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Question 1 of 10
1. Question
1 points
निम्न में से कौन गलत है
Correct
व्याख्या-
उत्तर भारत में भक्ति आन्दोलन की शुरुआत रामानंद ने की |
गुरू नानक-
जन्म : कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन 1469 को तलवंडी नामक स्थान में, कल्याणचंद (मेहता कालू) नाम के एक किसान के घर गुरु नानकदेवजी का जन्म हुआ। उनकी माता का नाम तृप्ता था। तलवंडी को ही अब नानक के नाम पर ननकाना साहब कहा जाता है, जो पाकिस्तान में है।
गुरू नानक ने अपनी उदार प्रवृत्ति का परिचय देते हुए हिन्दू और मुस्लिम भक्ति को समान रूप से व्यक्त करने के लिए सक्षम धर्म की खोज की।
नानक उदेश्य दोनों धर्मों को एकता के सूत्र में बाधना था ।
गुरू नानक ने जाति धर्म या रंग के भेदभाव के बिना सभी लोगों को अपना उपदेश दिया।
गुरू नानक ने ईश्वर, राम, गोविन्द, हरी, मुरारी, रब. और रहीम के लिए हिन्दू और मुस्लिम दोनों उपनामों का प्रयोग किया।
नानकदेवजी के दस सिद्धांत :
ईश्वर एक है।
सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो।
जगत का कर्ता सब जगह और सब प्राणी मात्र में मौजूद है।
सर्वशक्तिमान ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता।
ईमानदारी से मेहनत करके उदरपूर्ति करना चाहिए।
बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएं।
सदा प्रसन्न रहना चाहिए। ईश्वर से सदा अपने को क्षमाशीलता मांगना चाहिए।
मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके उसमें से जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए।
सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं।
भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिए जरूरी है पर लोभ-लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है।
Incorrect
व्याख्या-
उत्तर भारत में भक्ति आन्दोलन की शुरुआत रामानंद ने की |
गुरू नानक-
जन्म : कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन 1469 को तलवंडी नामक स्थान में, कल्याणचंद (मेहता कालू) नाम के एक किसान के घर गुरु नानकदेवजी का जन्म हुआ। उनकी माता का नाम तृप्ता था। तलवंडी को ही अब नानक के नाम पर ननकाना साहब कहा जाता है, जो पाकिस्तान में है।
गुरू नानक ने अपनी उदार प्रवृत्ति का परिचय देते हुए हिन्दू और मुस्लिम भक्ति को समान रूप से व्यक्त करने के लिए सक्षम धर्म की खोज की।
नानक उदेश्य दोनों धर्मों को एकता के सूत्र में बाधना था ।
गुरू नानक ने जाति धर्म या रंग के भेदभाव के बिना सभी लोगों को अपना उपदेश दिया।
गुरू नानक ने ईश्वर, राम, गोविन्द, हरी, मुरारी, रब. और रहीम के लिए हिन्दू और मुस्लिम दोनों उपनामों का प्रयोग किया।
नानकदेवजी के दस सिद्धांत :
ईश्वर एक है।
सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो।
जगत का कर्ता सब जगह और सब प्राणी मात्र में मौजूद है।
सर्वशक्तिमान ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता।
ईमानदारी से मेहनत करके उदरपूर्ति करना चाहिए।
बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएं।
सदा प्रसन्न रहना चाहिए। ईश्वर से सदा अपने को क्षमाशीलता मांगना चाहिए।
मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके उसमें से जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए।
सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं।
भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिए जरूरी है पर लोभ-लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है।
Unattempted
व्याख्या-
उत्तर भारत में भक्ति आन्दोलन की शुरुआत रामानंद ने की |
गुरू नानक-
जन्म : कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन 1469 को तलवंडी नामक स्थान में, कल्याणचंद (मेहता कालू) नाम के एक किसान के घर गुरु नानकदेवजी का जन्म हुआ। उनकी माता का नाम तृप्ता था। तलवंडी को ही अब नानक के नाम पर ननकाना साहब कहा जाता है, जो पाकिस्तान में है।
गुरू नानक ने अपनी उदार प्रवृत्ति का परिचय देते हुए हिन्दू और मुस्लिम भक्ति को समान रूप से व्यक्त करने के लिए सक्षम धर्म की खोज की।
नानक उदेश्य दोनों धर्मों को एकता के सूत्र में बाधना था ।
गुरू नानक ने जाति धर्म या रंग के भेदभाव के बिना सभी लोगों को अपना उपदेश दिया।
गुरू नानक ने ईश्वर, राम, गोविन्द, हरी, मुरारी, रब. और रहीम के लिए हिन्दू और मुस्लिम दोनों उपनामों का प्रयोग किया।
नानकदेवजी के दस सिद्धांत :
ईश्वर एक है।
सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो।
जगत का कर्ता सब जगह और सब प्राणी मात्र में मौजूद है।
सर्वशक्तिमान ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता।
ईमानदारी से मेहनत करके उदरपूर्ति करना चाहिए।
बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएं।
सदा प्रसन्न रहना चाहिए। ईश्वर से सदा अपने को क्षमाशीलता मांगना चाहिए।
मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके उसमें से जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए।
सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं।
भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिए जरूरी है पर लोभ-लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है।
Question 2 of 10
2. Question
1 points
पुष्टिमार्ग के दर्शन की स्थापना की थी
Correct
व्याख्या-
अद्वैतवाद- शंकराचार्य
विशिष्टाद्वैतवाद/श्री सम्प्रदाय- रामानुजाचार्य
द्वैतवाद / ब्रम्ह सम्प्रदाय- माधवाचार्य
द्वैताद्वैतवाद/सनक सम्प्रदाय-आचार्य निम्बार्क
शुद्धताद्वैतवाद /पुष्टिमार्ग-वल्लभाचार्य
पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय का संस्थापक वल्लभाचार्य को माना जाता है।
वल्लभाचार्य ने भगवान कृष्ण की यशलीला को अपने पुष्टिमार्ग का प्रमुख उद्देश्य स्वीकार किया।
वल्लभाचार्य के अनुसार भक्ति की ओर जीव तभी प्रवृत्त होता है जब भगवान का अनुग्रह होता है अर्थात् इन्होंने ईश्वर के अनुग्रह को ही सब कुछ माना, इसे ‘पोषण’ अथवा ‘पुष्टि’ कहते है।
Incorrect
व्याख्या-
अद्वैतवाद- शंकराचार्य
विशिष्टाद्वैतवाद/श्री सम्प्रदाय- रामानुजाचार्य
द्वैतवाद / ब्रम्ह सम्प्रदाय- माधवाचार्य
द्वैताद्वैतवाद/सनक सम्प्रदाय-आचार्य निम्बार्क
शुद्धताद्वैतवाद /पुष्टिमार्ग-वल्लभाचार्य
पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय का संस्थापक वल्लभाचार्य को माना जाता है।
वल्लभाचार्य ने भगवान कृष्ण की यशलीला को अपने पुष्टिमार्ग का प्रमुख उद्देश्य स्वीकार किया।
वल्लभाचार्य के अनुसार भक्ति की ओर जीव तभी प्रवृत्त होता है जब भगवान का अनुग्रह होता है अर्थात् इन्होंने ईश्वर के अनुग्रह को ही सब कुछ माना, इसे ‘पोषण’ अथवा ‘पुष्टि’ कहते है।
Unattempted
व्याख्या-
अद्वैतवाद- शंकराचार्य
विशिष्टाद्वैतवाद/श्री सम्प्रदाय- रामानुजाचार्य
द्वैतवाद / ब्रम्ह सम्प्रदाय- माधवाचार्य
द्वैताद्वैतवाद/सनक सम्प्रदाय-आचार्य निम्बार्क
