बाड़मेर का गैर नृत्य है।
द्विचक्री नृत्य – यह नृत्य युगल में दो अलग-अलग वृत्त बनाकर किया जाता है।
घूमरा/झूमर नृत्य – यह नृत्य महिलाओं द्वारा मांगलिक अवसरों पर ढोल एवं थाली वाद्य के साथ अर्द्धवृत्त में घूम-घूम कर किया जाता है।
हाथिमना नृत्य – यह नृत्य विवाह के अवसर बैठकर किया जाता है।
युद्ध नृत्य – यह नृत्य दो दल बनाकर तीर कमना, भाले, बरछी और तलवारें लेकर तालबद्ध तरिके से किया जाता है। इस नृत्य का रणघोष फाइरे-फाइरे होता है। इसका वाद्य यंत्र मादल होता है।
Unattempted
भील जनजाति के नृत्य –
गवरी/राई नृत्य – यह नृत्य भीलों का धार्मिक नृत्य है। इसका सम्बन्ध पार्वती की पूजा से है। इस नृत्य का मुख्य पात्र शिव तथा पार्वती होते है। यह राजस्थान का सबसे प्राचीन लोक नाट्य है। इसे लोक नाट्यों का मेरुनाटय कहा जाता है।
नेजा नृत्य – यह नृत्य महिलाओं द्वारा होली के तीसरे दिन किया जाता है।
गैर नृत्य – यह नृत्य भील पुरुषों द्वारा होली के अवसर पर ढोल, मादल तथा थाली वाद्य के साथ किया जाता है। ‘कनाणा’ बाड़मेर का गैर नृत्य है।
द्विचक्री नृत्य – यह नृत्य युगल में दो अलग-अलग वृत्त बनाकर किया जाता है।
घूमरा/झूमर नृत्य – यह नृत्य महिलाओं द्वारा मांगलिक अवसरों पर ढोल एवं थाली वाद्य के साथ अर्द्धवृत्त में घूम-घूम कर किया जाता है।
हाथिमना नृत्य – यह नृत्य विवाह के अवसर बैठकर किया जाता है।
युद्ध नृत्य – यह नृत्य दो दल बनाकर तीर कमना, भाले, बरछी और तलवारें लेकर तालबद्ध तरिके से किया जाता है। इस नृत्य का रणघोष फाइरे-फाइरे होता है। इसका वाद्य यंत्र मादल होता है।
Question 27 of 41
27. Question
2 points
किशनगढ़ चित्रकला शैली के संरक्षक सावंत सिंह की मृत्यु कहाँ हुई ?
Correct
किशनगढ़ उपशैली
1 प्रमुख शासक – राजा सावंतसिंह ‘नागरीदास’
2 प्रमुख चित्रित ग्रंथ व विषय – बणी-ठणी, चाँदनी रात की संगीत गोष्ठी गीत गोविंद, भागवान गीत आदि पर आधरित चित्र।
3 प्रमुख चित्रकार – निहालचंद, सूरध्वज मोरध्वज, भंवरलाल, लाडलीदास, छोटू, अमीरचंद, ध्न्ना।
6 नारी आकृति – कमल एवं खंजन सी काली आँखे, चाप के समान लंबी भृकुटि, लंबी व सुराहीदार गर्दन, दीर्घ नाक, लंबे बाल, लम्बी नायिकाएँ, लँहगा, चोली एवं पारदर्शी आँचल से सज्जित।
7 विशेष तथ्य – इस शैली को प्रकाश मे लाने का श्रेय विद्वान एरिक डिक्सन एवं डॉ. पफैयाज अली को जाता है।
– इस शैली की प्रमुख विशेषता ‘नारी सोंदर्य’ है।
– यह चित्रशैली कांगड़ा शैली एवं ब्रज साहित्य से प्रभावित है।
– इस चित्रशैली का प्रमुख चित्र ‘बणी-ठणी’ है।
– चाँदनी रात की संगोष्ठी-चित्रकार अमीरचन्द द्वारा सांवतसिंह के समय बनाया गया चित्र।
– वेसरि (नाक का आभूषण) अनोखा व प्रमुख आभूषण।
– बिहारी चिन्द्रिका रत्नावली, रसिक, रत्नावली और मनोरथ मंजरी आदि काव्यों की सांवत सिंह से रचना की।
****
किशनगढ़ चित्रकला शैली के संरक्षक सावंत सिंह की मृत्यु वृंदावन में हुई
Question 28 of 41
28. Question
2 points
ऐतिहासिक स्थल भानगढ़ स्थित है ?
