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Question 1 of 40
1. Question
2 points
निम्नलिखित में से राजपूताना के किस क्षेत्र पर वरीक वंश ने शासन किया था?
Correct
व्याख्या :
गुप्तकाल में राजस्थान गुप्तों के प्रत्यक्ष नियंत्रण में नहीं रहा, जिससे यहाँ स्थानीय जनजातीय राज्यों की उपस्थिति दृष्टिगोचर होती है, इन राज्यों में वरीक राजवंश प्रमुख है।
371 ई. के विजयगढ़ (बयानो प्रस्तर शिलालेख से विष्णुवर्धन नामक वरीक वंशीय राजा का उल्लेख प्राप्त है, जो यशोवर्धन का पुत्र था,
संभवतः वरीक वंशीय शासक समुद्रगुप्त के सामंत रहे थे।
Incorrect
व्याख्या :
गुप्तकाल में राजस्थान गुप्तों के प्रत्यक्ष नियंत्रण में नहीं रहा, जिससे यहाँ स्थानीय जनजातीय राज्यों की उपस्थिति दृष्टिगोचर होती है, इन राज्यों में वरीक राजवंश प्रमुख है।
371 ई. के विजयगढ़ (बयानो प्रस्तर शिलालेख से विष्णुवर्धन नामक वरीक वंशीय राजा का उल्लेख प्राप्त है, जो यशोवर्धन का पुत्र था,
संभवतः वरीक वंशीय शासक समुद्रगुप्त के सामंत रहे थे।
Unattempted
व्याख्या :
गुप्तकाल में राजस्थान गुप्तों के प्रत्यक्ष नियंत्रण में नहीं रहा, जिससे यहाँ स्थानीय जनजातीय राज्यों की उपस्थिति दृष्टिगोचर होती है, इन राज्यों में वरीक राजवंश प्रमुख है।
371 ई. के विजयगढ़ (बयानो प्रस्तर शिलालेख से विष्णुवर्धन नामक वरीक वंशीय राजा का उल्लेख प्राप्त है, जो यशोवर्धन का पुत्र था,
संभवतः वरीक वंशीय शासक समुद्रगुप्त के सामंत रहे थे।
Question 2 of 40
2. Question
2 points
सन् 1177 में सामन्त सिंह किस के हाथों पराजित होने के बाद डूंगरपुर राज्य की स्थापना की गई थी
Correct
चौहान वंश की नाडोल शाखा के शासक कीर्तिपाल (कीतू) ने मेवाड़ शासक सामंत सिंह को मेवाड से निकाल बाहर किया।
सामंत सिंह ने 1178 ई. के लगभग वागड़ (वर्तमान डूंगरपुर, बांसवाड़ा) क्षेत्र में डूंगरपुर राज्य की स्थापना की।
वटपद्रक (बड़ौदा) सामंत सिंह के राज्य की राजधानी थी।
Incorrect
चौहान वंश की नाडोल शाखा के शासक कीर्तिपाल (कीतू) ने मेवाड़ शासक सामंत सिंह को मेवाड से निकाल बाहर किया।
सामंत सिंह ने 1178 ई. के लगभग वागड़ (वर्तमान डूंगरपुर, बांसवाड़ा) क्षेत्र में डूंगरपुर राज्य की स्थापना की।
वटपद्रक (बड़ौदा) सामंत सिंह के राज्य की राजधानी थी।
Unattempted
चौहान वंश की नाडोल शाखा के शासक कीर्तिपाल (कीतू) ने मेवाड़ शासक सामंत सिंह को मेवाड से निकाल बाहर किया।
सामंत सिंह ने 1178 ई. के लगभग वागड़ (वर्तमान डूंगरपुर, बांसवाड़ा) क्षेत्र में डूंगरपुर राज्य की स्थापना की।
वटपद्रक (बड़ौदा) सामंत सिंह के राज्य की राजधानी थी।
Question 3 of 40
3. Question
2 points
किस राजपूत राजा की मृत्यु बुरहानपुर में हुई?
Correct
व्याख्या :
बीकानेर नरेश रायसिंह (1574-1612 ई.) ने मुगल सिपहसालार के रूप में अकबर तथा जहाँगीर की सेवा की।
जहाँगीर ने 1610 में रायसिंह की नियुक्ति दक्षिण भारत में की थी।
दक्षिण भारत में बुरहानपुर में रायसिंह की मृत्यु हुई।
रायसिंह ने बीकानेर में जूनागढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया था।
Incorrect
व्याख्या :
बीकानेर नरेश रायसिंह (1574-1612 ई.) ने मुगल सिपहसालार के रूप में अकबर तथा जहाँगीर की सेवा की।
जहाँगीर ने 1610 में रायसिंह की नियुक्ति दक्षिण भारत में की थी।
दक्षिण भारत में बुरहानपुर में रायसिंह की मृत्यु हुई।
रायसिंह ने बीकानेर में जूनागढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया था।
Unattempted
व्याख्या :
बीकानेर नरेश रायसिंह (1574-1612 ई.) ने मुगल सिपहसालार के रूप में अकबर तथा जहाँगीर की सेवा की।
जहाँगीर ने 1610 में रायसिंह की नियुक्ति दक्षिण भारत में की थी।
दक्षिण भारत में बुरहानपुर में रायसिंह की मृत्यु हुई।
रायसिंह ने बीकानेर में जूनागढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया था।
Question 4 of 40
4. Question
2 points
राजकुमार अजीतसिंह को जोधपुर का राज्य पुनः दिलाने में किसका योगदान सर्वाधिक रहा है?
Correct
व्याख्या :
राजकुमार अजीत सिंह को औरंगजेब की कैद से निकालना (1679) दुर्गादास की युक्ति थी।
औरंगजेब के विरुद्ध मेवाड़-मारवाड़ गठजोड़ भी दुर्गादास के प्रयत्नों से हुआ।
दुर्गादास ने औरंगजेब के पुत्र अकबर-II को बादशाह के विरुद्ध करके कूटनीतिपूर्वक औरंगजेब का मारवाड़ से ध्यान हटाया।
वीर दुर्गादास राठौड़ के प्रयत्नों से महाराजा अजीतसिंह (महाराजा जसवंतसिंह के पुत्र) को मारवाड़ का राज पुनः प्राप्त हुआ
महाराजा अजीतसिंह दुर्गादास से मतभिन्नता के कारण रुष्ट हो गया, जिससे व्यथित दुर्गादास स्वयं ही जोधपुर छोड़कर उदयपुर चला गया।
वीर दुर्गादास की स्वामीभक्ति के लिए मारवाड़ में कहावत प्रचलित है “मायड़ ऐसा पूत जण जैसा दुर्गादास।”
जेम्स टॉड ने दुर्गादास को “राठौड़ों का युलीसेस” कहा है।
Incorrect
व्याख्या :
राजकुमार अजीत सिंह को औरंगजेब की कैद से निकालना (1679) दुर्गादास की युक्ति थी।
औरंगजेब के विरुद्ध मेवाड़-मारवाड़ गठजोड़ भी दुर्गादास के प्रयत्नों से हुआ।
दुर्गादास ने औरंगजेब के पुत्र अकबर-II को बादशाह के विरुद्ध करके कूटनीतिपूर्वक औरंगजेब का मारवाड़ से ध्यान हटाया।
वीर दुर्गादास राठौड़ के प्रयत्नों से महाराजा अजीतसिंह (महाराजा जसवंतसिंह के पुत्र) को मारवाड़ का राज पुनः प्राप्त हुआ
महाराजा अजीतसिंह दुर्गादास से मतभिन्नता के कारण रुष्ट हो गया, जिससे व्यथित दुर्गादास स्वयं ही जोधपुर छोड़कर उदयपुर चला गया।
वीर दुर्गादास की स्वामीभक्ति के लिए मारवाड़ में कहावत प्रचलित है “मायड़ ऐसा पूत जण जैसा दुर्गादास।”
जेम्स टॉड ने दुर्गादास को “राठौड़ों का युलीसेस” कहा है।
Unattempted
व्याख्या :
राजकुमार अजीत सिंह को औरंगजेब की कैद से निकालना (1679) दुर्गादास की युक्ति थी।
औरंगजेब के विरुद्ध मेवाड़-मारवाड़ गठजोड़ भी दुर्गादास के प्रयत्नों से हुआ।
दुर्गादास ने औरंगजेब के पुत्र अकबर-II को बादशाह के विरुद्ध करके कूटनीतिपूर्वक औरंगजेब का मारवाड़ से ध्यान हटाया।
वीर दुर्गादास राठौड़ के प्रयत्नों से महाराजा अजीतसिंह (महाराजा जसवंतसिंह के पुत्र) को मारवाड़ का राज पुनः प्राप्त हुआ
महाराजा अजीतसिंह दुर्गादास से मतभिन्नता के कारण रुष्ट हो गया, जिससे व्यथित दुर्गादास स्वयं ही जोधपुर छोड़कर उदयपुर चला गया।
वीर दुर्गादास की स्वामीभक्ति के लिए मारवाड़ में कहावत प्रचलित है “मायड़ ऐसा पूत जण जैसा दुर्गादास।”
जेम्स टॉड ने दुर्गादास को “राठौड़ों का युलीसेस” कहा है।
Question 5 of 40
5. Question
2 points
राणा साँगा और बाबर के बीच ऐतिहासिक युद्ध कहाँ लड़ा गया? .
Correct
व्याख्या :
खानवा का युद्ध 17 मार्च 1527 ई. को महाराणा सांगा एवं बाबर के मध्य बयाना के पास (वर्तमान में रुपवास में) हुआ था।
Incorrect
व्याख्या :
खानवा का युद्ध 17 मार्च 1527 ई. को महाराणा सांगा एवं बाबर के मध्य बयाना के पास (वर्तमान में रुपवास में) हुआ था।
Unattempted
व्याख्या :
खानवा का युद्ध 17 मार्च 1527 ई. को महाराणा सांगा एवं बाबर के मध्य बयाना के पास (वर्तमान में रुपवास में) हुआ था।
Question 6 of 40
6. Question
2 points
मध्यकालीन राजस्थान के राज्यों में शासक के बाद सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकारी जाना जाता था
Correct
व्याख्या :
मध्यकालीन राजस्थान में राज्यों में शासक की सहायतार्थ मंत्री व उच्चाधिकारी हुआ करते थे,
जिनकी नियुक्ति स्वयं शासक करते थे, जिनकी सलाह मानना या न मानना राजा पर निर्भर था।
मंत्रियों में महामंत्री/महामात्य या ‘प्रधानमंत्री’ राजा का प्रमुख सलाहकार होता था।
संपूर्ण शासन व्यवस्था का कुशलतापूर्वक संचालन व अन्य मंत्रियों के कार्य की देखरेख करना इसका मुख्य कार्य था।
मध्यकालीन राजस्थान के राज्यों में मंत्रियों में महामंत्री/महामात्य या ‘प्रधानमंत्री’ राजा का प्रमुख सलाहकार होते थे जिसे प्रधान के रूप में जाना जाता है
Incorrect
व्याख्या :
मध्यकालीन राजस्थान में राज्यों में शासक की सहायतार्थ मंत्री व उच्चाधिकारी हुआ करते थे,
जिनकी नियुक्ति स्वयं शासक करते थे, जिनकी सलाह मानना या न मानना राजा पर निर्भर था।
मंत्रियों में महामंत्री/महामात्य या ‘प्रधानमंत्री’ राजा का प्रमुख सलाहकार होता था।
संपूर्ण शासन व्यवस्था का कुशलतापूर्वक संचालन व अन्य मंत्रियों के कार्य की देखरेख करना इसका मुख्य कार्य था।
मध्यकालीन राजस्थान के राज्यों में मंत्रियों में महामंत्री/महामात्य या ‘प्रधानमंत्री’ राजा का प्रमुख सलाहकार होते थे जिसे प्रधान के रूप में जाना जाता है
Unattempted
व्याख्या :
मध्यकालीन राजस्थान में राज्यों में शासक की सहायतार्थ मंत्री व उच्चाधिकारी हुआ करते थे,
जिनकी नियुक्ति स्वयं शासक करते थे, जिनकी सलाह मानना या न मानना राजा पर निर्भर था।
मंत्रियों में महामंत्री/महामात्य या ‘प्रधानमंत्री’ राजा का प्रमुख सलाहकार होता था।
संपूर्ण शासन व्यवस्था का कुशलतापूर्वक संचालन व अन्य मंत्रियों के कार्य की देखरेख करना इसका मुख्य कार्य था।
मध्यकालीन राजस्थान के राज्यों में मंत्रियों में महामंत्री/महामात्य या ‘प्रधानमंत्री’ राजा का प्रमुख सलाहकार होते थे जिसे प्रधान के रूप में जाना जाता है
Question 7 of 40
7. Question
2 points
अलखिया सम्प्रदाय की स्थापना किसने की?
Correct
व्याख्या :
चुरू जिले के सुलाखियाँ गांव में जन्मे स्वामी लालगिरि ने निर्गुण अलखिया संप्रदाय की स्थापना 10वीं शताब्दी में की।
इसकी प्रमुख पीठ बीकानेर में है।
इस संप्राय का प्रमुख ग्रंथ अलख स्तुति प्रकाश’ है।
Incorrect
व्याख्या :
चुरू जिले के सुलाखियाँ गांव में जन्मे स्वामी लालगिरि ने निर्गुण अलखिया संप्रदाय की स्थापना 10वीं शताब्दी में की।
इसकी प्रमुख पीठ बीकानेर में है।
इस संप्राय का प्रमुख ग्रंथ अलख स्तुति प्रकाश’ है।
Unattempted
व्याख्या :
चुरू जिले के सुलाखियाँ गांव में जन्मे स्वामी लालगिरि ने निर्गुण अलखिया संप्रदाय की स्थापना 10वीं शताब्दी में की।
इसकी प्रमुख पीठ बीकानेर में है।
इस संप्राय का प्रमुख ग्रंथ अलख स्तुति प्रकाश’ है।
Question 8 of 40
8. Question
2 points
1818 ई. में कम्पनी की ओर से राजपूत राज्यों से संधि करने वाला अधिकारी था
Correct
व्याख्या :
1813 ई. में लार्ड हेस्टिंग्स गर्वनर जनरल बनकर भारत आया। उसका प्रमुख उद्देश्य भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की सर्वोच्च सत्ता स्थापित करना था।
लार्ड हेस्टिंग्स ने राजस्थान के राज्यों को कम्पनी सरकार के संरक्षण में लेने हेतु दिल्ली रेजीडेण्ट चार्ल्स मेटकॉफ़ को अधिकृत किया कि वह राजपूत राजाओं से यथोचित संधियां करे।
1818 ई. में कंपनी की ओर से राजपूत शासकों से संधि करने वाला अधिकारी चार्ल्स मेटकॉफ़ था।
Incorrect
व्याख्या :
1813 ई. में लार्ड हेस्टिंग्स गर्वनर जनरल बनकर भारत आया। उसका प्रमुख उद्देश्य भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की सर्वोच्च सत्ता स्थापित करना था।
लार्ड हेस्टिंग्स ने राजस्थान के राज्यों को कम्पनी सरकार के संरक्षण में लेने हेतु दिल्ली रेजीडेण्ट चार्ल्स मेटकॉफ़ को अधिकृत किया कि वह राजपूत राजाओं से यथोचित संधियां करे।
1818 ई. में कंपनी की ओर से राजपूत शासकों से संधि करने वाला अधिकारी चार्ल्स मेटकॉफ़ था।
Unattempted
व्याख्या :
1813 ई. में लार्ड हेस्टिंग्स गर्वनर जनरल बनकर भारत आया। उसका प्रमुख उद्देश्य भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की सर्वोच्च सत्ता स्थापित करना था।
लार्ड हेस्टिंग्स ने राजस्थान के राज्यों को कम्पनी सरकार के संरक्षण में लेने हेतु दिल्ली रेजीडेण्ट चार्ल्स मेटकॉफ़ को अधिकृत किया कि वह राजपूत राजाओं से यथोचित संधियां करे।
1818 ई. में कंपनी की ओर से राजपूत शासकों से संधि करने वाला अधिकारी चार्ल्स मेटकॉफ़ था।
Question 9 of 40
9. Question
2 points
1857 के विप्लव के समय ‘राजपूताना रेजीडेन्सी’ में एजेन्ट टू दि गवर्नर जनरल'(ए.जी.जी.) कौन थे?