शुद्धताद्वैतवाद /पुष्टिमार्ग-वल्लभाचार्य
पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय का संस्थापक वल्लभाचार्य को माना जाता है।
वल्लभाचार्य ने भगवान कृष्ण की यशलीला को अपने पुष्टिमार्ग का प्रमुख उद्देश्य स्वीकार किया।
वल्लभाचार्य के अनुसार भक्ति की ओर जीव तभी प्रवृत्त होता है जब भगवान का अनुग्रह होता है अर्थात् इन्होंने ईश्वर के अनुग्रह को ही सब कुछ माना, इसे ‘पोषण’ अथवा ‘पुष्टि’ कहते है।
Question 3 of 10
3. Question
1 points
निम्न में से कौन गलत है
Correct
व्याख्या-
भक्ति आन्दोलन मुख्यत: एकेश्वरवादी पंथ था।
उत्तर एवं दक्षिण भारत के भक्ति सन्त ज्ञान को भक्ति का एक तत्व मानते थे।
भक्ति आन्दोलन ने गुरू से वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने पर अत्यधिक जोर दिया।
भक्ति आन्दोलन समतावादी आन्दोलन था जिसने जाति अथवा धर्म पर आधारित भेदभाव का पूर्णतया निषेध किया।
भक्ति आन्दोलन के संत सामाजिक एकता, मन, चरित्र तथा आत्मा की पवित्रता के पक्के समर्थक थे।
भक्ति का द्वार निम्न वर्गों तथा अछूतों के लिए भी खुला था।
भक्ति आन्दोलन में यज्ञों, दैनिक कर्मकाण्डों तथा जाति व्यवस्था के लिए कोई स्थान नहीं था।
भक्त केवल एक ही ईश्वर की उपासना करते थे, जो या तो सगुण रूप में हो सकता था या निर्गुण रूप में है।
सगुण उपासक वैष्णव के रूप में प्रसिद्ध हुए और कृष्णमार्गी एवं राममार्गी दो शाखाओं में विभाजित थे।
दार्शनिक दृष्टि से सगुण एवं निगुण अद्वैत के औपनिषदिक दर्शन में विश्वास करते थे जिनमें विभिन्न संतों ने कई भेद सुझाए थे।
Incorrect
व्याख्या-
भक्ति आन्दोलन मुख्यत: एकेश्वरवादी पंथ था।
उत्तर एवं दक्षिण भारत के भक्ति सन्त ज्ञान को भक्ति का एक तत्व मानते थे।
भक्ति आन्दोलन ने गुरू से वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने पर अत्यधिक जोर दिया।
भक्ति आन्दोलन समतावादी आन्दोलन था जिसने जाति अथवा धर्म पर आधारित भेदभाव का पूर्णतया निषेध किया।
भक्ति आन्दोलन के संत सामाजिक एकता, मन, चरित्र तथा आत्मा की पवित्रता के पक्के समर्थक थे।
भक्ति का द्वार निम्न वर्गों तथा अछूतों के लिए भी खुला था।
भक्ति आन्दोलन में यज्ञों, दैनिक कर्मकाण्डों तथा जाति व्यवस्था के लिए कोई स्थान नहीं था।
भक्त केवल एक ही ईश्वर की उपासना करते थे, जो या तो सगुण रूप में हो सकता था या निर्गुण रूप में है।
सगुण उपासक वैष्णव के रूप में प्रसिद्ध हुए और कृष्णमार्गी एवं राममार्गी दो शाखाओं में विभाजित थे।
दार्शनिक दृष्टि से सगुण एवं निगुण अद्वैत के औपनिषदिक दर्शन में विश्वास करते थे जिनमें विभिन्न संतों ने कई भेद सुझाए थे।
Unattempted
व्याख्या-
भक्ति आन्दोलन मुख्यत: एकेश्वरवादी पंथ था।
उत्तर एवं दक्षिण भारत के भक्ति सन्त ज्ञान को भक्ति का एक तत्व मानते थे।
भक्ति आन्दोलन ने गुरू से वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने पर अत्यधिक जोर दिया।
भक्ति आन्दोलन समतावादी आन्दोलन था जिसने जाति अथवा धर्म पर आधारित भेदभाव का पूर्णतया निषेध किया।
भक्ति आन्दोलन के संत सामाजिक एकता, मन, चरित्र तथा आत्मा की पवित्रता के पक्के समर्थक थे।
भक्ति का द्वार निम्न वर्गों तथा अछूतों के लिए भी खुला था।
भक्ति आन्दोलन में यज्ञों, दैनिक कर्मकाण्डों तथा जाति व्यवस्था के लिए कोई स्थान नहीं था।
भक्त केवल एक ही ईश्वर की उपासना करते थे, जो या तो सगुण रूप में हो सकता था या निर्गुण रूप में है।