Correct
भानगढ़ अलवर
भानगढ़, अलवर जिले, राजस्थान में स्थित एक गाँव है।
यह अपने ऐतिहासिक खंडहरों के लिए प्रसिद्ध है और इसे भारत के कई प्रेतवाधित स्थानों में से एक माना जाता है।
भानगढ़ एक पूर्व-ऐतिहासिक स्थल और पर्यटन स्थल भी है।
भानगढ़ के सबसे उल्लेखनीय पहलू इसकी पुरानी इमारतें हैं: गोपीनाथ, सोमेश्वर, हनुमान, गणेश, विशाल देवता, लवीना देवी और केशव राय के हिंदू मंदिर
महल घाटी में दो आंतरिक दुर्गों द्वारा संरक्षित है।
कस्बा को पांच द्वारों के साथ दुर्ग प्राचीर से मैदान से अलग किया जाता है।
कस्बा 1573 में कछवाहा राजपूत के शासन के दौरान स्थापित किया गया था।
Incorrect
भानगढ़ अलवर
भानगढ़, अलवर जिले, राजस्थान में स्थित एक गाँव है।
यह अपने ऐतिहासिक खंडहरों के लिए प्रसिद्ध है और इसे भारत के कई प्रेतवाधित स्थानों में से एक माना जाता है।
भानगढ़ एक पूर्व-ऐतिहासिक स्थल और पर्यटन स्थल भी है।
भानगढ़ के सबसे उल्लेखनीय पहलू इसकी पुरानी इमारतें हैं: गोपीनाथ, सोमेश्वर, हनुमान, गणेश, विशाल देवता, लवीना देवी और केशव राय के हिंदू मंदिर
महल घाटी में दो आंतरिक दुर्गों द्वारा संरक्षित है।
कस्बा को पांच द्वारों के साथ दुर्ग प्राचीर से मैदान से अलग किया जाता है।
कस्बा 1573 में कछवाहा राजपूत के शासन के दौरान स्थापित किया गया था।
Unattempted
भानगढ़ अलवर
भानगढ़, अलवर जिले, राजस्थान में स्थित एक गाँव है।
यह अपने ऐतिहासिक खंडहरों के लिए प्रसिद्ध है और इसे भारत के कई प्रेतवाधित स्थानों में से एक माना जाता है।
भानगढ़ एक पूर्व-ऐतिहासिक स्थल और पर्यटन स्थल भी है।
भानगढ़ के सबसे उल्लेखनीय पहलू इसकी पुरानी इमारतें हैं: गोपीनाथ, सोमेश्वर, हनुमान, गणेश, विशाल देवता, लवीना देवी और केशव राय के हिंदू मंदिर
महल घाटी में दो आंतरिक दुर्गों द्वारा संरक्षित है।
कस्बा को पांच द्वारों के साथ दुर्ग प्राचीर से मैदान से अलग किया जाता है।
कस्बा 1573 में कछवाहा राजपूत के शासन के दौरान स्थापित किया गया था।
Question 29 of 41
29. Question
2 points
जयपुर मीनाकारी का एक प्रसिद्ध स्थल है। इस कला को लाने का श्रेय किसको है ?