Correct
व्याख्या :
‘एजेन्ट टू गवर्नर जनरल’ या एजीजी, राजपूताने में कंपनी सरकार का मुख्य प्रतिनिधि होता था
एजीजी रियासतों में नियुक्त पॉलिटिकल एजेन्ट्स से रिपोर्ट लेता था
एजीजी गवर्नर जनरल एवं रियासतों के बीच सेतु का काम करता था।
1857 में जॉर्ज पैट्रिक लॉरेन्स एजीजी था।
इसका कार्यालय अजमेर में था।
Incorrect
व्याख्या :
‘एजेन्ट टू गवर्नर जनरल’ या एजीजी, राजपूताने में कंपनी सरकार का मुख्य प्रतिनिधि होता था
एजीजी रियासतों में नियुक्त पॉलिटिकल एजेन्ट्स से रिपोर्ट लेता था
एजीजी गवर्नर जनरल एवं रियासतों के बीच सेतु का काम करता था।
1857 में जॉर्ज पैट्रिक लॉरेन्स एजीजी था।
इसका कार्यालय अजमेर में था।
Unattempted
व्याख्या :
‘एजेन्ट टू गवर्नर जनरल’ या एजीजी, राजपूताने में कंपनी सरकार का मुख्य प्रतिनिधि होता था
एजीजी रियासतों में नियुक्त पॉलिटिकल एजेन्ट्स से रिपोर्ट लेता था
एजीजी गवर्नर जनरल एवं रियासतों के बीच सेतु का काम करता था।
1857 में जॉर्ज पैट्रिक लॉरेन्स एजीजी था।
इसका कार्यालय अजमेर में था।
Question 10 of 40
10. Question
2 points
प्रताप सिंह बारहठ को किस षड़यंत्र केस के तहत जेल भेजा गया?
Correct
व्याख्या :
प्रतापसिंह बारहठ राजस्थान के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी केसरीसिंह बारहठ के पुत्र एवं जोरावरसिंह बारहना के भतीजे थे।
1915 में प्रथम विश्व युद्ध की परिस्थितियों का लाभ उठाने हेतु क्रान्तिकारियों ने सशस्त्र क्रान्ति की योजना बनाई।
इसका नेतृत्व रासबिहारी बोस तथा शचीन्द्रनाथ सान्याल ने किया।
प्रतापसिंह बारहठ भी इस योजना में शामिल थे।
इसमें शामिल क्रान्तिकारियों पर बनारस षडयंत्र केस चलाया गया।
बनारस षड़यंत्र केस में प्रताप सिंह बारहठ को सजा देकर बरेली जेल भेजा गया।
Incorrect
व्याख्या :
प्रतापसिंह बारहठ राजस्थान के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी केसरीसिंह बारहठ के पुत्र एवं जोरावरसिंह बारहना के भतीजे थे।
1915 में प्रथम विश्व युद्ध की परिस्थितियों का लाभ उठाने हेतु क्रान्तिकारियों ने सशस्त्र क्रान्ति की योजना बनाई।
इसका नेतृत्व रासबिहारी बोस तथा शचीन्द्रनाथ सान्याल ने किया।
प्रतापसिंह बारहठ भी इस योजना में शामिल थे।
इसमें शामिल क्रान्तिकारियों पर बनारस षडयंत्र केस चलाया गया।
बनारस षड़यंत्र केस में प्रताप सिंह बारहठ को सजा देकर बरेली जेल भेजा गया।
Unattempted
व्याख्या :
प्रतापसिंह बारहठ राजस्थान के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी केसरीसिंह बारहठ के पुत्र एवं जोरावरसिंह बारहना के भतीजे थे।
1915 में प्रथम विश्व युद्ध की परिस्थितियों का लाभ उठाने हेतु क्रान्तिकारियों ने सशस्त्र क्रान्ति की योजना बनाई।
इसका नेतृत्व रासबिहारी बोस तथा शचीन्द्रनाथ सान्याल ने किया।
प्रतापसिंह बारहठ भी इस योजना में शामिल थे।
इसमें शामिल क्रान्तिकारियों पर बनारस षडयंत्र केस चलाया गया।
बनारस षड़यंत्र केस में प्रताप सिंह बारहठ को सजा देकर बरेली जेल भेजा गया।
Question 11 of 40
11. Question
2 points
1936 में मघाराम ने किस स्थान पर बीकानेर प्रजा मंडल की स्थापना की?
Correct
व्याख्या :
4 अक्टूबर, 1936 ई. को बीकानेर में सर्वप्रथम मघाराम वैद्य ने ‘बीकानेर प्रजामंडल’ की स्थापना का।
इस पर बीकानेर महाराजा ने उन्हें 6 वर्ष के लिए बीकानेर से निर्वासित कर दिया,
22 मार्च 1937 को कलकत्ता में मघाराम वैद्य, लक्ष्मीदेवी आचार्य व उनके पति श्रीराम आचार्य न कलकत्ता में ‘बीकानेर राज्य प्रजामण्डल’ की स्थापना की।
इसका अध्यक्ष लक्ष्मीदेवी को बनाया गया।
इस प्रजामंडल द्वारा एक पुस्तिका ‘बीकानेर की थोथी-पोथी’ प्रकाशित करवाई गई।
जुलाई 1942 में बीकानेर के प्रसिद्ध वकील रघुवर दयाल गोयल ने बीकानेर राज्य परिषद्’ की स्थापना की।
Incorrect
व्याख्या :
4 अक्टूबर, 1936 ई. को बीकानेर में सर्वप्रथम मघाराम वैद्य ने ‘बीकानेर प्रजामंडल’ की स्थापना का।
इस पर बीकानेर महाराजा ने उन्हें 6 वर्ष के लिए बीकानेर से निर्वासित कर दिया,
22 मार्च 1937 को कलकत्ता में मघाराम वैद्य, लक्ष्मीदेवी आचार्य व उनके पति श्रीराम आचार्य न कलकत्ता में ‘बीकानेर राज्य प्रजामण्डल’ की स्थापना की।
इसका अध्यक्ष लक्ष्मीदेवी को बनाया गया।
इस प्रजामंडल द्वारा एक पुस्तिका ‘बीकानेर की थोथी-पोथी’ प्रकाशित करवाई गई।
जुलाई 1942 में बीकानेर के प्रसिद्ध वकील रघुवर दयाल गोयल ने बीकानेर राज्य परिषद्’ की स्थापना की।
Unattempted
व्याख्या :
4 अक्टूबर, 1936 ई. को बीकानेर में सर्वप्रथम मघाराम वैद्य ने ‘बीकानेर प्रजामंडल’ की स्थापना का।
इस पर बीकानेर महाराजा ने उन्हें 6 वर्ष के लिए बीकानेर से निर्वासित कर दिया,
22 मार्च 1937 को कलकत्ता में मघाराम वैद्य, लक्ष्मीदेवी आचार्य व उनके पति श्रीराम आचार्य न कलकत्ता में ‘बीकानेर राज्य प्रजामण्डल’ की स्थापना की।
इसका अध्यक्ष लक्ष्मीदेवी को बनाया गया।
इस प्रजामंडल द्वारा एक पुस्तिका ‘बीकानेर की थोथी-पोथी’ प्रकाशित करवाई गई।
जुलाई 1942 में बीकानेर के प्रसिद्ध वकील रघुवर दयाल गोयल ने बीकानेर राज्य परिषद्’ की स्थापना की।
Question 12 of 40
12. Question
2 points
किस समाचार-पत्र के माध्यम से विजयसिंह पथिक ने बिजोलिया किसान आंदोलन को समूचे भारत में का विषय बनाया?
Correct
व्याख्या :
पथिक ने बिजोलिया किसान आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर लाने तथा सहयोग प्राप्ति हेत गणेश विद्यार्थी को पत्र लिखा।
गणेश विद्यार्थी जी द्वारा अपने समाचार-पत्र “प्रताप” में बिजोलिया आंदोलन संबंधी समाचार देने के लिए अपने पत्र में एक स्थायी स्तम्भ ही खोल दिया।
इसके अतिरिक्त प्रयाग का ‘अभ्युदय’ कलकत्ता का “भारत मित्र” व पूना से लोकमान्य तिलक के ‘मराठा’ जैसे पत्रों ने भी बिजोलिया आंदोलन संबंधी लेख छापे।
Incorrect
व्याख्या :
पथिक ने बिजोलिया किसान आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर लाने तथा सहयोग प्राप्ति हेत गणेश विद्यार्थी को पत्र लिखा।
गणेश विद्यार्थी जी द्वारा अपने समाचार-पत्र “प्रताप” में बिजोलिया आंदोलन संबंधी समाचार देने के लिए अपने पत्र में एक स्थायी स्तम्भ ही खोल दिया।
इसके अतिरिक्त प्रयाग का ‘अभ्युदय’ कलकत्ता का “भारत मित्र” व पूना से लोकमान्य तिलक के ‘मराठा’ जैसे पत्रों ने भी बिजोलिया आंदोलन संबंधी लेख छापे।
Unattempted
व्याख्या :
पथिक ने बिजोलिया किसान आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर लाने तथा सहयोग प्राप्ति हेत गणेश विद्यार्थी को पत्र लिखा।
गणेश विद्यार्थी जी द्वारा अपने समाचार-पत्र “प्रताप” में बिजोलिया आंदोलन संबंधी समाचार देने के लिए अपने पत्र में एक स्थायी स्तम्भ ही खोल दिया।
इसके अतिरिक्त प्रयाग का ‘अभ्युदय’ कलकत्ता का “भारत मित्र” व पूना से लोकमान्य तिलक के ‘मराठा’ जैसे पत्रों ने भी बिजोलिया आंदोलन संबंधी लेख छापे।
Question 13 of 40
13. Question
2 points
राजस्थान का क्षेत्रफल निम्नलिखित यूरोपीय देशों में से किनके क्षेत्रफल के लगभग बराबर है ?
(A) नार्वे
(B) बेल्जियम
(C) स्विट्जरलैण्ड
(D) पोलैण्ड
Correct
व्याख्या : •
राजस्थान का क्षेत्रफल 3,42,239.74 वर्ग किमी. (132139.21 वर्ग मील) है।
राजस्थान भारत के कुल क्षेत्रफल का 10.41% तथा विश्व के कुल क्षेत्रफल का 0.25% रखता है।
राजस्थान, क्षेत्रफल के अनुसार भारत का सबसे बड़ा राज्य है। (राजस्थान प्रथम स्थान पर 1 नवम्बर, 2000 को जब मध्यप्रदेश से पृथक् होकर छत्तीसगढ़ अलग राज्य बना) तथा गोवा (3702 वर्ग किमी.) सबसे छोटा राज्य।
क्षेत्रफल के अनुसार राजस्थान का सबसे बड़ा जिला जैसलमेर (38401 वर्ग किमी.) तथा सबसे छोटा जिला धौलपुर (3034 वर्ग किमी.) है।
राजस्थान का क्षेत्रफल, जर्मनी, जापान, नार्वे, पौलेण्ड के लगभग बराबर है
ग्रेट ब्रिटेन से 2 गुना, चेकोस्लोवाकिया से 3 गुना, श्रीलंका से 5 गुना, बेल्जियम से 8 गुना, भूटान से 11 गुना तथा इजरायल से 17 गुना बड़ा है। (क्षेत्रफल के अनुसार 128 देश राजस्थान से छोटे है)
Incorrect
व्याख्या : •
राजस्थान का क्षेत्रफल 3,42,239.74 वर्ग किमी. (132139.21 वर्ग मील) है।
राजस्थान भारत के कुल क्षेत्रफल का 10.41% तथा विश्व के कुल क्षेत्रफल का 0.25% रखता है।
राजस्थान, क्षेत्रफल के अनुसार भारत का सबसे बड़ा राज्य है। (राजस्थान प्रथम स्थान पर 1 नवम्बर, 2000 को जब मध्यप्रदेश से पृथक् होकर छत्तीसगढ़ अलग राज्य बना) तथा गोवा (3702 वर्ग किमी.) सबसे छोटा राज्य।
क्षेत्रफल के अनुसार राजस्थान का सबसे बड़ा जिला जैसलमेर (38401 वर्ग किमी.) तथा सबसे छोटा जिला धौलपुर (3034 वर्ग किमी.) है।
राजस्थान का क्षेत्रफल, जर्मनी, जापान, नार्वे, पौलेण्ड के लगभग बराबर है
ग्रेट ब्रिटेन से 2 गुना, चेकोस्लोवाकिया से 3 गुना, श्रीलंका से 5 गुना, बेल्जियम से 8 गुना, भूटान से 11 गुना तथा इजरायल से 17 गुना बड़ा है। (क्षेत्रफल के अनुसार 128 देश राजस्थान से छोटे है)
Unattempted
व्याख्या : •
राजस्थान का क्षेत्रफल 3,42,239.74 वर्ग किमी. (132139.21 वर्ग मील) है।
राजस्थान भारत के कुल क्षेत्रफल का 10.41% तथा विश्व के कुल क्षेत्रफल का 0.25% रखता है।
राजस्थान, क्षेत्रफल के अनुसार भारत का सबसे बड़ा राज्य है। (राजस्थान प्रथम स्थान पर 1 नवम्बर, 2000 को जब मध्यप्रदेश से पृथक् होकर छत्तीसगढ़ अलग राज्य बना) तथा गोवा (3702 वर्ग किमी.) सबसे छोटा राज्य।
क्षेत्रफल के अनुसार राजस्थान का सबसे बड़ा जिला जैसलमेर (38401 वर्ग किमी.) तथा सबसे छोटा जिला धौलपुर (3034 वर्ग किमी.) है।
राजस्थान का क्षेत्रफल, जर्मनी, जापान, नार्वे, पौलेण्ड के लगभग बराबर है
ग्रेट ब्रिटेन से 2 गुना, चेकोस्लोवाकिया से 3 गुना, श्रीलंका से 5 गुना, बेल्जियम से 8 गुना, भूटान से 11 गुना तथा इजरायल से 17 गुना बड़ा है। (क्षेत्रफल के अनुसार 128 देश राजस्थान से छोटे है)
Question 14 of 40
14. Question
2 points
निम्न में से कौन सी नदी राजस्थान के आंतरिक अपवाह तंत्र से संबंद्ध नहीं है ?