सगुण उपासक वैष्णव के रूप में प्रसिद्ध हुए और कृष्णमार्गी एवं राममार्गी दो शाखाओं में विभाजित थे।
दार्शनिक दृष्टि से सगुण एवं निगुण अद्वैत के औपनिषदिक दर्शन में विश्वास करते थे जिनमें विभिन्न संतों ने कई भेद सुझाए थे।
Question 4 of 10
4. Question
1 points
निम्न में से कौन सही है-
Correct
व्याख्या-
8वीं शताब्दी में भारत में हिन्दू तथा इस्लाम धर्म के रुप में दो समानान्तर आन्दोलनों का उदय हुआ
भक्ति आन्दोलन
सूफी आन्दोलन
15वीं एवं 16वीं शताब्दी में इनका पूर्ण विकास हुआ। इन दोनों समानान्तर धार्मिक आन्दोलनों की प्रमुख विशेषता यह रही
धार्मिक आन्दोलनों में प्रेम एवं भक्ति दोनों के मूल भाव थे।
दोनों की रहस्यवादी भावना ने संयुक्त रूप से व्यक्ति एवं समाज की वर्ग, धर्म: धन, शक्ति आदि के अवरोधों से ऊपर उठकर उनके नैतिक उन्नति में योगदान दिया।
धार्मिक आन्दोलनों के संत आत्मा की अमरता में विश्वास करते थे तथा पुर्नजन्म को एक दृष्टि से सत्य मानते थे।
धार्मिक आन्दोलनों ने भारतीय समाज के सैद्धान्तिक विश्वासों, कर्मकाण्डों, जातिवाद तथा साम्प्रदायिक घृणा आदि बुराइयों से मुक्त कराया।
धार्मिक आन्दोलनों ने जनभाषा में सामान्य धर्म प्रचार किया।
धार्मिक आन्दोलनों को न तो कोई राजनीतिक संरक्षण मिला और न ही इन पर राजनीतिक गति विधियों का ही कोई प्रभाव पड़ा।
Incorrect
व्याख्या-
8वीं शताब्दी में भारत में हिन्दू तथा इस्लाम धर्म के रुप में दो समानान्तर आन्दोलनों का उदय हुआ
भक्ति आन्दोलन
सूफी आन्दोलन
15वीं एवं 16वीं शताब्दी में इनका पूर्ण विकास हुआ। इन दोनों समानान्तर धार्मिक आन्दोलनों की प्रमुख विशेषता यह रही
धार्मिक आन्दोलनों में प्रेम एवं भक्ति दोनों के मूल भाव थे।
दोनों की रहस्यवादी भावना ने संयुक्त रूप से व्यक्ति एवं समाज की वर्ग, धर्म: धन, शक्ति आदि के अवरोधों से ऊपर उठकर उनके नैतिक उन्नति में योगदान दिया।
धार्मिक आन्दोलनों के संत आत्मा की अमरता में विश्वास करते थे तथा पुर्नजन्म को एक दृष्टि से सत्य मानते थे।
धार्मिक आन्दोलनों ने भारतीय समाज के सैद्धान्तिक विश्वासों, कर्मकाण्डों, जातिवाद तथा साम्प्रदायिक घृणा आदि बुराइयों से मुक्त कराया।
धार्मिक आन्दोलनों ने जनभाषा में सामान्य धर्म प्रचार किया।
धार्मिक आन्दोलनों को न तो कोई राजनीतिक संरक्षण मिला और न ही इन पर राजनीतिक गति विधियों का ही कोई प्रभाव पड़ा।
Unattempted
व्याख्या-
8वीं शताब्दी में भारत में हिन्दू तथा इस्लाम धर्म के रुप में दो समानान्तर आन्दोलनों का उदय हुआ
भक्ति आन्दोलन
सूफी आन्दोलन
15वीं एवं 16वीं शताब्दी में इनका पूर्ण विकास हुआ। इन दोनों समानान्तर धार्मिक आन्दोलनों की प्रमुख विशेषता यह रही
धार्मिक आन्दोलनों में प्रेम एवं भक्ति दोनों के मूल भाव थे।
दोनों की रहस्यवादी भावना ने संयुक्त रूप से व्यक्ति एवं समाज की वर्ग, धर्म: धन, शक्ति आदि के अवरोधों से ऊपर उठकर उनके नैतिक उन्नति में योगदान दिया।
धार्मिक आन्दोलनों के संत आत्मा की अमरता में विश्वास करते थे तथा पुर्नजन्म को एक दृष्टि से सत्य मानते थे।
धार्मिक आन्दोलनों ने भारतीय समाज के सैद्धान्तिक विश्वासों, कर्मकाण्डों, जातिवाद तथा साम्प्रदायिक घृणा आदि बुराइयों से मुक्त कराया।
धार्मिक आन्दोलनों ने जनभाषा में सामान्य धर्म प्रचार किया।
धार्मिक आन्दोलनों को न तो कोई राजनीतिक संरक्षण मिला और न ही इन पर राजनीतिक गति विधियों का ही कोई प्रभाव पड़ा।
Question 5 of 10
5. Question
1 points
निम्नलिखित में से कौन एक महिला आलवार सन्त थीं?