Correct
**मीनाकारी**
राजस्थान में मीनाकारी का सर्वाधिक कार्य जयपुर में होता है।
‘मीनाकारी’ की कारीगरी आमेर के ‘राजा मानसिंह प्रथम’ (1589-1614 ई.) लाहौर से अपने साथ लाए थे।
जयपुर के मीनाकार सोने चॉंदी के आभूषणों पर कलात्मक मीनाकारी के लिए विश्व प्रसिद्व है।
जयपुर में रत्नों की कटाई, घिसाई एवं मिनाकारी के कार्य को प्रोत्साहित करने के लिए जयपुर जेम्स स्टोन की स्थापना की गई।
कॉंच पर सोने की मीनाकारी के लिए प्रतापगढ़ चित्तौड़गढ़ के मीनाकार प्रसिद्व है।इस कला को थेवा कला कहा जाता है। यह कला प्रतापगढ़ के राज सोनी परिवार में केवल पुरूषों में प्रचलित है।
कागज जैसे पतले पत्थर पर मीनाकारी के लिए बीकानेर के मीनाकार विश्व प्रसिद्व है। बीकानेर के कलाकारों को उस्ताद कहा जाता है।
पीतल पर मीनाकारी के लिए जयपुर एवं अलवर प्रसिद्व है। पीतल पर मीनाकारी को सर्वाधिक कार्य अलवर में होता है।
बीकानेर में उॅंटों की खाल पर जो मीनाकारी की जाती है उसे उस्ताकला कहते है।
हिसामुद्वीन इस कला के महान कलाकार थे।
जयपुर के मीनाकार कुदरतसिंह को मीनाकारी के लिए 1988 ई. में ‘पद्मश्री’ सम्मान प्राप्त हुआ।
Incorrect
**मीनाकारी**
राजस्थान में मीनाकारी का सर्वाधिक कार्य जयपुर में होता है।
‘मीनाकारी’ की कारीगरी आमेर के ‘राजा मानसिंह प्रथम’ (1589-1614 ई.) लाहौर से अपने साथ लाए थे।
जयपुर के मीनाकार सोने चॉंदी के आभूषणों पर कलात्मक मीनाकारी के लिए विश्व प्रसिद्व है।
जयपुर में रत्नों की कटाई, घिसाई एवं मिनाकारी के कार्य को प्रोत्साहित करने के लिए जयपुर जेम्स स्टोन की स्थापना की गई।
कॉंच पर सोने की मीनाकारी के लिए प्रतापगढ़ चित्तौड़गढ़ के मीनाकार प्रसिद्व है।इस कला को थेवा कला कहा जाता है। यह कला प्रतापगढ़ के राज सोनी परिवार में केवल पुरूषों में प्रचलित है।
कागज जैसे पतले पत्थर पर मीनाकारी के लिए बीकानेर के मीनाकार विश्व प्रसिद्व है। बीकानेर के कलाकारों को उस्ताद कहा जाता है।
पीतल पर मीनाकारी के लिए जयपुर एवं अलवर प्रसिद्व है। पीतल पर मीनाकारी को सर्वाधिक कार्य अलवर में होता है।
बीकानेर में उॅंटों की खाल पर जो मीनाकारी की जाती है उसे उस्ताकला कहते है।
हिसामुद्वीन इस कला के महान कलाकार थे।
जयपुर के मीनाकार कुदरतसिंह को मीनाकारी के लिए 1988 ई. में ‘पद्मश्री’ सम्मान प्राप्त हुआ।
Unattempted
**मीनाकारी**
राजस्थान में मीनाकारी का सर्वाधिक कार्य जयपुर में होता है।