Correct
व्याख्या :
अपवाह प्रणाली के अनुसार राजस्थान में तीन प्रकार के प्रवाह की नदियाँ है-
(A) आंतरिक अपवाह तंत्र (60%)
(B) बंगाल की खाड़ी अपवाह तंत्र (23%)
(C) अरब सागर अपवाह तंत्र (17%)।
आंतरिक अपवाह तंत्र-ऐसी नदियाँ जो अपना जल सागर या महासागर तक न ले जाकर मरुस्थल या झील में विलुप्त हो जाती है उन्हें आंतरिक अपवाह की नदियाँ कहा जाता है।
राजस्थान की आंतरिक प्रवाह की नदियाँ मेथां नदी, घग्घर नदी, रूपारेल नदी, कांतली नदी, रूपनगढ़ नदी, काकनी/काकनैय/मसूरदी नदी, साबी नदी, बाणगंगा नदी, खारी नदी/खण्डेला नदी
मेढा (मेथां) रूपनगढ़, खारी व खण्डेला नदियाँ सांभर झील में गिरती है।
प्रश्नानुसार मित्री, लूनी की सहायक नदी है, जो कच्छ के रन (अरब सागर) में अपना जल प्रवाहित करती है लूनी के माध्यम से।।
Incorrect
व्याख्या :
अपवाह प्रणाली के अनुसार राजस्थान में तीन प्रकार के प्रवाह की नदियाँ है-
(A) आंतरिक अपवाह तंत्र (60%)
(B) बंगाल की खाड़ी अपवाह तंत्र (23%)
(C) अरब सागर अपवाह तंत्र (17%)।
आंतरिक अपवाह तंत्र-ऐसी नदियाँ जो अपना जल सागर या महासागर तक न ले जाकर मरुस्थल या झील में विलुप्त हो जाती है उन्हें आंतरिक अपवाह की नदियाँ कहा जाता है।
राजस्थान की आंतरिक प्रवाह की नदियाँ मेथां नदी, घग्घर नदी, रूपारेल नदी, कांतली नदी, रूपनगढ़ नदी, काकनी/काकनैय/मसूरदी नदी, साबी नदी, बाणगंगा नदी, खारी नदी/खण्डेला नदी
मेढा (मेथां) रूपनगढ़, खारी व खण्डेला नदियाँ सांभर झील में गिरती है।
प्रश्नानुसार मित्री, लूनी की सहायक नदी है, जो कच्छ के रन (अरब सागर) में अपना जल प्रवाहित करती है लूनी के माध्यम से।।
Unattempted
व्याख्या :
अपवाह प्रणाली के अनुसार राजस्थान में तीन प्रकार के प्रवाह की नदियाँ है-
(A) आंतरिक अपवाह तंत्र (60%)
(B) बंगाल की खाड़ी अपवाह तंत्र (23%)
(C) अरब सागर अपवाह तंत्र (17%)।
आंतरिक अपवाह तंत्र-ऐसी नदियाँ जो अपना जल सागर या महासागर तक न ले जाकर मरुस्थल या झील में विलुप्त हो जाती है उन्हें आंतरिक अपवाह की नदियाँ कहा जाता है।
राजस्थान की आंतरिक प्रवाह की नदियाँ मेथां नदी, घग्घर नदी, रूपारेल नदी, कांतली नदी, रूपनगढ़ नदी, काकनी/काकनैय/मसूरदी नदी, साबी नदी, बाणगंगा नदी, खारी नदी/खण्डेला नदी
मेढा (मेथां) रूपनगढ़, खारी व खण्डेला नदियाँ सांभर झील में गिरती है।
प्रश्नानुसार मित्री, लूनी की सहायक नदी है, जो कच्छ के रन (अरब सागर) में अपना जल प्रवाहित करती है लूनी के माध्यम से।।
Question 15 of 40
15. Question
2 points
निम्न में से राजस्थान के किस भाग में सर्वाधिक वर्षा की परिवर्तिता पाई जाती है?
Correct
व्याख्या :
राजस्थान के पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश में कभी सूखा/अकाल तो कभी बाढ़ के (2006 में बाड़मेर में) हालात देखने को मिलते है। अतः यहाँ सर्वाधिक वर्षा की परिवर्तिता पाई जाती है।
पिछले 15 वर्षों में वर्षा का औसत 15 फीसदी की दर से बढा है।(मरुस्थलीय क्षेत्र में)
मेवाड क्षेत्र म वर्षो के औसत दर में कमी आई है। इसका कारण जलवायु पैटर्न में तेजी से बदलाव।
Incorrect
व्याख्या :
राजस्थान के पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश में कभी सूखा/अकाल तो कभी बाढ़ के (2006 में बाड़मेर में) हालात देखने को मिलते है। अतः यहाँ सर्वाधिक वर्षा की परिवर्तिता पाई जाती है।
पिछले 15 वर्षों में वर्षा का औसत 15 फीसदी की दर से बढा है।(मरुस्थलीय क्षेत्र में)
मेवाड क्षेत्र म वर्षो के औसत दर में कमी आई है। इसका कारण जलवायु पैटर्न में तेजी से बदलाव।
Unattempted
व्याख्या :
राजस्थान के पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश में कभी सूखा/अकाल तो कभी बाढ़ के (2006 में बाड़मेर में) हालात देखने को मिलते है। अतः यहाँ सर्वाधिक वर्षा की परिवर्तिता पाई जाती है।
पिछले 15 वर्षों में वर्षा का औसत 15 फीसदी की दर से बढा है।(मरुस्थलीय क्षेत्र में)
मेवाड क्षेत्र म वर्षो के औसत दर में कमी आई है। इसका कारण जलवायु पैटर्न में तेजी से बदलाव।
Question 16 of 40
16. Question
2 points
राजस्थान के निम्नांकित किन जिलों में लाल लोम’ (Red Loam )मृदा पाई जाती है
Correct
लाल दोमट मिट्टी या लाल लोमी मिट्टी –
इस प्रकार की मृदा का निर्माण कायांतरित चट्टानों के अपक्षय के कारण होता है।
इस मृदा का रंग लाल होने के साथ ही इसके कण बहुत बारीक होते है।
यह मिट्टी अधिकतर उदयपुर, चितौड़गढ़, डुंगरपुर , बांसवाड़ा जिलों में पायी जाती है।
इसमें फॉस्फोरस, नाइट्रोजन, कैल्सियम और कार्बनिक पदार्थो की मात्रा अल्प होती है ।
इसके लाल रंग के कारण इसमें पाए जाने वाले लोहऑक्साइड की मात्रा है।
इस मिट्टी में पोटाश एवं लौह तत्वों की अधिकता के कारण मक्का की फसल अच्छी होती है।
Incorrect
लाल दोमट मिट्टी या लाल लोमी मिट्टी –
इस प्रकार की मृदा का निर्माण कायांतरित चट्टानों के अपक्षय के कारण होता है।
इस मृदा का रंग लाल होने के साथ ही इसके कण बहुत बारीक होते है।
यह मिट्टी अधिकतर उदयपुर, चितौड़गढ़, डुंगरपुर , बांसवाड़ा जिलों में पायी जाती है।
इसमें फॉस्फोरस, नाइट्रोजन, कैल्सियम और कार्बनिक पदार्थो की मात्रा अल्प होती है ।
इसके लाल रंग के कारण इसमें पाए जाने वाले लोहऑक्साइड की मात्रा है।
इस मिट्टी में पोटाश एवं लौह तत्वों की अधिकता के कारण मक्का की फसल अच्छी होती है।
Unattempted
लाल दोमट मिट्टी या लाल लोमी मिट्टी –
इस प्रकार की मृदा का निर्माण कायांतरित चट्टानों के अपक्षय के कारण होता है।
इस मृदा का रंग लाल होने के साथ ही इसके कण बहुत बारीक होते है।
यह मिट्टी अधिकतर उदयपुर, चितौड़गढ़, डुंगरपुर , बांसवाड़ा जिलों में पायी जाती है।
इसमें फॉस्फोरस, नाइट्रोजन, कैल्सियम और कार्बनिक पदार्थो की मात्रा अल्प होती है ।
इसके लाल रंग के कारण इसमें पाए जाने वाले लोहऑक्साइड की मात्रा है।
इस मिट्टी में पोटाश एवं लौह तत्वों की अधिकता के कारण मक्का की फसल अच्छी होती है।
Question 17 of 40
17. Question
2 points
राजस्थान में निम्नलिखित में से किस प्रकार के वन 75 से 110 सेमी औसत वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पार जाते हैं ?
Correct
व्याख्या :
वनस्पति
राजस्थान में वनस्पति के निम्न प्रकार पाये जाते हैं :-
1. शुष्क मरूस्थलीय (उष्ण कांटेदार वन)–
30-50 cm वर्षा वाला क्षेत्र। ये वन 6.26% प्रतिशत क्षेत्र में विस्तृत है। इस क्षेत्र में Xerophyte Plants पाये जाते हैं। पत्तियां – छोटी, काँटेनुमा। तना – मांसल, कांटेदार, जड़े – गहरी पाई जाती है।
वृक्ष – खेजड़ी, फोग, कैर, कूमटा, बेर, रामबांस, बबूल, थूहर, नागफनी आदि। सेवण घास की अधिकता।
2. अर्द्धशुष्क पर्णपाती वन–
50-80 सेमी. वर्षा वाला क्षेत्र। ये कुल वनों का लगभग 58.11 प्रतिशत है।
यहां पर धोकड़ा, रोहिड़ा, नीम के वृक्ष पाये जाते हैं।
यह जयपुर, दौसा, करौली, टोंक, सवाई माधोपुर और बूंदी में पाये जाते हैं।
60-85 सेमी. वर्षा वाला क्षेत्र ,यह वन 28.38% क्षेत्र पर पाये गये हैं। मार्च-अप्रेल में झड़ते हैं।
वृक्ष- धोकड़ा, खैर, पलाश (ढाक), सालर, साल, शीशम, बांस, आम, जामुन, अर्जुन वृक्ष, तेंदू तथा आंवला आदि प्रकार के वृक्ष पाये जाते हैं।
मिश्रित पतझड़ वन उदयपुर, बांसवाड़ा, सिरोही, राजसमन्द, चितौड़, भीलवाड़ा, स. माधोपुर, बारां, कोटा, बूँदी में विस्तृत है।
4. शुष्क सागवान वन (Dry Teak Forests)–
75-110 सेमी. वर्षा वाला क्षेत्र ,यह वन 7.05% क्षेत्र पर पाये गये हैं।
सागवान, अर्जुन, तेंदू, महुआ आदि वृक्ष पाये जाते हैं।
कुल वन क्षेत्र के लगभग 6.9 प्रतिशत भाग पर है।
बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, आबू पर्वत मे विस्तृत।
तेंदू से बीड़ी बनती है।
प्रतापगढ़ में सर्वाधिक, इसे राजस्थानी भाषा में टिमरू कहते हैं।
तेंदू वृक्ष को 1974 से राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
5. उपोष्ण सदाबहार वन (Sub Tropical Ever Green Forest)–
यह केवल माऊण्ट आबू में, यह 150 सेमी. वर्षा वाले क्षेत्र में .39% क्षेत्र पर पाये गये हैं।
सिरस, बांस, बील, करौंदा, इंद्रोक, चमेली, वनगुलाब आदि वृक्ष पाये जाते हैं।
वानस्पतिक विविधता सर्वाधिक सम्पन्न।
क्र.सं.
वन प्रकार
कुल क्षेत्रफल (वर्ग Km)
कुल वन क्षेत्र का %
1.
शुष्क सागवान वन
2247.87
6.86%
2.
शुष्क उष्ण कटिबंधीय धोक वन
19027.75
58.11%
3.
उत्तरी उष्ण कटिबन्धीय शुष्क पतझड़ी मिश्रित वन
9292.86
28.38%
4.
उष्ण कटिबन्धीय कांटेदार वन
2041.52
6.26%
5.
अर्द्ध उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन
126.64
0.39%
Incorrect
व्याख्या :
वनस्पति
राजस्थान में वनस्पति के निम्न प्रकार पाये जाते हैं :-
1. शुष्क मरूस्थलीय (उष्ण कांटेदार वन)–
30-50 cm वर्षा वाला क्षेत्र। ये वन 6.26% प्रतिशत क्षेत्र में विस्तृत है। इस क्षेत्र में Xerophyte Plants पाये जाते हैं। पत्तियां – छोटी, काँटेनुमा। तना – मांसल, कांटेदार, जड़े – गहरी पाई जाती है।
वृक्ष – खेजड़ी, फोग, कैर, कूमटा, बेर, रामबांस, बबूल, थूहर, नागफनी आदि। सेवण घास की अधिकता।
2. अर्द्धशुष्क पर्णपाती वन–
50-80 सेमी. वर्षा वाला क्षेत्र। ये कुल वनों का लगभग 58.11 प्रतिशत है।
यहां पर धोकड़ा, रोहिड़ा, नीम के वृक्ष पाये जाते हैं।
यह जयपुर, दौसा, करौली, टोंक, सवाई माधोपुर और बूंदी में पाये जाते हैं।
60-85 सेमी. वर्षा वाला क्षेत्र ,यह वन 28.38% क्षेत्र पर पाये गये हैं। मार्च-अप्रेल में झड़ते हैं।
वृक्ष- धोकड़ा, खैर, पलाश (ढाक), सालर, साल, शीशम, बांस, आम, जामुन, अर्जुन वृक्ष, तेंदू तथा आंवला आदि प्रकार के वृक्ष पाये जाते हैं।
मिश्रित पतझड़ वन उदयपुर, बांसवाड़ा, सिरोही, राजसमन्द, चितौड़, भीलवाड़ा, स. माधोपुर, बारां, कोटा, बूँदी में विस्तृत है।
4. शुष्क सागवान वन (Dry Teak Forests)–
75-110 सेमी. वर्षा वाला क्षेत्र ,यह वन 7.05% क्षेत्र पर पाये गये हैं।
सागवान, अर्जुन, तेंदू, महुआ आदि वृक्ष पाये जाते हैं।
कुल वन क्षेत्र के लगभग 6.9 प्रतिशत भाग पर है।
बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, आबू पर्वत मे विस्तृत।
तेंदू से बीड़ी बनती है।
प्रतापगढ़ में सर्वाधिक, इसे राजस्थानी भाषा में टिमरू कहते हैं।
तेंदू वृक्ष को 1974 से राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
5. उपोष्ण सदाबहार वन (Sub Tropical Ever Green Forest)–
यह केवल माऊण्ट आबू में, यह 150 सेमी. वर्षा वाले क्षेत्र में .39% क्षेत्र पर पाये गये हैं।
सिरस, बांस, बील, करौंदा, इंद्रोक, चमेली, वनगुलाब आदि वृक्ष पाये जाते हैं।
वानस्पतिक विविधता सर्वाधिक सम्पन्न।
क्र.सं.
वन प्रकार
कुल क्षेत्रफल (वर्ग Km)
कुल वन क्षेत्र का %
1.
शुष्क सागवान वन
2247.87
6.86%
2.
शुष्क उष्ण कटिबंधीय धोक वन
19027.75
58.11%
3.
उत्तरी उष्ण कटिबन्धीय शुष्क पतझड़ी मिश्रित वन
9292.86
28.38%
4.
उष्ण कटिबन्धीय कांटेदार वन
2041.52
6.26%
5.