Correct
व्याख्या-
तमिल प्रदेश में वैष्णव धर्म का प्रसार-प्रचार आलवार संतों द्वारा किया गया।
विष्णु के भक्त सन्तों को आलवार कहते हैं।
आलवार संतों की संख्या 12 बतायी गयी है।
आलवारों संतों में मात्र एक महिला संत आंडाल या कोदई थी।
आलवार संतों की संख्या 12 थी जो इस प्रकार हैं – पोरगे आलवार, भूतत्तालवार, मैयालवार, तिरुमालिसै आलवार, नम्मालवार, मधुरकवि आलवार, कुलशेखरालवार, पेरियालवार,आण्डाल, तांण्डरडिप्पोड़ियालवार, तिरुरपाणोलवार, तिरुमगैयालवार।
Incorrect
व्याख्या-
तमिल प्रदेश में वैष्णव धर्म का प्रसार-प्रचार आलवार संतों द्वारा किया गया।
विष्णु के भक्त सन्तों को आलवार कहते हैं।
आलवार संतों की संख्या 12 बतायी गयी है।
आलवारों संतों में मात्र एक महिला संत आंडाल या कोदई थी।
आलवार संतों की संख्या 12 थी जो इस प्रकार हैं – पोरगे आलवार, भूतत्तालवार, मैयालवार, तिरुमालिसै आलवार, नम्मालवार, मधुरकवि आलवार, कुलशेखरालवार, पेरियालवार,आण्डाल, तांण्डरडिप्पोड़ियालवार, तिरुरपाणोलवार, तिरुमगैयालवार।
Unattempted
व्याख्या-
तमिल प्रदेश में वैष्णव धर्म का प्रसार-प्रचार आलवार संतों द्वारा किया गया।
विष्णु के भक्त सन्तों को आलवार कहते हैं।
आलवार संतों की संख्या 12 बतायी गयी है।
आलवारों संतों में मात्र एक महिला संत आंडाल या कोदई थी।
आलवार संतों की संख्या 12 थी जो इस प्रकार हैं – पोरगे आलवार, भूतत्तालवार, मैयालवार, तिरुमालिसै आलवार, नम्मालवार, मधुरकवि आलवार, कुलशेखरालवार, पेरियालवार,आण्डाल, तांण्डरडिप्पोड़ियालवार, तिरुरपाणोलवार, तिरुमगैयालवार।
Question 6 of 10
6. Question
1 points
खानकाह क्या था?
Correct
व्याख्या-
खानकाह’ सूफियों का निवास स्थान था।
भारत में सूफी सिलसिले की खानकाह का केन्द्र पीर या मुर्शीद होता था।
खानकाह की दिनचर्या पीर (गुरु) पर ही निर्भर करती थी।
Incorrect
व्याख्या-
खानकाह’ सूफियों का निवास स्थान था।
भारत में सूफी सिलसिले की खानकाह का केन्द्र पीर या मुर्शीद होता था।
खानकाह की दिनचर्या पीर (गुरु) पर ही निर्भर करती थी।
Unattempted
व्याख्या-
खानकाह’ सूफियों का निवास स्थान था।
भारत में सूफी सिलसिले की खानकाह का केन्द्र पीर या मुर्शीद होता था।
खानकाह की दिनचर्या पीर (गुरु) पर ही निर्भर करती थी।
Question 7 of 10
7. Question
1 points
. निम्नलिखित में से कौन वारकरी सम्प्रदाय के सन्त थे?