‘मीनाकारी’ की कारीगरी आमेर के ‘राजा मानसिंह प्रथम’ (1589-1614 ई.) लाहौर से अपने साथ लाए थे।
जयपुर के मीनाकार सोने चॉंदी के आभूषणों पर कलात्मक मीनाकारी के लिए विश्व प्रसिद्व है।
जयपुर में रत्नों की कटाई, घिसाई एवं मिनाकारी के कार्य को प्रोत्साहित करने के लिए जयपुर जेम्स स्टोन की स्थापना की गई।
कॉंच पर सोने की मीनाकारी के लिए प्रतापगढ़ चित्तौड़गढ़ के मीनाकार प्रसिद्व है।इस कला को थेवा कला कहा जाता है। यह कला प्रतापगढ़ के राज सोनी परिवार में केवल पुरूषों में प्रचलित है।
कागज जैसे पतले पत्थर पर मीनाकारी के लिए बीकानेर के मीनाकार विश्व प्रसिद्व है। बीकानेर के कलाकारों को उस्ताद कहा जाता है।
पीतल पर मीनाकारी के लिए जयपुर एवं अलवर प्रसिद्व है। पीतल पर मीनाकारी को सर्वाधिक कार्य अलवर में होता है।
बीकानेर में उॅंटों की खाल पर जो मीनाकारी की जाती है उसे उस्ताकला कहते है।
हिसामुद्वीन इस कला के महान कलाकार थे।
जयपुर के मीनाकार कुदरतसिंह को मीनाकारी के लिए 1988 ई. में ‘पद्मश्री’ सम्मान प्राप्त हुआ।
Question 30 of 41
30. Question
2 points
निम्नलिखित में से कौन सा त्यौहार होली के लगभग एक पखवाड़ा बाद मनाया जाता है ?
Correct
गणगौरः- चैत्र शुक्ल तृतीया
गणगौर से पूर्व (1 दिन) सिंजारा भेजा जाता है।
गणगौर, शिव व पार्वती का पर्व है।
जयपुर की गणगौर प्रसिद्ध है।
गणगौर का निर्माण उदय में होता है।
बिना ईसर की गणगौर जैसलमेर की प्रसिद्ध है।
इस त्यौहार से त्यौहारों की समाप्ति मानी जाती है।
यह राजस्थाना त्योहारों में सर्वाधिक गीतों वाला त्योहार है।
Incorrect
गणगौरः- चैत्र शुक्ल तृतीया
गणगौर से पूर्व (1 दिन) सिंजारा भेजा जाता है।
गणगौर, शिव व पार्वती का पर्व है।
जयपुर की गणगौर प्रसिद्ध है।
गणगौर का निर्माण उदय में होता है।
बिना ईसर की गणगौर जैसलमेर की प्रसिद्ध है।
इस त्यौहार से त्यौहारों की समाप्ति मानी जाती है।
यह राजस्थाना त्योहारों में सर्वाधिक गीतों वाला त्योहार है।
Unattempted
गणगौरः- चैत्र शुक्ल तृतीया
गणगौर से पूर्व (1 दिन) सिंजारा भेजा जाता है।
गणगौर, शिव व पार्वती का पर्व है।
जयपुर की गणगौर प्रसिद्ध है।
गणगौर का निर्माण उदय में होता है।
बिना ईसर की गणगौर जैसलमेर की प्रसिद्ध है।
इस त्यौहार से त्यौहारों की समाप्ति मानी जाती है।
यह राजस्थाना त्योहारों में सर्वाधिक गीतों वाला त्योहार है।
Question 31 of 41
31. Question
2 points
राजस्थानी संस्कृति में ‘जांनोटण’ क्या है ?