अर्द्ध उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन
126.64
0.39%
Unattempted
व्याख्या :
वनस्पति
राजस्थान में वनस्पति के निम्न प्रकार पाये जाते हैं :-
1. शुष्क मरूस्थलीय (उष्ण कांटेदार वन)–
30-50 cm वर्षा वाला क्षेत्र। ये वन 6.26% प्रतिशत क्षेत्र में विस्तृत है। इस क्षेत्र में Xerophyte Plants पाये जाते हैं। पत्तियां – छोटी, काँटेनुमा। तना – मांसल, कांटेदार, जड़े – गहरी पाई जाती है।
वृक्ष – खेजड़ी, फोग, कैर, कूमटा, बेर, रामबांस, बबूल, थूहर, नागफनी आदि। सेवण घास की अधिकता।
2. अर्द्धशुष्क पर्णपाती वन–
50-80 सेमी. वर्षा वाला क्षेत्र। ये कुल वनों का लगभग 58.11 प्रतिशत है।
यहां पर धोकड़ा, रोहिड़ा, नीम के वृक्ष पाये जाते हैं।
यह जयपुर, दौसा, करौली, टोंक, सवाई माधोपुर और बूंदी में पाये जाते हैं।
60-85 सेमी. वर्षा वाला क्षेत्र ,यह वन 28.38% क्षेत्र पर पाये गये हैं। मार्च-अप्रेल में झड़ते हैं।
वृक्ष- धोकड़ा, खैर, पलाश (ढाक), सालर, साल, शीशम, बांस, आम, जामुन, अर्जुन वृक्ष, तेंदू तथा आंवला आदि प्रकार के वृक्ष पाये जाते हैं।
मिश्रित पतझड़ वन उदयपुर, बांसवाड़ा, सिरोही, राजसमन्द, चितौड़, भीलवाड़ा, स. माधोपुर, बारां, कोटा, बूँदी में विस्तृत है।
4. शुष्क सागवान वन (Dry Teak Forests)–
75-110 सेमी. वर्षा वाला क्षेत्र ,यह वन 7.05% क्षेत्र पर पाये गये हैं।
सागवान, अर्जुन, तेंदू, महुआ आदि वृक्ष पाये जाते हैं।
कुल वन क्षेत्र के लगभग 6.9 प्रतिशत भाग पर है।
बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, आबू पर्वत मे विस्तृत।
तेंदू से बीड़ी बनती है।
प्रतापगढ़ में सर्वाधिक, इसे राजस्थानी भाषा में टिमरू कहते हैं।
तेंदू वृक्ष को 1974 से राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
5. उपोष्ण सदाबहार वन (Sub Tropical Ever Green Forest)–
यह केवल माऊण्ट आबू में, यह 150 सेमी. वर्षा वाले क्षेत्र में .39% क्षेत्र पर पाये गये हैं।
सिरस, बांस, बील, करौंदा, इंद्रोक, चमेली, वनगुलाब आदि वृक्ष पाये जाते हैं।
वानस्पतिक विविधता सर्वाधिक सम्पन्न।
क्र.सं.
वन प्रकार
कुल क्षेत्रफल (वर्ग Km)
कुल वन क्षेत्र का %
1.
शुष्क सागवान वन
2247.87
6.86%
2.
शुष्क उष्ण कटिबंधीय धोक वन
19027.75
58.11%
3.
उत्तरी उष्ण कटिबन्धीय शुष्क पतझड़ी मिश्रित वन
9292.86
28.38%
4.
उष्ण कटिबन्धीय कांटेदार वन
2041.52
6.26%
5.
अर्द्ध उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन
126.64
0.39%
Question 18 of 40
18. Question
2 points
निम्नलिखित को सुमेलित कीजिये तथा नीचे दिये गये कूटों में से सही उत्तर का चुनाव कीजिए
पशु नस्ल
a ऊँट i. राठी
b भेड़ ii. बीकानेरी
c बकरी iii. मगरा
d गाय iv. झखराना
Correct
ऊँट :- (Camel)
सर्रा रोग 5th KAZARI केन्द्र लेह लद्दाख – ऊँटों हेतु
(A) नांचना (Nachana) – जैसलमेर के नांचना गाँव में।
➥ दिखने में सुन्दर व सवारी हेतु उपयुक्त
(B) गोमठ (Gomath) – (बीकानेर) भारवाहक
➥ 2003 की अपेक्षा 2007 में ऊँटों की संख्या में कमी
अन्य नस्ले:- जैसलमेरी, फलौदी, बीकानेरी
भेड़ :- (Sheep)
मालपूरी (Malpuri) – टोंक (ऊन गलीचे के लिए प्रसिद्ध)
➥ अविकानगर (टोंक)
➥ चोकला – भारतीय मेरिनो/शेखावटी
➥ सर्वाधिक ऊन देने वाली
➥ (शेखावटी क्षेत्र – सीकर, झुन्झुनू, चूरू)
➥ नाली – श्री गंगानगर, हनुमानगढ़ (घग्घर नदी)
➥ लम्बी रेशे वाली ऊन
➥ मगरा/चकरी – मांस हेतु प्रसिद्ध (जैसलमेर, बाड़मेर)
➥ सोनाड़ी/चनोथर – कान चरते समय जमीन को स्पर्श करते है ।
➥ डूंगरपूर, बांसवाड़ा, उदयपुर
➥ मोटी ऊन प्राप्त होती है।
➥ पूंगल – बीकानेर
➥मारवाड़ी – जोधपुर
➥ खेरी – जैसलमेर
बकरी :- (Goat)
नागौर के वरूण गांव की बकरियाँ विश्व प्रसिद्ध है।
➥ बकरी के मांस को चेवणी कहते हैं।
जमनापूरी (Jamnapuri) – सर्वाधिक दूग्ध व मांस के लिये जानी जाती है । यह सर्वाधिक कोटा, बूंदी, झालावाड़ में पायी जाती है ।
लोही/मारवाड़ी (Lohi / Marwari) – मांस के लिए जानी जाती है । यह दिखने में सुन्दर दिखती है । यह अत्यधिक मारवाड़ क्षेत्र में व सवाई माधोपुर, अलवर, करौली, टोंक आदि जिलों में पायी जाती है ।
सिरोही – मांस के लिए पाली जाती है। ऑस्ट्रेलिया से टोशन नस्ल के बकरे मंगा कर सिरोही नस्ल से Cross किया जाता है।
परबतसरी (Parbatsari) – नागौर
➥ राजस्थान में खरगोश (rabbit) प्रजनन केन्द्र – ऊंचा (चित्तौड़गढ़), मरमी के पास (राशमी)
(1) गोपाल योजना :- इस योजना की शुरूआत 2 अक्टूबर 1990 से दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान के 10 जिलों से हुई। पशुओं की देखभाल हेतु प्रशिक्षित गोपालक तैयार करना इसका उद्देश्य था ।
(2) हिपर योजना :- बागड़ी में दूग्ध देने वाली गाय को हिपर कहते हैं। यह योजना Dungarpur जिले की है। प्रत्येक BPL परिवार को 2 हिपर गाय देना।
(3) एडमास योजना :- यह योजना भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, पूसा (New Delhi) के सहयोग से चलाई जा रही है। इसे पशुओं में रोग निदान हेतु चलाई गई ।
(4) अविका क्रेडिट कार्ड योजना :- भेड़ पालकों को क्रेडिट कार्ड/लोन देना, चारे और दवाइयों के लिए।
(5) अविका कवच योजना :- यह योजना भेड़ों का बीमा करना तथा जो भेड़ पालक रेवड़ चराते हैं उनके बच्चों हेतु। विद्यालय खोलना।
गाय :- (Cow)
(A) गिर(Gir) – उत्पत्ति स्थान – गिरिवन (गुजरात)
➥ इसके बैल अजमेरा या रैण्डा कहलाते हैं।
➥ राजस्थान में अजमेर, भीलवाड़ा किशनगढ़, चित्तौड़गढ़
➥ दूग्ध के लिए प्रसिद्ध है।
(B) राठी(Rathi) – सर्वाधिक दुग्ध देने वाली नस्ल
➥ साहीवाल व सिन्धी का मिश्रण है।
➥ “राजस्थान की कामधेनू‘ । (Kamdhenu of Rajasthan)
(C) थारपारकर/मालाणी(Tharparkar / Malani) – मारवाड़ की राठी
सर्रा रोग 5th KAZARI केन्द्र लेह लद्दाख – ऊँटों हेतु
(A) नांचना (Nachana) – जैसलमेर के नांचना गाँव में।
➥ दिखने में सुन्दर व सवारी हेतु उपयुक्त
(B) गोमठ (Gomath) – (बीकानेर) भारवाहक
➥ 2003 की अपेक्षा 2007 में ऊँटों की संख्या में कमी
अन्य नस्ले:- जैसलमेरी, फलौदी, बीकानेरी
भेड़ :- (Sheep)
मालपूरी (Malpuri) – टोंक (ऊन गलीचे के लिए प्रसिद्ध)
➥ अविकानगर (टोंक)
➥ चोकला – भारतीय मेरिनो/शेखावटी
➥ सर्वाधिक ऊन देने वाली
➥ (शेखावटी क्षेत्र – सीकर, झुन्झुनू, चूरू)
➥ नाली – श्री गंगानगर, हनुमानगढ़ (घग्घर नदी)
➥ लम्बी रेशे वाली ऊन
➥ मगरा/चकरी – मांस हेतु प्रसिद्ध (जैसलमेर, बाड़मेर)
➥ सोनाड़ी/चनोथर – कान चरते समय जमीन को स्पर्श करते है ।
➥ डूंगरपूर, बांसवाड़ा, उदयपुर
➥ मोटी ऊन प्राप्त होती है।
➥ पूंगल – बीकानेर
➥मारवाड़ी – जोधपुर
➥ खेरी – जैसलमेर
बकरी :- (Goat)
नागौर के वरूण गांव की बकरियाँ विश्व प्रसिद्ध है।
➥ बकरी के मांस को चेवणी कहते हैं।
जमनापूरी (Jamnapuri) – सर्वाधिक दूग्ध व मांस के लिये जानी जाती है । यह सर्वाधिक कोटा, बूंदी, झालावाड़ में पायी जाती है ।
लोही/मारवाड़ी (Lohi / Marwari) – मांस के लिए जानी जाती है । यह दिखने में सुन्दर दिखती है । यह अत्यधिक मारवाड़ क्षेत्र में व सवाई माधोपुर, अलवर, करौली, टोंक आदि जिलों में पायी जाती है ।
सिरोही – मांस के लिए पाली जाती है। ऑस्ट्रेलिया से टोशन नस्ल के बकरे मंगा कर सिरोही नस्ल से Cross किया जाता है।
परबतसरी (Parbatsari) – नागौर
➥ राजस्थान में खरगोश (rabbit) प्रजनन केन्द्र – ऊंचा (चित्तौड़गढ़), मरमी के पास (राशमी)
(1) गोपाल योजना :- इस योजना की शुरूआत 2 अक्टूबर 1990 से दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान के 10 जिलों से हुई। पशुओं की देखभाल हेतु प्रशिक्षित गोपालक तैयार करना इसका उद्देश्य था ।
(2) हिपर योजना :- बागड़ी में दूग्ध देने वाली गाय को हिपर कहते हैं। यह योजना Dungarpur जिले की है। प्रत्येक BPL परिवार को 2 हिपर गाय देना।
(3) एडमास योजना :- यह योजना भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, पूसा (New Delhi) के सहयोग से चलाई जा रही है। इसे पशुओं में रोग निदान हेतु चलाई गई ।
(4) अविका क्रेडिट कार्ड योजना :- भेड़ पालकों को क्रेडिट कार्ड/लोन देना, चारे और दवाइयों के लिए।
(5) अविका कवच योजना :- यह योजना भेड़ों का बीमा करना तथा जो भेड़ पालक रेवड़ चराते हैं उनके बच्चों हेतु। विद्यालय खोलना।
गाय :- (Cow)
(A) गिर(Gir) – उत्पत्ति स्थान – गिरिवन (गुजरात)
➥ इसके बैल अजमेरा या रैण्डा कहलाते हैं।
➥ राजस्थान में अजमेर, भीलवाड़ा किशनगढ़, चित्तौड़गढ़
➥ दूग्ध के लिए प्रसिद्ध है।
(B) राठी(Rathi) – सर्वाधिक दुग्ध देने वाली नस्ल
➥ साहीवाल व सिन्धी का मिश्रण है।
➥ “राजस्थान की कामधेनू‘ । (Kamdhenu of Rajasthan)
(C) थारपारकर/मालाणी(Tharparkar / Malani) – मारवाड़ की राठी
सर्रा रोग 5th KAZARI केन्द्र लेह लद्दाख – ऊँटों हेतु
(A) नांचना (Nachana) – जैसलमेर के नांचना गाँव में।
➥ दिखने में सुन्दर व सवारी हेतु उपयुक्त
(B) गोमठ (Gomath) – (बीकानेर) भारवाहक
➥ 2003 की अपेक्षा 2007 में ऊँटों की संख्या में कमी
अन्य नस्ले:- जैसलमेरी, फलौदी, बीकानेरी
भेड़ :- (Sheep)
मालपूरी (Malpuri) – टोंक (ऊन गलीचे के लिए प्रसिद्ध)
➥ अविकानगर (टोंक)
➥ चोकला – भारतीय मेरिनो/शेखावटी
➥ सर्वाधिक ऊन देने वाली
➥ (शेखावटी क्षेत्र – सीकर, झुन्झुनू, चूरू)
➥ नाली – श्री गंगानगर, हनुमानगढ़ (घग्घर नदी)
➥ लम्बी रेशे वाली ऊन
➥ मगरा/चकरी – मांस हेतु प्रसिद्ध (जैसलमेर, बाड़मेर)
➥ सोनाड़ी/चनोथर – कान चरते समय जमीन को स्पर्श करते है ।
➥ डूंगरपूर, बांसवाड़ा, उदयपुर
➥ मोटी ऊन प्राप्त होती है।
➥ पूंगल – बीकानेर
➥मारवाड़ी – जोधपुर
➥ खेरी – जैसलमेर
बकरी :- (Goat)
नागौर के वरूण गांव की बकरियाँ विश्व प्रसिद्ध है।
➥ बकरी के मांस को चेवणी कहते हैं।
जमनापूरी (Jamnapuri) – सर्वाधिक दूग्ध व मांस के लिये जानी जाती है । यह सर्वाधिक कोटा, बूंदी, झालावाड़ में पायी जाती है ।
लोही/मारवाड़ी (Lohi / Marwari) – मांस के लिए जानी जाती है । यह दिखने में सुन्दर दिखती है । यह अत्यधिक मारवाड़ क्षेत्र में व सवाई माधोपुर, अलवर, करौली, टोंक आदि जिलों में पायी जाती है ।
सिरोही – मांस के लिए पाली जाती है। ऑस्ट्रेलिया से टोशन नस्ल के बकरे मंगा कर सिरोही नस्ल से Cross किया जाता है।
परबतसरी (Parbatsari) – नागौर
➥ राजस्थान में खरगोश (rabbit) प्रजनन केन्द्र – ऊंचा (चित्तौड़गढ़), मरमी के पास (राशमी)
(1) गोपाल योजना :- इस योजना की शुरूआत 2 अक्टूबर 1990 से दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान के 10 जिलों से हुई। पशुओं की देखभाल हेतु प्रशिक्षित गोपालक तैयार करना इसका उद्देश्य था ।
(2) हिपर योजना :- बागड़ी में दूग्ध देने वाली गाय को हिपर कहते हैं। यह योजना Dungarpur जिले की है। प्रत्येक BPL परिवार को 2 हिपर गाय देना।
(3) एडमास योजना :- यह योजना भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, पूसा (New Delhi) के सहयोग से चलाई जा रही है। इसे पशुओं में रोग निदान हेतु चलाई गई ।
(4) अविका क्रेडिट कार्ड योजना :- भेड़ पालकों को क्रेडिट कार्ड/लोन देना, चारे और दवाइयों के लिए।
(5) अविका कवच योजना :- यह योजना भेड़ों का बीमा करना तथा जो भेड़ पालक रेवड़ चराते हैं उनके बच्चों हेतु। विद्यालय खोलना।
गाय :- (Cow)
(A) गिर(Gir) – उत्पत्ति स्थान – गिरिवन (गुजरात)
➥ इसके बैल अजमेरा या रैण्डा कहलाते हैं।
➥ राजस्थान में अजमेर, भीलवाड़ा किशनगढ़, चित्तौड़गढ़
➥ दूग्ध के लिए प्रसिद्ध है।
(B) राठी(Rathi) – सर्वाधिक दुग्ध देने वाली नस्ल
➥ साहीवाल व सिन्धी का मिश्रण है।
➥ “राजस्थान की कामधेनू‘ । (Kamdhenu of Rajasthan)
(C) थारपारकर/मालाणी(Tharparkar / Malani) – मारवाड़ की राठी
राजस्थान के कौन से जिले ‘आर्द्र दक्षिणी-पूर्वी मैदान’ कृषि-जलवायु प्रदेश के अन्तर्गत आते हैं ?