चक्रधर 2. ज्ञानेश्वर 3. नामदेव 4. रामदास
नीचे दिए गए कूट से सही उत्तर निर्दिष्ट कीजिए: .
Correct
व्याख्या-
महाराष्ट्र में भक्ति आन्दोलन मुख्यतः दो सम्प्रदायों में विभक्त था-
1. वारकरी सम्प्रदाय
2. धरकरी सम्प्रदाय
वारकरी सम्प्रदाय-
यह पंढरपुर के विठ्ठल भगवान के भक्तों का रहस्यवादी, सम्प्रदाय था।
इस सम्प्रदाय के तीन महान संत-ज्ञानेश्वर, नामदेव, तुकाराम थे।
धरकरी सम्प्रदाय–
यह राम के भक्तों का सम्प्रदाय था।
इसके अनुयायी स्वयं रामदास , चक्रधर थे
Incorrect
व्याख्या-
महाराष्ट्र में भक्ति आन्दोलन मुख्यतः दो सम्प्रदायों में विभक्त था-
1. वारकरी सम्प्रदाय
2. धरकरी सम्प्रदाय
वारकरी सम्प्रदाय-
यह पंढरपुर के विठ्ठल भगवान के भक्तों का रहस्यवादी, सम्प्रदाय था।
इस सम्प्रदाय के तीन महान संत-ज्ञानेश्वर, नामदेव, तुकाराम थे।
धरकरी सम्प्रदाय–
यह राम के भक्तों का सम्प्रदाय था।
इसके अनुयायी स्वयं रामदास , चक्रधर थे
Unattempted
व्याख्या-
महाराष्ट्र में भक्ति आन्दोलन मुख्यतः दो सम्प्रदायों में विभक्त था-
1. वारकरी सम्प्रदाय
2. धरकरी सम्प्रदाय
वारकरी सम्प्रदाय-
यह पंढरपुर के विठ्ठल भगवान के भक्तों का रहस्यवादी, सम्प्रदाय था।
इस सम्प्रदाय के तीन महान संत-ज्ञानेश्वर, नामदेव, तुकाराम थे।
धरकरी सम्प्रदाय–
यह राम के भक्तों का सम्प्रदाय था।
इसके अनुयायी स्वयं रामदास , चक्रधर थे
Question 8 of 10
8. Question
1 points
ख्वाजा कुतबुद्दीन को ‘बख्तियार’ की उपाधि किसने प्रदान की थी?
Correct
व्याख्या –
ख्वाजा मुइनुददीन चिश्ती ने ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी को बख्तियार की उपाधि दी।
Incorrect
व्याख्या –
ख्वाजा मुइनुददीन चिश्ती ने ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी को बख्तियार की उपाधि दी।
Unattempted
व्याख्या –
ख्वाजा मुइनुददीन चिश्ती ने ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी को बख्तियार की उपाधि दी।
Question 9 of 10
9. Question
1 points
निम्नलिखित में से किस विद्वान को “हुज्जत-उल इस्लाम’ कहा गया है?
Correct
व्याख्या –
अबू हामिद मोहम्मद अलगजाली –
जन्म 1058 ई० में
स्थान -पर्सिया के एक राज्य खुरसान के तुस में (वर्तमान इरान)
एक महान इस्लामिक विधिवेत्ता, धर्मविज्ञानी और रहस्यवादी विचारक थे।
उन्हें हुज्जत-उल इस्लाम कहा गया।
Incorrect
व्याख्या –
अबू हामिद मोहम्मद अलगजाली –
जन्म 1058 ई० में
स्थान -पर्सिया के एक राज्य खुरसान के तुस में (वर्तमान इरान)
एक महान इस्लामिक विधिवेत्ता, धर्मविज्ञानी और रहस्यवादी विचारक थे।
उन्हें हुज्जत-उल इस्लाम कहा गया।
Unattempted
व्याख्या –
अबू हामिद मोहम्मद अलगजाली –
जन्म 1058 ई० में
स्थान -पर्सिया के एक राज्य खुरसान के तुस में (वर्तमान इरान)
एक महान इस्लामिक विधिवेत्ता, धर्मविज्ञानी और रहस्यवादी विचारक थे।
उन्हें हुज्जत-उल इस्लाम कहा गया।
Question 10 of 10
10. Question
1 points
निम्नलिखित में से किन्होंने संन्यास नहीं लिया था?