Correct
जांनोटण –
वर पक्ष की ओर से दिया जाने वाला भोज जांनोटण कहलाता है।
Incorrect
जांनोटण –
वर पक्ष की ओर से दिया जाने वाला भोज जांनोटण कहलाता है।
Unattempted
जांनोटण –
वर पक्ष की ओर से दिया जाने वाला भोज जांनोटण कहलाता है।
Question 32 of 41
32. Question
2 points
‘मेमंद’ आभूषण पहना जाता है
Correct
स्त्रियों के सिर के अन्य प्रमुख आभूषण : शीशफूल, बोरला, टीका / टिकड़ा, सांकली, दामनी, सूर मांग,, ताबिज, फीणी, माँग, रखड़ी
मेमंद- स्त्रियों के सिर का आभूषण है
Incorrect
स्त्रियों के सिर के अन्य प्रमुख आभूषण : शीशफूल, बोरला, टीका / टिकड़ा, सांकली, दामनी, सूर मांग,, ताबिज, फीणी, माँग, रखड़ी
मेमंद- स्त्रियों के सिर का आभूषण है
Unattempted
स्त्रियों के सिर के अन्य प्रमुख आभूषण : शीशफूल, बोरला, टीका / टिकड़ा, सांकली, दामनी, सूर मांग,, ताबिज, फीणी, माँग, रखड़ी
मेमंद- स्त्रियों के सिर का आभूषण है
Question 33 of 41
33. Question
2 points
राजस्थान में गोला, दरोगा, चाकर, चेला आदि सम्बोधन किसके लिए प्रयुक्त होते थे? –
Correct
******राजस्थान में गोला, दरोगा, चाकर, चेला, घरेलू दास के लिए प्रयुक्त संबोधन थे। ये वंशानुगत सेवक हुआ करते थे।
Incorrect
******राजस्थान में गोला, दरोगा, चाकर, चेला, घरेलू दास के लिए प्रयुक्त संबोधन थे। ये वंशानुगत सेवक हुआ करते थे।
Unattempted
******राजस्थान में गोला, दरोगा, चाकर, चेला, घरेलू दास के लिए प्रयुक्त संबोधन थे। ये वंशानुगत सेवक हुआ करते थे।
Question 34 of 41
34. Question
2 points
‘निमाड़ी एवं रागड़ी’ किस बोली की विशेषता है?
Correct
मालवी
यह मालवा क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा है। इस बोली में मारवाड़ी एवं ढूँढाड़ी दोनों की कुछ विशेषताएँ पायी जाती है। कहीं-कहीं मराठी का भी प्रभाव झलकता है। मालवी एक कर्णप्रिय एवं कोमल भाषा है। इस बोली का राँगड़ी रूप कुछ कर्कश है, जो मालवा क्षेत्र के राजपूतों की बोली है।
नीमाड़ी–इसे मालवी की उपबोली माना जाता है। नीमाड़ी को दक्षिणी राजस्थानी भी कहा जाता है। इस पर गुजराती, भीली एवं खानदेशी का प्रभाव है।
खैराड़ी–शाहपुरा (भीलवाड़ा) बूँदी आदि के कुछ इलाकों में बोली जाने वाली बोली, जो मेवाड़ी, ढूँढाड़ी एवं हाड़ौती का मिश्रण है।
रांगड़ी–मालवा के राजपूतों में मालवी एवं मारवाड़ी के मिश्रण से बनी रांगड़ी बोली भी प्रचलित है।
Incorrect
मालवी