Correct
व्याख्या : राजस्थान को 10 कृषि जलवायु प्रदेशों में बांटा गया है। राजस्थान का क्षेत्रफल के अनुसार सबसे बड़ा कृषि जलवायु प्रदेश-IC (अतिशुष्क आंशिक सिंचित प्रदेश) इसमें जैसलमेर, बीकानेर, चुरू जिले सम्मिलित है।
राजस्थान के क्षेत्रफल के अनुसार सबसे छोटा कृषि जलवायु प्रदेश- IV B (आर्द्र दक्षिणी मैदानी प्रदेश) इसमें उदयपुर, डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़, चित्तौड़ जिले आते है।
राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा वाला कृषि जलवायु प्रदेश है। IV B—(आर्द्र दक्षिणी मैदानी प्रदेश) व V—आर्द्र दक्षिणी पूर्वी मैदानी प्रदेश है तथा न्यूनतम वर्षा वाला कृषि जलवायु प्रदेश IB (पश्चिमी शुष्क मैदानी प्रदेश) व IC (अतिशुष्क आंशिक सिंचित क्षेत्र) है।
राजस्थान का सर्वाधिक उपजाऊ कृषि जलवायु प्रदेश III B (बाढ़ संभाव्य पूर्वी मैदान) है जिसमें अलवर, भरतपुर, करौली, धौलपुर, उत्तरी सवाई माधोपुर जिले आते है। जबकि सर्वाधिक बंजर IC है। टिप्पणी-आर्द्र दक्षिणी-पूर्वी मैदानी प्रदेश (V) में कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़ जिले आते है। यह मसालों के लिए प्रसिद्ध है।
Incorrect
व्याख्या : राजस्थान को 10 कृषि जलवायु प्रदेशों में बांटा गया है। राजस्थान का क्षेत्रफल के अनुसार सबसे बड़ा कृषि जलवायु प्रदेश-IC (अतिशुष्क आंशिक सिंचित प्रदेश) इसमें जैसलमेर, बीकानेर, चुरू जिले सम्मिलित है।
राजस्थान के क्षेत्रफल के अनुसार सबसे छोटा कृषि जलवायु प्रदेश- IV B (आर्द्र दक्षिणी मैदानी प्रदेश) इसमें उदयपुर, डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़, चित्तौड़ जिले आते है।
राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा वाला कृषि जलवायु प्रदेश है। IV B—(आर्द्र दक्षिणी मैदानी प्रदेश) व V—आर्द्र दक्षिणी पूर्वी मैदानी प्रदेश है तथा न्यूनतम वर्षा वाला कृषि जलवायु प्रदेश IB (पश्चिमी शुष्क मैदानी प्रदेश) व IC (अतिशुष्क आंशिक सिंचित क्षेत्र) है।
राजस्थान का सर्वाधिक उपजाऊ कृषि जलवायु प्रदेश III B (बाढ़ संभाव्य पूर्वी मैदान) है जिसमें अलवर, भरतपुर, करौली, धौलपुर, उत्तरी सवाई माधोपुर जिले आते है। जबकि सर्वाधिक बंजर IC है। टिप्पणी-आर्द्र दक्षिणी-पूर्वी मैदानी प्रदेश (V) में कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़ जिले आते है। यह मसालों के लिए प्रसिद्ध है।
Unattempted
व्याख्या : राजस्थान को 10 कृषि जलवायु प्रदेशों में बांटा गया है। राजस्थान का क्षेत्रफल के अनुसार सबसे बड़ा कृषि जलवायु प्रदेश-IC (अतिशुष्क आंशिक सिंचित प्रदेश) इसमें जैसलमेर, बीकानेर, चुरू जिले सम्मिलित है।
राजस्थान के क्षेत्रफल के अनुसार सबसे छोटा कृषि जलवायु प्रदेश- IV B (आर्द्र दक्षिणी मैदानी प्रदेश) इसमें उदयपुर, डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़, चित्तौड़ जिले आते है।
राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा वाला कृषि जलवायु प्रदेश है। IV B—(आर्द्र दक्षिणी मैदानी प्रदेश) व V—आर्द्र दक्षिणी पूर्वी मैदानी प्रदेश है तथा न्यूनतम वर्षा वाला कृषि जलवायु प्रदेश IB (पश्चिमी शुष्क मैदानी प्रदेश) व IC (अतिशुष्क आंशिक सिंचित क्षेत्र) है।
राजस्थान का सर्वाधिक उपजाऊ कृषि जलवायु प्रदेश III B (बाढ़ संभाव्य पूर्वी मैदान) है जिसमें अलवर, भरतपुर, करौली, धौलपुर, उत्तरी सवाई माधोपुर जिले आते है। जबकि सर्वाधिक बंजर IC है। टिप्पणी-आर्द्र दक्षिणी-पूर्वी मैदानी प्रदेश (V) में कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़ जिले आते है। यह मसालों के लिए प्रसिद्ध है।
Question 20 of 40
20. Question
2 points
केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान कहाँ स्थित है ?
Correct
व्याख्या : केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान-बीछवाल (बीकानेर) में स्थित है। स्थापना 1993 (8 वीं पंचवर्षीय योजना में)। यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) नई दिल्ली द्वारा संचालित है। यह संस्थान फल और सब्जी के अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में कार्य कर रहा है। इसका क्षेत्रीय केन्द्र, वेजलपुर, गोधरा (गुजरात) में है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा भारत के अर्ध शुष्क क्षेत्रों में कुछ चयनित फलों पर अनुसंधान के लिए सन् 1976 में पांचवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 10 केन्द्रों पर एक एपी सेस निधि योजना के तहत एक तदर्थ परियोजना आरंभ की गयी थी। छठी योजना के दौरान, इस तदर्थ योजना को इसी रूप में विलय करते हुए अखिल भारतीय समन्वित फल सुधार परियोजना (AICFIP) के सेल III के रूप में नामित किया गया। सातवीं योजना के दौरान इस परियोजना को अखिल भारतीय शुष्क क्षेत्र फल समन्वित अनुसंधान परियोजना का नाम देकर एक स्वतंत्र परियोजना के रूप में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में मुख्यालय स्थापन्न के साथ पुनर्गठन किया गया था। इस प्रकार इस परियोजना का कार्य भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों अथवा राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में या तो अपर्याप्त जनशक्ति या बुनियादी ढांचे में कमी को देखते हुए कुछ चयनित फलों के अनुसंधान कार्यों के बहुस्थानिक परीक्षण को करना तय किया गया था। इसलिए, शुष्क क्षेत्र में बागवानी फसलों की क्षमता को साकार करने और लोगों के लिए पोषण और आय सुरक्षा को प्राप्त करने की आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि अनुसंधान और शिक्षा पर कार्य समूह की सिफारिश पर भारतीय योजना आयोग के अनुमोदन के बाद सातवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान राष्ट्रीय शुष्क बागवानी अनुसंधान केन्द्र (NRCAH) की स्थापना की गयी थी। इसके लिए परियोजना समन्वयक (शुष्क क्षेत्र फल) को इस केन्द्र की स्थापना की देखरेख हेतु नवंबर 1990 विशेष कार्य अधिकारी का अतिरिक्त दायित्व सौंपा गया था । नवंबर, 1992 में करीब राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर के परिसर के समीप में इस केन्द्र के लिए भूमि का अधिग्रहण किया गया था। वर्ष 1993 में परियोजना समन्वयक (शुष्क क्षेत्र फल) ने अखिल भारतीय शुष्क क्षेत्र फल समन्वित अनुसंधान परियोजना के केन्द्र को हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार से लाकर बीकानेर में स्थानांतरित कर शुष्क बागवानी अनुसंधान केन्द्र का कार्य वास्तविक रूप में आरंभ किया। अल्प अवधि में राष्ट्रीय शुष्क बागवानी अनुसंधान केन्द्र के द्वारा की गई प्रगति एवं शुष्क क्षेत्र की भविष्य की जरूरतों के फलस्वरूप, 27 सितंबर, 2000 से इसे संस्थान का दर्जा दिया और इसका नाम केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर रखा गया। इसके पश्चात 01 अक्टूबर, 2000 से भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बंगलौर के गोधरा (गुजरात) स्थित केन्द्रीय बागवानी परीक्षण केन्द्र को इसमें विलय कर दिया गया था।
मुख्य घ्येय
शुष्क क्षेत्र की बागवानी फसलों का उत्पादन एवं उपयोग बढ़ाने के लिए तकनीकियां विकसित करने हेतु योजना लक्षित मूल अध्ययन करना।
शुष्क बागवानी फसलों के ‘राष्ट्रीय जीन बैंक’ के रूप में कार्य करना।
शुष्क वातावरण में बहु-बागवानी फसलों का प्रभावी फसल-चक्र विकसित करना।
शुष्क बागवानी से संबंधित वैज्ञानिक सूचनाओं के ‘राष्ट्रीय केन्द्र’ के रूप में कार्य करना।
राज्य कृषि विश्वविद्यालयों तथा अन्य समान कार्य करने वाले संस्थानों के मध्य मुख्य समन्वयक की भूमिका के साथ शुष्क बागवानी के ‘मानव संसाधन विकास केन्द्र’ के रूप में कार्य करना।
शुष्क बागवानी के विकास एवं अनुसंधान के लिए मार्गदर्शी परामर्श उपलब्ध कराना।
Incorrect
व्याख्या : केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान-बीछवाल (बीकानेर) में स्थित है। स्थापना 1993 (8 वीं पंचवर्षीय योजना में)। यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) नई दिल्ली द्वारा संचालित है। यह संस्थान फल और सब्जी के अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में कार्य कर रहा है। इसका क्षेत्रीय केन्द्र, वेजलपुर, गोधरा (गुजरात) में है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा भारत के अर्ध शुष्क क्षेत्रों में कुछ चयनित फलों पर अनुसंधान के लिए सन् 1976 में पांचवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 10 केन्द्रों पर एक एपी सेस निधि योजना के तहत एक तदर्थ परियोजना आरंभ की गयी थी। छठी योजना के दौरान, इस तदर्थ योजना को इसी रूप में विलय करते हुए अखिल भारतीय समन्वित फल सुधार परियोजना (AICFIP) के सेल III के रूप में नामित किया गया। सातवीं योजना के दौरान इस परियोजना को अखिल भारतीय शुष्क क्षेत्र फल समन्वित अनुसंधान परियोजना का नाम देकर एक स्वतंत्र परियोजना के रूप में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में मुख्यालय स्थापन्न के साथ पुनर्गठन किया गया था। इस प्रकार इस परियोजना का कार्य भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों अथवा राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में या तो अपर्याप्त जनशक्ति या बुनियादी ढांचे में कमी को देखते हुए कुछ चयनित फलों के अनुसंधान कार्यों के बहुस्थानिक परीक्षण को करना तय किया गया था। इसलिए, शुष्क क्षेत्र में बागवानी फसलों की क्षमता को साकार करने और लोगों के लिए पोषण और आय सुरक्षा को प्राप्त करने की आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि अनुसंधान और शिक्षा पर कार्य समूह की सिफारिश पर भारतीय योजना आयोग के अनुमोदन के बाद सातवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान राष्ट्रीय शुष्क बागवानी अनुसंधान केन्द्र (NRCAH) की स्थापना की गयी थी। इसके लिए परियोजना समन्वयक (शुष्क क्षेत्र फल) को इस केन्द्र की स्थापना की देखरेख हेतु नवंबर 1990 विशेष कार्य अधिकारी का अतिरिक्त दायित्व सौंपा गया था । नवंबर, 1992 में करीब राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर के परिसर के समीप में इस केन्द्र के लिए भूमि का अधिग्रहण किया गया था। वर्ष 1993 में परियोजना समन्वयक (शुष्क क्षेत्र फल) ने अखिल भारतीय शुष्क क्षेत्र फल समन्वित अनुसंधान परियोजना के केन्द्र को हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार से लाकर बीकानेर में स्थानांतरित कर शुष्क बागवानी अनुसंधान केन्द्र का कार्य वास्तविक रूप में आरंभ किया। अल्प अवधि में राष्ट्रीय शुष्क बागवानी अनुसंधान केन्द्र के द्वारा की गई प्रगति एवं शुष्क क्षेत्र की भविष्य की जरूरतों के फलस्वरूप, 27 सितंबर, 2000 से इसे संस्थान का दर्जा दिया और इसका नाम केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर रखा गया। इसके पश्चात 01 अक्टूबर, 2000 से भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बंगलौर के गोधरा (गुजरात) स्थित केन्द्रीय बागवानी परीक्षण केन्द्र को इसमें विलय कर दिया गया था।
मुख्य घ्येय
शुष्क क्षेत्र की बागवानी फसलों का उत्पादन एवं उपयोग बढ़ाने के लिए तकनीकियां विकसित करने हेतु योजना लक्षित मूल अध्ययन करना।
शुष्क बागवानी फसलों के ‘राष्ट्रीय जीन बैंक’ के रूप में कार्य करना।
शुष्क वातावरण में बहु-बागवानी फसलों का प्रभावी फसल-चक्र विकसित करना।
शुष्क बागवानी से संबंधित वैज्ञानिक सूचनाओं के ‘राष्ट्रीय केन्द्र’ के रूप में कार्य करना।
राज्य कृषि विश्वविद्यालयों तथा अन्य समान कार्य करने वाले संस्थानों के मध्य मुख्य समन्वयक की भूमिका के साथ शुष्क बागवानी के ‘मानव संसाधन विकास केन्द्र’ के रूप में कार्य करना।
शुष्क बागवानी के विकास एवं अनुसंधान के लिए मार्गदर्शी परामर्श उपलब्ध कराना।