Correct
व्याख्या .
वल्लभचार्य एवं नानक ने सन्यास ग्रहण नहीं किया था।
वल्लभचार्य एवं नानक ने आध्यात्मिक उन्नति के लिए विवाहित जीवन को बाधक नहीं माना हैं|
वल्लभचार्य कृष्णमार्गी शाखा के महान संत थे।
वल्लभचार्य का भक्तिवाद पुष्टिमार्ग के नाम से प्रसिद्ध है तथा दार्शनिक मत शुद्ध-अद्वैतवाद ।
चैतन्य बंगाल के प्रमुख संत थे।
चैतन्य ने केशव भारती से सन्यास की शिक्षा ली थी। इनका सिद्धांत अचिन्त्य भेदाभेद था।
संत विज्ञानेश्वर महाराष्ट्र के प्रमुख संत थे।
संत विज्ञानेश्वर ने महाराष्ट्र में भागवत धर्म की आधारशिला रखी थी।
गुरू नानक-
जन्म : कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन 1469 को तलवंडी नामक स्थान में, कल्याणचंद (मेहता कालू) नाम के एक किसान के घर गुरु नानकदेवजी का जन्म हुआ। उनकी माता का नाम तृप्ता था। तलवंडी को ही अब नानक के नाम पर ननकाना साहब कहा जाता है, जो पाकिस्तान में है।
Incorrect
व्याख्या .
वल्लभचार्य एवं नानक ने सन्यास ग्रहण नहीं किया था।
वल्लभचार्य एवं नानक ने आध्यात्मिक उन्नति के लिए विवाहित जीवन को बाधक नहीं माना हैं|
वल्लभचार्य कृष्णमार्गी शाखा के महान संत थे।
वल्लभचार्य का भक्तिवाद पुष्टिमार्ग के नाम से प्रसिद्ध है तथा दार्शनिक मत शुद्ध-अद्वैतवाद ।
चैतन्य बंगाल के प्रमुख संत थे।
चैतन्य ने केशव भारती से सन्यास की शिक्षा ली थी। इनका सिद्धांत अचिन्त्य भेदाभेद था।
संत विज्ञानेश्वर महाराष्ट्र के प्रमुख संत थे।
संत विज्ञानेश्वर ने महाराष्ट्र में भागवत धर्म की आधारशिला रखी थी।
गुरू नानक-
जन्म : कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन 1469 को तलवंडी नामक स्थान में, कल्याणचंद (मेहता कालू) नाम के एक किसान के घर गुरु नानकदेवजी का जन्म हुआ। उनकी माता का नाम तृप्ता था। तलवंडी को ही अब नानक के नाम पर ननकाना साहब कहा जाता है, जो पाकिस्तान में है।
Unattempted
व्याख्या .
वल्लभचार्य एवं नानक ने सन्यास ग्रहण नहीं किया था।
वल्लभचार्य एवं नानक ने आध्यात्मिक उन्नति के लिए विवाहित जीवन को बाधक नहीं माना हैं|
वल्लभचार्य कृष्णमार्गी शाखा के महान संत थे।
वल्लभचार्य का भक्तिवाद पुष्टिमार्ग के नाम से प्रसिद्ध है तथा दार्शनिक मत शुद्ध-अद्वैतवाद ।
चैतन्य बंगाल के प्रमुख संत थे।
चैतन्य ने केशव भारती से सन्यास की शिक्षा ली थी। इनका सिद्धांत अचिन्त्य भेदाभेद था।
संत विज्ञानेश्वर महाराष्ट्र के प्रमुख संत थे।
संत विज्ञानेश्वर ने महाराष्ट्र में भागवत धर्म की आधारशिला रखी थी।
गुरू नानक-
जन्म : कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन 1469 को तलवंडी नामक स्थान में, कल्याणचंद (मेहता कालू) नाम के एक किसान के घर गुरु नानकदेवजी का जन्म हुआ। उनकी माता का नाम तृप्ता था। तलवंडी को ही अब नानक के नाम पर ननकाना साहब कहा जाता है, जो पाकिस्तान में है।