यह मालवा क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा है। इस बोली में मारवाड़ी एवं ढूँढाड़ी दोनों की कुछ विशेषताएँ पायी जाती है। कहीं-कहीं मराठी का भी प्रभाव झलकता है। मालवी एक कर्णप्रिय एवं कोमल भाषा है। इस बोली का राँगड़ी रूप कुछ कर्कश है, जो मालवा क्षेत्र के राजपूतों की बोली है।
नीमाड़ी–इसे मालवी की उपबोली माना जाता है। नीमाड़ी को दक्षिणी राजस्थानी भी कहा जाता है। इस पर गुजराती, भीली एवं खानदेशी का प्रभाव है।
खैराड़ी–शाहपुरा (भीलवाड़ा) बूँदी आदि के कुछ इलाकों में बोली जाने वाली बोली, जो मेवाड़ी, ढूँढाड़ी एवं हाड़ौती का मिश्रण है।
रांगड़ी–मालवा के राजपूतों में मालवी एवं मारवाड़ी के मिश्रण से बनी रांगड़ी बोली भी प्रचलित है।
Unattempted
मालवी
यह मालवा क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा है। इस बोली में मारवाड़ी एवं ढूँढाड़ी दोनों की कुछ विशेषताएँ पायी जाती है। कहीं-कहीं मराठी का भी प्रभाव झलकता है। मालवी एक कर्णप्रिय एवं कोमल भाषा है। इस बोली का राँगड़ी रूप कुछ कर्कश है, जो मालवा क्षेत्र के राजपूतों की बोली है।
नीमाड़ी–इसे मालवी की उपबोली माना जाता है। नीमाड़ी को दक्षिणी राजस्थानी भी कहा जाता है। इस पर गुजराती, भीली एवं खानदेशी का प्रभाव है।
खैराड़ी–शाहपुरा (भीलवाड़ा) बूँदी आदि के कुछ इलाकों में बोली जाने वाली बोली, जो मेवाड़ी, ढूँढाड़ी एवं हाड़ौती का मिश्रण है।
रांगड़ी–मालवा के राजपूतों में मालवी एवं मारवाड़ी के मिश्रण से बनी रांगड़ी बोली भी प्रचलित है।
Question 35 of 41
35. Question
2 points
बुद्धि विलास’ ग्रंथ के लेखक हैं?
Correct
बुद्धि विलास के रचियता बखतराम शाह थे।
1770 ई. में इस ग्रंथ की रचना की थी।
इस ग्रंथ में जयपुर नगर के निर्माण की जानकारी भी देते हैं,
उनका एक अन्य ग्रंथ ‘मिथ्यात्वखण्डन’ भी है।
इनमें राजनीतिक घटनाओं के अतिरिक्त, आमोद-प्रमोद विषयक पहलुओं का भी वर्णन मिलता है।
Incorrect
बुद्धि विलास के रचियता बखतराम शाह थे।
1770 ई. में इस ग्रंथ की रचना की थी।
इस ग्रंथ में जयपुर नगर के निर्माण की जानकारी भी देते हैं,
उनका एक अन्य ग्रंथ ‘मिथ्यात्वखण्डन’ भी है।
इनमें राजनीतिक घटनाओं के अतिरिक्त, आमोद-प्रमोद विषयक पहलुओं का भी वर्णन मिलता है।
Unattempted
बुद्धि विलास के रचियता बखतराम शाह थे।
1770 ई. में इस ग्रंथ की रचना की थी।
इस ग्रंथ में जयपुर नगर के निर्माण की जानकारी भी देते हैं,
उनका एक अन्य ग्रंथ ‘मिथ्यात्वखण्डन’ भी है।
इनमें राजनीतिक घटनाओं के अतिरिक्त, आमोद-प्रमोद विषयक पहलुओं का भी वर्णन मिलता है।
Question 36 of 41
36. Question
2 points
निम्नलिखित में से राजस्थान के किस स्थान पर सोमेश्वर मंदिर स्थित है ?