Unattempted
व्याख्या : केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान-बीछवाल (बीकानेर) में स्थित है। स्थापना 1993 (8 वीं पंचवर्षीय योजना में)। यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) नई दिल्ली द्वारा संचालित है। यह संस्थान फल और सब्जी के अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में कार्य कर रहा है। इसका क्षेत्रीय केन्द्र, वेजलपुर, गोधरा (गुजरात) में है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा भारत के अर्ध शुष्क क्षेत्रों में कुछ चयनित फलों पर अनुसंधान के लिए सन् 1976 में पांचवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 10 केन्द्रों पर एक एपी सेस निधि योजना के तहत एक तदर्थ परियोजना आरंभ की गयी थी। छठी योजना के दौरान, इस तदर्थ योजना को इसी रूप में विलय करते हुए अखिल भारतीय समन्वित फल सुधार परियोजना (AICFIP) के सेल III के रूप में नामित किया गया। सातवीं योजना के दौरान इस परियोजना को अखिल भारतीय शुष्क क्षेत्र फल समन्वित अनुसंधान परियोजना का नाम देकर एक स्वतंत्र परियोजना के रूप में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में मुख्यालय स्थापन्न के साथ पुनर्गठन किया गया था। इस प्रकार इस परियोजना का कार्य भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों अथवा राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में या तो अपर्याप्त जनशक्ति या बुनियादी ढांचे में कमी को देखते हुए कुछ चयनित फलों के अनुसंधान कार्यों के बहुस्थानिक परीक्षण को करना तय किया गया था। इसलिए, शुष्क क्षेत्र में बागवानी फसलों की क्षमता को साकार करने और लोगों के लिए पोषण और आय सुरक्षा को प्राप्त करने की आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि अनुसंधान और शिक्षा पर कार्य समूह की सिफारिश पर भारतीय योजना आयोग के अनुमोदन के बाद सातवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान राष्ट्रीय शुष्क बागवानी अनुसंधान केन्द्र (NRCAH) की स्थापना की गयी थी। इसके लिए परियोजना समन्वयक (शुष्क क्षेत्र फल) को इस केन्द्र की स्थापना की देखरेख हेतु नवंबर 1990 विशेष कार्य अधिकारी का अतिरिक्त दायित्व सौंपा गया था । नवंबर, 1992 में करीब राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर के परिसर के समीप में इस केन्द्र के लिए भूमि का अधिग्रहण किया गया था। वर्ष 1993 में परियोजना समन्वयक (शुष्क क्षेत्र फल) ने अखिल भारतीय शुष्क क्षेत्र फल समन्वित अनुसंधान परियोजना के केन्द्र को हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार से लाकर बीकानेर में स्थानांतरित कर शुष्क बागवानी अनुसंधान केन्द्र का कार्य वास्तविक रूप में आरंभ किया। अल्प अवधि में राष्ट्रीय शुष्क बागवानी अनुसंधान केन्द्र के द्वारा की गई प्रगति एवं शुष्क क्षेत्र की भविष्य की जरूरतों के फलस्वरूप, 27 सितंबर, 2000 से इसे संस्थान का दर्जा दिया और इसका नाम केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर रखा गया। इसके पश्चात 01 अक्टूबर, 2000 से भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बंगलौर के गोधरा (गुजरात) स्थित केन्द्रीय बागवानी परीक्षण केन्द्र को इसमें विलय कर दिया गया था।
मुख्य घ्येय
शुष्क क्षेत्र की बागवानी फसलों का उत्पादन एवं उपयोग बढ़ाने के लिए तकनीकियां विकसित करने हेतु योजना लक्षित मूल अध्ययन करना।
शुष्क बागवानी फसलों के ‘राष्ट्रीय जीन बैंक’ के रूप में कार्य करना।
शुष्क वातावरण में बहु-बागवानी फसलों का प्रभावी फसल-चक्र विकसित करना।
शुष्क बागवानी से संबंधित वैज्ञानिक सूचनाओं के ‘राष्ट्रीय केन्द्र’ के रूप में कार्य करना।
राज्य कृषि विश्वविद्यालयों तथा अन्य समान कार्य करने वाले संस्थानों के मध्य मुख्य समन्वयक की भूमिका के साथ शुष्क बागवानी के ‘मानव संसाधन विकास केन्द्र’ के रूप में कार्य करना।
शुष्क बागवानी के विकास एवं अनुसंधान के लिए मार्गदर्शी परामर्श उपलब्ध कराना।
Question 21 of 40
21. Question
2 points
निम्नलिखित में से 2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान की जनसंख्या से सम्बन्धित सही है
(A) बच्चों का लिंगानुपात-888
(B) महिला साक्षरता का प्रतिशत-52.1
(C) अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या का प्रतिशत- 16.9
(D) नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत-25.1
सही उत्तर का चयन नीचे दिए कूट से कीजिए
Correct
2011 की जनगणना में राजस्थान की स्थिति
राजस्थान की कुल जनसंख्या– 68,548,437
राजस्थान का जनसँख्या घनत्व– 200
राजस्थान में लिंगानुपात– 928
राजस्थान में दशकीय वृद्धि– 21.3%
राजस्थान में 0-6 वर्ग की जनसँख्या का प्रतिशत– 15.5%
राजस्थान में 0-6 वर्ग की जनसँख्या का लिंगानुपात– 888
राजस्थान में कुल साक्षरता– 66.1
राजस्थान में पुरूष साक्षरता– 79.2
राजस्थान में महिला साक्षरता–52.1
Incorrect
2011 की जनगणना में राजस्थान की स्थिति
राजस्थान की कुल जनसंख्या– 68,548,437
राजस्थान का जनसँख्या घनत्व– 200
राजस्थान में लिंगानुपात– 928
राजस्थान में दशकीय वृद्धि– 21.3%
राजस्थान में 0-6 वर्ग की जनसँख्या का प्रतिशत– 15.5%
राजस्थान में 0-6 वर्ग की जनसँख्या का लिंगानुपात– 888
राजस्थान में कुल साक्षरता– 66.1
राजस्थान में पुरूष साक्षरता– 79.2
राजस्थान में महिला साक्षरता–52.1
Unattempted
2011 की जनगणना में राजस्थान की स्थिति
राजस्थान की कुल जनसंख्या– 68,548,437
राजस्थान का जनसँख्या घनत्व– 200
राजस्थान में लिंगानुपात– 928
राजस्थान में दशकीय वृद्धि– 21.3%
राजस्थान में 0-6 वर्ग की जनसँख्या का प्रतिशत– 15.5%
राजस्थान में 0-6 वर्ग की जनसँख्या का लिंगानुपात– 888
राजस्थान में कुल साक्षरता– 66.1
राजस्थान में पुरूष साक्षरता– 79.2
राजस्थान में महिला साक्षरता–52.1
Question 22 of 40
22. Question
2 points
राजस्थान सरकार ने पेट्रोलियम शोधक संयंत्र स्थापित करने हेतु किस सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी से अनुबन्ध किया है ?
Correct
व्याख्या : भारत के कुल खनिज तेल उत्पादन का लगभग 22% राजस्थान में होता है। राज्य में HPCI के साथ मिलकर बाडमेर के पचपदरा ने भारत का अपनी तरह का पहला “रिफायनरी सह पेटोलियम कॉपले निर्माणाधीन है
Incorrect
व्याख्या : भारत के कुल खनिज तेल उत्पादन का लगभग 22% राजस्थान में होता है। राज्य में HPCI के साथ मिलकर बाडमेर के पचपदरा ने भारत का अपनी तरह का पहला “रिफायनरी सह पेटोलियम कॉपले निर्माणाधीन है
Unattempted
व्याख्या : भारत के कुल खनिज तेल उत्पादन का लगभग 22% राजस्थान में होता है। राज्य में HPCI के साथ मिलकर बाडमेर के पचपदरा ने भारत का अपनी तरह का पहला “रिफायनरी सह पेटोलियम कॉपले निर्माणाधीन है
Question 23 of 40
23. Question
2 points
निम्नलिखित में से कौन-सा संप्रदाय निर्गुण भक्ति संप्रदाय नहीं है?
Correct
निर्गुण सम्प्रदाय
दादु सम्प्रदाय
विशनोई सम्पद्राय
जसनाथी सम्प्रदाय
लालदासी सम्प्रदाय
रामस्नेही सम्प्रदाय
परनामी सम्प्रदाय
निरंजनी सम्प्रदाय
कबीर पंथी संप्रदाय
सगुण सम्प्रदाय
रामानुज सम्प्रदाय
रामानन्दी सम्प्रदाय
निम्बार्क सम्पद्राय
वल्लभ सम्प्रदाय
निष्कंलक सम्प्रदाय
गौड़ीय सम्प्रदाय
चरण दासी सम्प्रदाय
नाथ सम्प्रदाय
पाशुपत सम्प्रदाय
Incorrect
निर्गुण सम्प्रदाय
दादु सम्प्रदाय
विशनोई सम्पद्राय
जसनाथी सम्प्रदाय
लालदासी सम्प्रदाय
रामस्नेही सम्प्रदाय
परनामी सम्प्रदाय
निरंजनी सम्प्रदाय
कबीर पंथी संप्रदाय
सगुण सम्प्रदाय
रामानुज सम्प्रदाय
रामानन्दी सम्प्रदाय
निम्बार्क सम्पद्राय
वल्लभ सम्प्रदाय
निष्कंलक सम्प्रदाय
गौड़ीय सम्प्रदाय
चरण दासी सम्प्रदाय
नाथ सम्प्रदाय
पाशुपत सम्प्रदाय
Unattempted
निर्गुण सम्प्रदाय
दादु सम्प्रदाय
विशनोई सम्पद्राय
जसनाथी सम्प्रदाय
लालदासी सम्प्रदाय
रामस्नेही सम्प्रदाय
परनामी सम्प्रदाय
निरंजनी सम्प्रदाय
कबीर पंथी संप्रदाय
सगुण सम्प्रदाय
रामानुज सम्प्रदाय
रामानन्दी सम्प्रदाय
निम्बार्क सम्पद्राय
वल्लभ सम्प्रदाय
निष्कंलक सम्प्रदाय
गौड़ीय सम्प्रदाय
चरण दासी सम्प्रदाय
नाथ सम्प्रदाय
पाशुपत सम्प्रदाय
Question 24 of 40
24. Question
2 points
निम्नलिखित में से किस नृत्य के साथ झांझ’ नामक वाद्ययंत्र का प्रयोग किया जाता है ?
Correct
कच्छी घोड़ी – शेखावाटी क्षेत्र एवं नागौर जिले के पूर्वी भाग में अधिक प्रचलित यह नृत्य पेशेवर जातियों द्वारा मांगलिक अवसरों एवं उत्सवों पर किया जाता है। इसमें नर्तक बांस की घोड़ी को अपनी कमर में बाँधकर, रंग-बिरंगे परिधान में आकर्षक नृत्य करता है तथा वीर रस के दोहे बोलता रहता है। कच्छी घोड़ी नृत्य ढोल, बाँकिया एवं थाली /झांझ बजती है। नृत्य के साथ रसाला, रंगभरिया, बींद एवं लसकरिया गीत गाए जाते हैं।
Incorrect
कच्छी घोड़ी – शेखावाटी क्षेत्र एवं नागौर जिले के पूर्वी भाग में अधिक प्रचलित यह नृत्य पेशेवर जातियों द्वारा मांगलिक अवसरों एवं उत्सवों पर किया जाता है। इसमें नर्तक बांस की घोड़ी को अपनी कमर में बाँधकर, रंग-बिरंगे परिधान में आकर्षक नृत्य करता है तथा वीर रस के दोहे बोलता रहता है। कच्छी घोड़ी नृत्य ढोल, बाँकिया एवं थाली /झांझ बजती है। नृत्य के साथ रसाला, रंगभरिया, बींद एवं लसकरिया गीत गाए जाते हैं।
Unattempted
कच्छी घोड़ी – शेखावाटी क्षेत्र एवं नागौर जिले के पूर्वी भाग में अधिक प्रचलित यह नृत्य पेशेवर जातियों द्वारा मांगलिक अवसरों एवं उत्सवों पर किया जाता है। इसमें नर्तक बांस की घोड़ी को अपनी कमर में बाँधकर, रंग-बिरंगे परिधान में आकर्षक नृत्य करता है तथा वीर रस के दोहे बोलता रहता है। कच्छी घोड़ी नृत्य ढोल, बाँकिया एवं थाली /झांझ बजती है। नृत्य के साथ रसाला, रंगभरिया, बींद एवं लसकरिया गीत गाए जाते हैं।
Question 25 of 40
25. Question
2 points
‘बम नृत्य’ कहाँ का प्रसिद्ध नृत्य है ?
Correct
बम नृत्य
पूर्वी क्षेत्र /मेवात क्षेत्र (विशेषकर भरतपुर व अलवर) मे लोकप्रिय नृत्य है।
होली के समय फसल कटाई की खुशी में कियया जाने वाला नृत्य है।
नगाडा “बम”कहलाता है जो एक वाद्य यंत्र है।
पुरूष प्रधान नृत्य है।
Incorrect
बम नृत्य
पूर्वी क्षेत्र /मेवात क्षेत्र (विशेषकर भरतपुर व अलवर) मे लोकप्रिय नृत्य है।
होली के समय फसल कटाई की खुशी में कियया जाने वाला नृत्य है।
नगाडा “बम”कहलाता है जो एक वाद्य यंत्र है।
पुरूष प्रधान नृत्य है।
Unattempted
बम नृत्य
पूर्वी क्षेत्र /मेवात क्षेत्र (विशेषकर भरतपुर व अलवर) मे लोकप्रिय नृत्य है।
होली के समय फसल कटाई की खुशी में कियया जाने वाला नृत्य है।
नगाडा “बम”कहलाता है जो एक वाद्य यंत्र है।
पुरूष प्रधान नृत्य है।
Question 26 of 40
26. Question
2 points
‘दुगारी चित्रशैली’ का सम्बन्ध है –
Correct
दुगारी उपशैली
– नैनवा (बूंदी) के पास स्थित सीताराम मंदिर की चित्रशाला मे चित्रांकित शैली।
– चित्रों मे स्वर्णकलम का प्रयोग, भगवान राम केन्द्रित चित्र प्रधनता।
– वनस्पति रंग की प्रधनता वाली शैली।
– प्रमुख चित्र मत्स्यावतार व कश्यपावतार।
Incorrect
दुगारी उपशैली
– नैनवा (बूंदी) के पास स्थित सीताराम मंदिर की चित्रशाला मे चित्रांकित शैली।
– चित्रों मे स्वर्णकलम का प्रयोग, भगवान राम केन्द्रित चित्र प्रधनता।
– वनस्पति रंग की प्रधनता वाली शैली।
– प्रमुख चित्र मत्स्यावतार व कश्यपावतार।
Unattempted
दुगारी उपशैली
– नैनवा (बूंदी) के पास स्थित सीताराम मंदिर की चित्रशाला मे चित्रांकित शैली।
– चित्रों मे स्वर्णकलम का प्रयोग, भगवान राम केन्द्रित चित्र प्रधनता।
– वनस्पति रंग की प्रधनता वाली शैली।
– प्रमुख चित्र मत्स्यावतार व कश्यपावतार।
Question 27 of 40
27. Question
2 points
आभानेरी तथा राजौरगढ़ के कलात्मक वैभव किस काल के हैं ?
Correct
गुर्जर-प्रतिहार राजवंश भारतीय उपमहाद्वीप पर स्वर्गीय शास्त्रीय काल के दौरान एक शाही शक्ति थी, जिसने 8 वीं से 11 वीं शताब्दी के मध्य तक उत्तरी भारत के अधिकांश हिस्से पर शासन किया था।
Important Points
आभानेरी और राजोरगढ़ का कलात्मक वैभव:
आभानेरी:
यह उत्तरी राजस्थान में दौसा जिले का एक गाँव है, इसे ‘द सिटी ऑफ़ ब्राइटनेस’ भी कहा जाता है।
राजस्थान का यह प्राचीन गांव अपने गुप्तोत्तर या प्रारंभिक मध्ययुगीन स्मारकों, चांद बावड़ी और हर्षत माता मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
इस गांव की स्थापना 9वीं शताब्दी में गुर्जर साम्राज्य के महाराज राजा चंद ने की थी।
राजोरगढ़:
यह राजस्थान के अलवर जिले का एक गाँव है। प्राचीन काल में यह स्थान राज्यपुरा, परानगर (पार्श्वनगर), नीलकंठ आदि के नाम से जाना जाता था। नीलकंठ प्रसिद्ध नीलकंठेश्वर शिव मंदिर से लिया गया एक नाम है।
प्रतिहार वंश यानि राजोर अभिलेख (अलवर) के गुर्जरों का प्रतिहार वंश।
इतिहासकार राम शंकर त्रिपाठी कहते हैं कि राजोर शिलालेख प्रतिहारों के गुर्जर मूल की पुष्टि करता है।
अतः, दिए गए बिन्दुओं से स्पष्ट है कि आभानेरी तथा राजौरगढ़ गुर्जर-प्रतिहार युग के हैं।
Incorrect
गुर्जर-प्रतिहार राजवंश भारतीय उपमहाद्वीप पर स्वर्गीय शास्त्रीय काल के दौरान एक शाही शक्ति थी, जिसने 8 वीं से 11 वीं शताब्दी के मध्य तक उत्तरी भारत के अधिकांश हिस्से पर शासन किया था।
Important Points
आभानेरी और राजोरगढ़ का कलात्मक वैभव:
आभानेरी:
यह उत्तरी राजस्थान में दौसा जिले का एक गाँव है, इसे ‘द सिटी ऑफ़ ब्राइटनेस’ भी कहा जाता है।
राजस्थान का यह प्राचीन गांव अपने गुप्तोत्तर या प्रारंभिक मध्ययुगीन स्मारकों, चांद बावड़ी और हर्षत माता मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
इस गांव की स्थापना 9वीं शताब्दी में गुर्जर साम्राज्य के महाराज राजा चंद ने की थी।
राजोरगढ़:
यह राजस्थान के अलवर जिले का एक गाँव है। प्राचीन काल में यह स्थान राज्यपुरा, परानगर (पार्श्वनगर), नीलकंठ आदि के नाम से जाना जाता था। नीलकंठ प्रसिद्ध नीलकंठेश्वर शिव मंदिर से लिया गया एक नाम है।
प्रतिहार वंश यानि राजोर अभिलेख (अलवर) के गुर्जरों का प्रतिहार वंश।
इतिहासकार राम शंकर त्रिपाठी कहते हैं कि राजोर शिलालेख प्रतिहारों के गुर्जर मूल की पुष्टि करता है।
अतः, दिए गए बिन्दुओं से स्पष्ट है कि आभानेरी तथा राजौरगढ़ गुर्जर-प्रतिहार युग के हैं।
Unattempted
गुर्जर-प्रतिहार राजवंश भारतीय उपमहाद्वीप पर स्वर्गीय शास्त्रीय काल के दौरान एक शाही शक्ति थी, जिसने 8 वीं से 11 वीं शताब्दी के मध्य तक उत्तरी भारत के अधिकांश हिस्से पर शासन किया था।
Important Points
आभानेरी और राजोरगढ़ का कलात्मक वैभव:
आभानेरी:
यह उत्तरी राजस्थान में दौसा जिले का एक गाँव है, इसे ‘द सिटी ऑफ़ ब्राइटनेस’ भी कहा जाता है।
राजस्थान का यह प्राचीन गांव अपने गुप्तोत्तर या प्रारंभिक मध्ययुगीन स्मारकों, चांद बावड़ी और हर्षत माता मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
इस गांव की स्थापना 9वीं शताब्दी में गुर्जर साम्राज्य के महाराज राजा चंद ने की थी।
राजोरगढ़:
यह राजस्थान के अलवर जिले का एक गाँव है। प्राचीन काल में यह स्थान राज्यपुरा, परानगर (पार्श्वनगर), नीलकंठ आदि के नाम से जाना जाता था। नीलकंठ प्रसिद्ध नीलकंठेश्वर शिव मंदिर से लिया गया एक नाम है।
प्रतिहार वंश यानि राजोर अभिलेख (अलवर) के गुर्जरों का प्रतिहार वंश।
इतिहासकार राम शंकर त्रिपाठी कहते हैं कि राजोर शिलालेख प्रतिहारों के गुर्जर मूल की पुष्टि करता है।
अतः, दिए गए बिन्दुओं से स्पष्ट है कि आभानेरी तथा राजौरगढ़ गुर्जर-प्रतिहार युग के हैं।
Question 28 of 40
28. Question
2 points
पर्यटन स्थल हल्दीघाटी राजस्थान के किस जिले में स्थित है ?
Correct
हल्दीघाटी
यह ऐतिहासिक युद्धस्थली नाथद्वारा (राजसमन्द )के पश्चिम में स्थित है।
यहाँ पर महाराणा प्रताप ने 18 जून, 1576 ई. में मानसिंह के नेतृत्त्व वाली अकबर की सेना से युद्ध किया था।
इसे भारत की थर्मोपोली के नाम से भी जाना जाता है।
Incorrect
हल्दीघाटी
यह ऐतिहासिक युद्धस्थली नाथद्वारा (राजसमन्द )के पश्चिम में स्थित है।
यहाँ पर महाराणा प्रताप ने 18 जून, 1576 ई. में मानसिंह के नेतृत्त्व वाली अकबर की सेना से युद्ध किया था।
इसे भारत की थर्मोपोली के नाम से भी जाना जाता है।
Unattempted
हल्दीघाटी
यह ऐतिहासिक युद्धस्थली नाथद्वारा (राजसमन्द )के पश्चिम में स्थित है।
यहाँ पर महाराणा प्रताप ने 18 जून, 1576 ई. में मानसिंह के नेतृत्त्व वाली अकबर की सेना से युद्ध किया था।
इसे भारत की थर्मोपोली के नाम से भी जाना जाता है।
Question 29 of 40
29. Question
2 points
राजस्थान में मूर्तिकला के लिए कौन सा शहर विख्यात है ?
Correct
व्याख्या : जयपुर मूर्तिकला एवं हस्तशिल्प के लिए प्रसिद्ध है।
महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट का जयपुर में आधनिक मूर्ति शिल्प के विकास में अप्रतिम योगदान रहा है।
उस्ताद मालीराम को जयपुर का माईकल एंजेलो कहा जाता है ।
गोपीचंद मिश्रा, मुकुटबिहारी नाठा, ओमप्रकाश नाठा, श्रीमती उषा रानी हूजा प्रमुख मूर्ति शिल्पकार रहे हैं।
Incorrect
व्याख्या : जयपुर मूर्तिकला एवं हस्तशिल्प के लिए प्रसिद्ध है।
महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट का जयपुर में आधनिक मूर्ति शिल्प के विकास में अप्रतिम योगदान रहा है।
उस्ताद मालीराम को जयपुर का माईकल एंजेलो कहा जाता है ।
गोपीचंद मिश्रा, मुकुटबिहारी नाठा, ओमप्रकाश नाठा, श्रीमती उषा रानी हूजा प्रमुख मूर्ति शिल्पकार रहे हैं।
Unattempted
व्याख्या : जयपुर मूर्तिकला एवं हस्तशिल्प के लिए प्रसिद्ध है।
महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट का जयपुर में आधनिक मूर्ति शिल्प के विकास में अप्रतिम योगदान रहा है।
उस्ताद मालीराम को जयपुर का माईकल एंजेलो कहा जाता है ।
गोपीचंद मिश्रा, मुकुटबिहारी नाठा, ओमप्रकाश नाठा, श्रीमती उषा रानी हूजा प्रमुख मूर्ति शिल्पकार रहे हैं।
Question 30 of 40
30. Question
2 points
‘आदिवासियों का ‘कुम्भ’किस मेले को कहा जाता है ?
Correct
बेणेश्वर धाम मेला (डूंगरपुर)
यह मेला सोम, माही व जाखम नदियों के संगम पर मेला भरता है।
यह मेला माघ पूर्णिमा को भरता हैं।
इस मेले को बागड़ का पुष्कर व आदिवासियों मेला भी कहते है।
संत माव जी को बेणेश्वर धाम पर ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
Incorrect
बेणेश्वर धाम मेला (डूंगरपुर)
यह मेला सोम, माही व जाखम नदियों के संगम पर मेला भरता है।
यह मेला माघ पूर्णिमा को भरता हैं।
इस मेले को बागड़ का पुष्कर व आदिवासियों मेला भी कहते है।
संत माव जी को बेणेश्वर धाम पर ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
Unattempted
बेणेश्वर धाम मेला (डूंगरपुर)
यह मेला सोम, माही व जाखम नदियों के संगम पर मेला भरता है।
यह मेला माघ पूर्णिमा को भरता हैं।
इस मेले को बागड़ का पुष्कर व आदिवासियों मेला भी कहते है।
संत माव जी को बेणेश्वर धाम पर ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
Question 31 of 40
31. Question
2 points
भीलों में छेड़ा फाड़ना’ क्या है ?
Correct
छेड़ा फाड़ना
भीलों में छेड़ा फाड़ना विवाह विच्छेद (तलाक) की परंपरा है।,
वह अपनी जाति के पंच के लोगों के सामने नई साड़ी के पल्ले में रुपये बाँधकर उसको चौड़ाई की तरफ से फाड़कर स्त्री को पहना देता है।
यह भील जनजाति में तलाक की एक प्रथा है।
Incorrect
छेड़ा फाड़ना
भीलों में छेड़ा फाड़ना विवाह विच्छेद (तलाक) की परंपरा है।,
वह अपनी जाति के पंच के लोगों के सामने नई साड़ी के पल्ले में रुपये बाँधकर उसको चौड़ाई की तरफ से फाड़कर स्त्री को पहना देता है।
यह भील जनजाति में तलाक की एक प्रथा है।
Unattempted
छेड़ा फाड़ना
भीलों में छेड़ा फाड़ना विवाह विच्छेद (तलाक) की परंपरा है।,
वह अपनी जाति के पंच के लोगों के सामने नई साड़ी के पल्ले में रुपये बाँधकर उसको चौड़ाई की तरफ से फाड़कर स्त्री को पहना देता है।
यह भील जनजाति में तलाक की एक प्रथा है।
Question 32 of 40
32. Question
2 points
‘रमझोल’ आभूषण शरीर के किस भाग से संबंधित है ?
Correct
****रमझोल : यह पाँवों में पहना जाने वाला धुंघरूओं वाला आभूषण है
पैर पहने जाने वाले अन्य प्रमुख आभूषण : पायल, आंवला, लछने / लच्छे, पायजेब, छड़, कड़ा, टोड़ा, टाँका, नेवरी, झाँझर, नुपूर / घुघरू, हिरनामैन,, खडुआ
Incorrect
****रमझोल : यह पाँवों में पहना जाने वाला धुंघरूओं वाला आभूषण है
पैर पहने जाने वाले अन्य प्रमुख आभूषण : पायल, आंवला, लछने / लच्छे, पायजेब, छड़, कड़ा, टोड़ा, टाँका, नेवरी, झाँझर, नुपूर / घुघरू, हिरनामैन,, खडुआ
Unattempted
****रमझोल : यह पाँवों में पहना जाने वाला धुंघरूओं वाला आभूषण है
पैर पहने जाने वाले अन्य प्रमुख आभूषण : पायल, आंवला, लछने / लच्छे, पायजेब, छड़, कड़ा, टोड़ा, टाँका, नेवरी, झाँझर, नुपूर / घुघरू, हिरनामैन,, खडुआ
Question 33 of 40
33. Question
2 points
‘शक्कर पीर बाबा’ के नाम से प्रसिद्ध हज़रत हाज़िब शक्कर बादशाह की दरगाह स्थित है ?
Correct
‘बागड़ के धनी’, ‘नरहड़ के पीर’ नाम से प्रसिद्ध हज़रत शक्कर पीर की दरगाह चिडावा (झंटान) के पास नरहड गांव में स्थित है।
दरगाह साम्प्रदायिक सद्भाव का अनूठा स्थल है,
जहाँ जन्माष्टमी के दिन मेला लगता है।
Incorrect
‘बागड़ के धनी’, ‘नरहड़ के पीर’ नाम से प्रसिद्ध हज़रत शक्कर पीर की दरगाह चिडावा (झंटान) के पास नरहड गांव में स्थित है।
दरगाह साम्प्रदायिक सद्भाव का अनूठा स्थल है,
जहाँ जन्माष्टमी के दिन मेला लगता है।
Unattempted
‘बागड़ के धनी’, ‘नरहड़ के पीर’ नाम से प्रसिद्ध हज़रत शक्कर पीर की दरगाह चिडावा (झंटान) के पास नरहड गांव में स्थित है।
दरगाह साम्प्रदायिक सद्भाव का अनूठा स्थल है,
जहाँ जन्माष्टमी के दिन मेला लगता है।
Question 34 of 40
34. Question
2 points
तोरावाटी, काठेड़ा, राजावाड़ी बोलियों का सम्बन्ध किस क्षेत्र से है ?
तोरावाटी–झुंझुनूँ जिले का दक्षिणी भाग, सीकर जिले का पूर्वी एवं दक्षिणी-पूर्वी भाग तथा जयपुर जिले के कुछ उत्तरी भाग को तोरावाटी कहा जाता है। अतः यहाँ की बोली तोरावाटी कहलाई।
काठेड़ी बोली -जयपुर जिले के दक्षिणी भाग में प्रचलित है
चौरासी -जयपुर जिले के दक्षिणी-पश्चिमी एवं टोंक जिले के पश्चिमी भाग में प्रचलित है।
नागरचोल -सवाईमाधोपुर जिले के पश्चिमी भाग एवं टोंक जिले के दक्षिणी एवं पूर्वी भाग में बोली जाती है।
जयपुर जिले के पूर्वी भाग में राजावाटी बोली प्रचलित है।
तोरावाटी–झुंझुनूँ जिले का दक्षिणी भाग, सीकर जिले का पूर्वी एवं दक्षिणी-पूर्वी भाग तथा जयपुर जिले के कुछ उत्तरी भाग को तोरावाटी कहा जाता है। अतः यहाँ की बोली तोरावाटी कहलाई।
काठेड़ी बोली -जयपुर जिले के दक्षिणी भाग में प्रचलित है
चौरासी -जयपुर जिले के दक्षिणी-पश्चिमी एवं टोंक जिले के पश्चिमी भाग में प्रचलित है।
नागरचोल -सवाईमाधोपुर जिले के पश्चिमी भाग एवं टोंक जिले के दक्षिणी एवं पूर्वी भाग में बोली जाती है।
जयपुर जिले के पूर्वी भाग में राजावाटी बोली प्रचलित है।
तोरावाटी–झुंझुनूँ जिले का दक्षिणी भाग, सीकर जिले का पूर्वी एवं दक्षिणी-पूर्वी भाग तथा जयपुर जिले के कुछ उत्तरी भाग को तोरावाटी कहा जाता है। अतः यहाँ की बोली तोरावाटी कहलाई।
काठेड़ी बोली -जयपुर जिले के दक्षिणी भाग में प्रचलित है
चौरासी -जयपुर जिले के दक्षिणी-पश्चिमी एवं टोंक जिले के पश्चिमी भाग में प्रचलित है।
नागरचोल -सवाईमाधोपुर जिले के पश्चिमी भाग एवं टोंक जिले के दक्षिणी एवं पूर्वी भाग में बोली जाती है।
जयपुर जिले के पूर्वी भाग में राजावाटी बोली प्रचलित है।
Question 35 of 40
35. Question
2 points
हरकेलि’ संस्कृत नाटक के रचयिता कौन हैं ?