Correct
किराडू के मंदिर (राजस्थान का खजुराहो) –
किराडू की स्थापत्य कला नागर शैली की है।
किराडू का प्राचीन नाम किरात कूप था।
यह प्राचीन काल में परमार शासकों की राजधानी रही थी।
बाड़मेर के हाथमा गांव के निकट एक पहाड़ी के नीचे किराडू में भगवान विष्णु व शिव मंदिर स्थित है।
यहां पर प्रसिद्ध सोमेश्वर मंदिर भी स्थित है सोमेश्वर मंदिर किराडू का सबसे प्रमुख एवं बड़ा मंदिर है।
किराडू को पुरातत्व, इतिहास, अध्यात्म की त्रिवेणी के नाम से जाना जाता है।
यहां पर किराडू के मंदिर के अलावा सोमेश्वर मंदिर, शिव मंदिर, विष्णु मंदिर, रणछोड़ मंदिर, सचिया माता मंदिर स्थित है।
किराडू मिथुन मूर्तियों की भव्यता का कारण राजस्थान का खजुराहो कहलाता है।
Incorrect
किराडू के मंदिर (राजस्थान का खजुराहो) –
किराडू की स्थापत्य कला नागर शैली की है।
किराडू का प्राचीन नाम किरात कूप था।
यह प्राचीन काल में परमार शासकों की राजधानी रही थी।
बाड़मेर के हाथमा गांव के निकट एक पहाड़ी के नीचे किराडू में भगवान विष्णु व शिव मंदिर स्थित है।
यहां पर प्रसिद्ध सोमेश्वर मंदिर भी स्थित है सोमेश्वर मंदिर किराडू का सबसे प्रमुख एवं बड़ा मंदिर है।
किराडू को पुरातत्व, इतिहास, अध्यात्म की त्रिवेणी के नाम से जाना जाता है।
यहां पर किराडू के मंदिर के अलावा सोमेश्वर मंदिर, शिव मंदिर, विष्णु मंदिर, रणछोड़ मंदिर, सचिया माता मंदिर स्थित है।
किराडू मिथुन मूर्तियों की भव्यता का कारण राजस्थान का खजुराहो कहलाता है।
Unattempted
किराडू के मंदिर (राजस्थान का खजुराहो) –
किराडू की स्थापत्य कला नागर शैली की है।
किराडू का प्राचीन नाम किरात कूप था।
यह प्राचीन काल में परमार शासकों की राजधानी रही थी।
बाड़मेर के हाथमा गांव के निकट एक पहाड़ी के नीचे किराडू में भगवान विष्णु व शिव मंदिर स्थित है।
यहां पर प्रसिद्ध सोमेश्वर मंदिर भी स्थित है सोमेश्वर मंदिर किराडू का सबसे प्रमुख एवं बड़ा मंदिर है।
किराडू को पुरातत्व, इतिहास, अध्यात्म की त्रिवेणी के नाम से जाना जाता है।
यहां पर किराडू के मंदिर के अलावा सोमेश्वर मंदिर, शिव मंदिर, विष्णु मंदिर, रणछोड़ मंदिर, सचिया माता मंदिर स्थित है।
किराडू मिथुन मूर्तियों की भव्यता का कारण राजस्थान का खजुराहो कहलाता है।
Question 37 of 41
37. Question
2 points
संयुक्त राजस्थान का 18 अप्रैल, 1948 को किसने उद्घाटन किया?
Correct
तृतीय चरण – संयुक्त राजस्थान
तिथि – 18 अप्रैल 1948
सम्मिलित रियासत – उदयपुर रियासत
राजधानी – उदयपुर
उद्घाटनकर्ता – पं. जवाहर लाल नेहरु
प्रधानमंत्री – माणिक्यलाल वर्मा (उदयपुर)
राजप्रमुख – भूपाल सिंह (उदयपुर)
उपराजप्रमुख – भीम सिंह (कोटा)
Incorrect
तृतीय चरण – संयुक्त राजस्थान
तिथि – 18 अप्रैल 1948
सम्मिलित रियासत – उदयपुर रियासत
राजधानी – उदयपुर
उद्घाटनकर्ता – पं. जवाहर लाल नेहरु
प्रधानमंत्री – माणिक्यलाल वर्मा (उदयपुर)
राजप्रमुख – भूपाल सिंह (उदयपुर)
उपराजप्रमुख – भीम सिंह (कोटा)
Unattempted
तृतीय चरण – संयुक्त राजस्थान
तिथि – 18 अप्रैल 1948
सम्मिलित रियासत – उदयपुर रियासत
राजधानी – उदयपुर
उद्घाटनकर्ता – पं. जवाहर लाल नेहरु
प्रधानमंत्री – माणिक्यलाल वर्मा (उदयपुर)
राजप्रमुख – भूपाल सिंह (उदयपुर)
उपराजप्रमुख – भीम सिंह (कोटा)
Question 38 of 41
38. Question
2 points
आभानेरी तथा राजौरगढ़ के कलात्मक वैभव किस काल के हैं?