Correct
चौहान शासक विग्रहराज-IV (बीसलदेव)1158-1163 ई. तक उत्तरी पश्चिमी भारत पर शासन किया।
विग्रहराज चतुर्थ द्वारा संस्कृत भाषा में ‘हरकेलि नाटक‘ लिखा गया।
यह नाटक प्रसिद्ध लेखक भारवि के नाटक ‘किर्रातुर्जनीयम्’ पर आधारित है।
बीसलदेव का दरबारी कवि ‘सोमदेव’ था, जिसने ‘ललित विग्रह’ की रचना की इसमें उसने इन्द्रपुर की राजकुमारी देसलदेवी व बीसलदेव के प्रेम प्रसंग का वर्णन किया है।
विद्वानों के आश्रयदाता होने के कारण जयानक भट्ट ने बीसलदेव/विग्रहराज-IV को कविबांधव/ कटिबन्धु कहा है।
विग्रहराज-IV के दिल्ली शिवालिक अभिलेख’ में उसके द्वारा मलेच्छों/विदेशी आक्रमणकारियों को परास्त करने का उल्लेख प्राप्त होता है।
Incorrect
चौहान शासक विग्रहराज-IV (बीसलदेव)1158-1163 ई. तक उत्तरी पश्चिमी भारत पर शासन किया।
विग्रहराज चतुर्थ द्वारा संस्कृत भाषा में ‘हरकेलि नाटक‘ लिखा गया।
यह नाटक प्रसिद्ध लेखक भारवि के नाटक ‘किर्रातुर्जनीयम्’ पर आधारित है।
बीसलदेव का दरबारी कवि ‘सोमदेव’ था, जिसने ‘ललित विग्रह’ की रचना की इसमें उसने इन्द्रपुर की राजकुमारी देसलदेवी व बीसलदेव के प्रेम प्रसंग का वर्णन किया है।
विद्वानों के आश्रयदाता होने के कारण जयानक भट्ट ने बीसलदेव/विग्रहराज-IV को कविबांधव/ कटिबन्धु कहा है।
विग्रहराज-IV के दिल्ली शिवालिक अभिलेख’ में उसके द्वारा मलेच्छों/विदेशी आक्रमणकारियों को परास्त करने का उल्लेख प्राप्त होता है।
Unattempted
चौहान शासक विग्रहराज-IV (बीसलदेव)1158-1163 ई. तक उत्तरी पश्चिमी भारत पर शासन किया।
विग्रहराज चतुर्थ द्वारा संस्कृत भाषा में ‘हरकेलि नाटक‘ लिखा गया।
यह नाटक प्रसिद्ध लेखक भारवि के नाटक ‘किर्रातुर्जनीयम्’ पर आधारित है।
बीसलदेव का दरबारी कवि ‘सोमदेव’ था, जिसने ‘ललित विग्रह’ की रचना की इसमें उसने इन्द्रपुर की राजकुमारी देसलदेवी व बीसलदेव के प्रेम प्रसंग का वर्णन किया है।
विद्वानों के आश्रयदाता होने के कारण जयानक भट्ट ने बीसलदेव/विग्रहराज-IV को कविबांधव/ कटिबन्धु कहा है।
विग्रहराज-IV के दिल्ली शिवालिक अभिलेख’ में उसके द्वारा मलेच्छों/विदेशी आक्रमणकारियों को परास्त करने का उल्लेख प्राप्त होता है।
Question 36 of 40
36. Question
2 points
मत्स्य संघ का राजस्थान में विलय कब हुआ?
Correct
व्याख्या :
मत्स्य संघ- अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली रियासतों तथा नीमराणा चीफशिप को मिलाकर मत्स्य संघ का निर्माण 17/18 मार्च 1948 को किया गया।
राजस्थान के एकीकरण के पंचम चरण में मत्स्य संघ के उत्तर प्रदेश या राजस्थान में विलय के प्रश्न पर उपजे विवाद को समाप्त करने हेतु तथा भरतपुर व धौलपुर की जनता की मत्स्य संघ के राजस्थान में विलय के प्रश्न पर राय जानने हेतु ‘शंकरराव देव समिति’ का गठन किया गया। (इस समिति में शंकरराव देव के अतिरिक्त आर. के. सिद्धावा व प्रभुदयाल सदस्य थे) इस समिति की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए मत्स्य संघ का वृहत् राजस्थान में 15 मई 1949 को विलय कर दिया गया। इस संघ को ‘वृहद् राजस्थान’ का नाम दिया गया।
प्रथम चरण – मत्स्य संघ
तिथि – 18 मार्च 1948
सम्मिलित रियासतें एवं ठिकाने – अलवर भरतपुर धौलपुर करौली नीमराना ठिकाना।
राजधानी- अलवर
उद्घाटनकर्ता – एन. वी. गाडगिल
प्रधानमंत्री – शोभाराम कुमावत (अलवर से)
राजप्रमुख – उदयभान सिंह (धौलपुर शासक)
नामकरण – के. एम्. मुंशी
Incorrect
व्याख्या :
मत्स्य संघ- अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली रियासतों तथा नीमराणा चीफशिप को मिलाकर मत्स्य संघ का निर्माण 17/18 मार्च 1948 को किया गया।
राजस्थान के एकीकरण के पंचम चरण में मत्स्य संघ के उत्तर प्रदेश या राजस्थान में विलय के प्रश्न पर उपजे विवाद को समाप्त करने हेतु तथा भरतपुर व धौलपुर की जनता की मत्स्य संघ के राजस्थान में विलय के प्रश्न पर राय जानने हेतु ‘शंकरराव देव समिति’ का गठन किया गया। (इस समिति में शंकरराव देव के अतिरिक्त आर. के. सिद्धावा व प्रभुदयाल सदस्य थे) इस समिति की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए मत्स्य संघ का वृहत् राजस्थान में 15 मई 1949 को विलय कर दिया गया। इस संघ को ‘वृहद् राजस्थान’ का नाम दिया गया।
प्रथम चरण – मत्स्य संघ
तिथि – 18 मार्च 1948
सम्मिलित रियासतें एवं ठिकाने – अलवर भरतपुर धौलपुर करौली नीमराना ठिकाना।
राजधानी- अलवर
उद्घाटनकर्ता – एन. वी. गाडगिल
प्रधानमंत्री – शोभाराम कुमावत (अलवर से)
राजप्रमुख – उदयभान सिंह (धौलपुर शासक)
नामकरण – के. एम्. मुंशी
Unattempted
व्याख्या :
मत्स्य संघ- अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली रियासतों तथा नीमराणा चीफशिप को मिलाकर मत्स्य संघ का निर्माण 17/18 मार्च 1948 को किया गया।
राजस्थान के एकीकरण के पंचम चरण में मत्स्य संघ के उत्तर प्रदेश या राजस्थान में विलय के प्रश्न पर उपजे विवाद को समाप्त करने हेतु तथा भरतपुर व धौलपुर की जनता की मत्स्य संघ के राजस्थान में विलय के प्रश्न पर राय जानने हेतु ‘शंकरराव देव समिति’ का गठन किया गया। (इस समिति में शंकरराव देव के अतिरिक्त आर. के. सिद्धावा व प्रभुदयाल सदस्य थे) इस समिति की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए मत्स्य संघ का वृहत् राजस्थान में 15 मई 1949 को विलय कर दिया गया। इस संघ को ‘वृहद् राजस्थान’ का नाम दिया गया।
प्रथम चरण – मत्स्य संघ
तिथि – 18 मार्च 1948
सम्मिलित रियासतें एवं ठिकाने – अलवर भरतपुर धौलपुर करौली नीमराना ठिकाना।
राजधानी- अलवर
उद्घाटनकर्ता – एन. वी. गाडगिल
प्रधानमंत्री – शोभाराम कुमावत (अलवर से)
राजप्रमुख – उदयभान सिंह (धौलपुर शासक)
नामकरण – के. एम्. मुंशी
Question 37 of 40
37. Question
2 points
राजस्थान की सबसे लोकप्रिय ‘फड़’ कौन-सी है?
Correct
देवनारायण जी
जन्म – आशीन्द (भीलवाडा) में हुआ।
पिताजी संवाई भोज एवं माता सेडू खटाणी।
राजा जयसिंह(मध्यप्रदेष के धार के शासक) की पुत्री पीपलदे से इनका विवाह हुआ।
गुर्जर जाति के आराध्य देव है।
गुर्जर जाति का प्रमुख व्यवसाय पशुपालन है।
देवनारायण जी विष्णु का अवतार माने जाते है।
मुख्य मेंला भाद्र शुक्ल सप्तमी को भरता हैं।
देवनारायण जी के घोडे़ का नाम लीलागर था।
प्रमुख स्थल- 1. सवाई भोज मंदिर (आशीन्द ) भीलवाडा में है। 2. देव धाम जोधपुरिया (टोंक) में है।
उपनाम – चमत्कारी लोक पुरूष
जन्म का नाम उदयसिंह थान
देवधाम जोधपुरिया (टोंक) – इस स्थान पर सर्वप्रथम देवनारायणजी ने अपने शिष्यों को उपदेश दिया था।
इनकी फंड राज्य की सबसे लम्बी फंड़ है।राजस्थान की सबसे लोकप्रिय ‘फड़’ है
गुर्जर जाति के भोपों द्वारा फंड़ वाचन के समय “जन्तर” नामक वाद्य यंत्र का उपयोग किया जाता है।
इनकी फड़ पर भारत सरकार के द्वारा 5 रु का टिकट भी जारी किया जा चुका हैें।
देवनारायण जी के मंदिरों में एक ईंट की पूजा होती है।
Incorrect
देवनारायण जी
जन्म – आशीन्द (भीलवाडा) में हुआ।
पिताजी संवाई भोज एवं माता सेडू खटाणी।
राजा जयसिंह(मध्यप्रदेष के धार के शासक) की पुत्री पीपलदे से इनका विवाह हुआ।
गुर्जर जाति के आराध्य देव है।
गुर्जर जाति का प्रमुख व्यवसाय पशुपालन है।
देवनारायण जी विष्णु का अवतार माने जाते है।
मुख्य मेंला भाद्र शुक्ल सप्तमी को भरता हैं।
देवनारायण जी के घोडे़ का नाम लीलागर था।
प्रमुख स्थल- 1. सवाई भोज मंदिर (आशीन्द ) भीलवाडा में है। 2. देव धाम जोधपुरिया (टोंक) में है।
उपनाम – चमत्कारी लोक पुरूष
जन्म का नाम उदयसिंह थान
देवधाम जोधपुरिया (टोंक) – इस स्थान पर सर्वप्रथम देवनारायणजी ने अपने शिष्यों को उपदेश दिया था।
इनकी फंड राज्य की सबसे लम्बी फंड़ है।राजस्थान की सबसे लोकप्रिय ‘फड़’ है
गुर्जर जाति के भोपों द्वारा फंड़ वाचन के समय “जन्तर” नामक वाद्य यंत्र का उपयोग किया जाता है।
इनकी फड़ पर भारत सरकार के द्वारा 5 रु का टिकट भी जारी किया जा चुका हैें।
देवनारायण जी के मंदिरों में एक ईंट की पूजा होती है।
Unattempted
देवनारायण जी
जन्म – आशीन्द (भीलवाडा) में हुआ।
पिताजी संवाई भोज एवं माता सेडू खटाणी।
राजा जयसिंह(मध्यप्रदेष के धार के शासक) की पुत्री पीपलदे से इनका विवाह हुआ।
गुर्जर जाति के आराध्य देव है।
गुर्जर जाति का प्रमुख व्यवसाय पशुपालन है।
देवनारायण जी विष्णु का अवतार माने जाते है।
मुख्य मेंला भाद्र शुक्ल सप्तमी को भरता हैं।
देवनारायण जी के घोडे़ का नाम लीलागर था।
प्रमुख स्थल- 1. सवाई भोज मंदिर (आशीन्द ) भीलवाडा में है। 2. देव धाम जोधपुरिया (टोंक) में है।
उपनाम – चमत्कारी लोक पुरूष
जन्म का नाम उदयसिंह थान
देवधाम जोधपुरिया (टोंक) – इस स्थान पर सर्वप्रथम देवनारायणजी ने अपने शिष्यों को उपदेश दिया था।
इनकी फंड राज्य की सबसे लम्बी फंड़ है।राजस्थान की सबसे लोकप्रिय ‘फड़’ है
गुर्जर जाति के भोपों द्वारा फंड़ वाचन के समय “जन्तर” नामक वाद्य यंत्र का उपयोग किया जाता है।
इनकी फड़ पर भारत सरकार के द्वारा 5 रु का टिकट भी जारी किया जा चुका हैें।
देवनारायण जी के मंदिरों में एक ईंट की पूजा होती है।
Question 38 of 40
38. Question
2 points
आभानेरी तथा राजौरगढ़ के कलात्मक वैभव किस काल के हैं?
Correct
आभानेरी और राजोरगढ़ का कलात्मक वैभव:
आभानेरी:
यह उत्तरी राजस्थान में दौसा जिले का एक गाँव है, इसे ‘द सिटी ऑफ़ ब्राइटनेस’ भी कहा जाता है।
राजस्थान का यह प्राचीन गांव अपने गुप्तोत्तर या प्रारंभिक मध्ययुगीन स्मारकों, चांद बावड़ी और हर्षत माता मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
इस गांव की स्थापना 9वीं शताब्दी में गुर्जर साम्राज्य के महाराज राजा चंद ने की थी।
राजोरगढ़:
यह राजस्थान के अलवर जिले का एक गाँव है। प्राचीन काल में यह स्थान राज्यपुरा, परानगर (पार्श्वनगर), नीलकंठ आदि के नाम से जाना जाता था। नीलकंठ प्रसिद्ध नीलकंठेश्वर शिव मंदिर से लिया गया एक नाम है।
प्रतिहार वंश यानि राजोर अभिलेख (अलवर) के गुर्जरों का प्रतिहार वंश।
इतिहासकार राम शंकर त्रिपाठी कहते हैं कि राजोर शिलालेख प्रतिहारों के गुर्जर मूल की पुष्टि करता है।
यह उत्तरी राजस्थान में दौसा जिले का एक गाँव है, इसे ‘द सिटी ऑफ़ ब्राइटनेस’ भी कहा जाता है।
राजस्थान का यह प्राचीन गांव अपने गुप्तोत्तर या प्रारंभिक मध्ययुगीन स्मारकों, चांद बावड़ी और हर्षत माता मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
इस गांव की स्थापना 9वीं शताब्दी में गुर्जर साम्राज्य के महाराज राजा चंद ने की थी।
राजोरगढ़:
यह राजस्थान के अलवर जिले का एक गाँव है। प्राचीन काल में यह स्थान राज्यपुरा, परानगर (पार्श्वनगर), नीलकंठ आदि के नाम से जाना जाता था। नीलकंठ प्रसिद्ध नीलकंठेश्वर शिव मंदिर से लिया गया एक नाम है।
प्रतिहार वंश यानि राजोर अभिलेख (अलवर) के गुर्जरों का प्रतिहार वंश।
इतिहासकार राम शंकर त्रिपाठी कहते हैं कि राजोर शिलालेख प्रतिहारों के गुर्जर मूल की पुष्टि करता है।
यह उत्तरी राजस्थान में दौसा जिले का एक गाँव है, इसे ‘द सिटी ऑफ़ ब्राइटनेस’ भी कहा जाता है।
राजस्थान का यह प्राचीन गांव अपने गुप्तोत्तर या प्रारंभिक मध्ययुगीन स्मारकों, चांद बावड़ी और हर्षत माता मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
इस गांव की स्थापना 9वीं शताब्दी में गुर्जर साम्राज्य के महाराज राजा चंद ने की थी।
राजोरगढ़:
यह राजस्थान के अलवर जिले का एक गाँव है। प्राचीन काल में यह स्थान राज्यपुरा, परानगर (पार्श्वनगर), नीलकंठ आदि के नाम से जाना जाता था। नीलकंठ प्रसिद्ध नीलकंठेश्वर शिव मंदिर से लिया गया एक नाम है।
प्रतिहार वंश यानि राजोर अभिलेख (अलवर) के गुर्जरों का प्रतिहार वंश।
इतिहासकार राम शंकर त्रिपाठी कहते हैं कि राजोर शिलालेख प्रतिहारों के गुर्जर मूल की पुष्टि करता है।