Correct
आभानेरी और राजोरगढ़ का कलात्मक वैभव:
आभानेरी:
यह उत्तरी राजस्थान में दौसा जिले का एक गाँव है, इसे ‘द सिटी ऑफ़ ब्राइटनेस’ भी कहा जाता है।
राजस्थान का यह प्राचीन गांव अपने गुप्तोत्तर या प्रारंभिक मध्ययुगीन स्मारकों, चांद बावड़ी और हर्षत माता मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
इस गांव की स्थापना 9वीं शताब्दी में गुर्जर साम्राज्य के महाराज राजा चंद ने की थी।
राजोरगढ़:
यह राजस्थान के अलवर जिले का एक गाँव है। प्राचीन काल में यह स्थान राज्यपुरा, परानगर (पार्श्वनगर), नीलकंठ आदि के नाम से जाना जाता था। नीलकंठ प्रसिद्ध नीलकंठेश्वर शिव मंदिर से लिया गया एक नाम है।
प्रतिहार वंश यानि राजोर अभिलेख (अलवर) के गुर्जरों का प्रतिहार वंश।
इतिहासकार राम शंकर त्रिपाठी कहते हैं कि राजोर शिलालेख प्रतिहारों के गुर्जर मूल की पुष्टि करता है।
यह उत्तरी राजस्थान में दौसा जिले का एक गाँव है, इसे ‘द सिटी ऑफ़ ब्राइटनेस’ भी कहा जाता है।
राजस्थान का यह प्राचीन गांव अपने गुप्तोत्तर या प्रारंभिक मध्ययुगीन स्मारकों, चांद बावड़ी और हर्षत माता मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
इस गांव की स्थापना 9वीं शताब्दी में गुर्जर साम्राज्य के महाराज राजा चंद ने की थी।
राजोरगढ़:
यह राजस्थान के अलवर जिले का एक गाँव है। प्राचीन काल में यह स्थान राज्यपुरा, परानगर (पार्श्वनगर), नीलकंठ आदि के नाम से जाना जाता था। नीलकंठ प्रसिद्ध नीलकंठेश्वर शिव मंदिर से लिया गया एक नाम है।
प्रतिहार वंश यानि राजोर अभिलेख (अलवर) के गुर्जरों का प्रतिहार वंश।
इतिहासकार राम शंकर त्रिपाठी कहते हैं कि राजोर शिलालेख प्रतिहारों के गुर्जर मूल की पुष्टि करता है।
यह उत्तरी राजस्थान में दौसा जिले का एक गाँव है, इसे ‘द सिटी ऑफ़ ब्राइटनेस’ भी कहा जाता है।
राजस्थान का यह प्राचीन गांव अपने गुप्तोत्तर या प्रारंभिक मध्ययुगीन स्मारकों, चांद बावड़ी और हर्षत माता मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
इस गांव की स्थापना 9वीं शताब्दी में गुर्जर साम्राज्य के महाराज राजा चंद ने की थी।
राजोरगढ़:
यह राजस्थान के अलवर जिले का एक गाँव है। प्राचीन काल में यह स्थान राज्यपुरा, परानगर (पार्श्वनगर), नीलकंठ आदि के नाम से जाना जाता था। नीलकंठ प्रसिद्ध नीलकंठेश्वर शिव मंदिर से लिया गया एक नाम है।
प्रतिहार वंश यानि राजोर अभिलेख (अलवर) के गुर्जरों का प्रतिहार वंश।
इतिहासकार राम शंकर त्रिपाठी कहते हैं कि राजोर शिलालेख प्रतिहारों के गुर्जर मूल की पुष्टि करता है।