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Question 1 of 10
1. Question
2 points
बहादुरशाह प्रथम ने नहीं किया
Correct
व्याख्या-
जजिया एक प्रकार का धार्मिक कर था जिसे गैर मुसलमानों (जिम्मियों) से वसूल किया जाता था
भारत में जजिया कर लगाने का प्रथम साक्ष्य मुहम्मद बिन कासिम के आक्रमण के बाद देखने को मिलता है।
दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान फिरोज तुगलक था। इसने जजिया को खराज (भूराजस्व) से निकालकर पृथक कर के रूप में वसूला।
फिरोज तुगलक ने ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लगा दिया।
कश्मीर में सर्वप्रथम जजिया कर सिकंदर शाह द्वारा लगाया गया।
जैनुल आबदीन (1420-70 ईo) शासक बना और सिकन्दर द्वारा लगाए गए कश्मीर में जजिया को समाप्त कर दिया।
गुजरात में जजिया सर्वप्रथम अहमदशाह (1411-42 ईo) के समय लगाया गया।
जजिया कर को समाप्त करने वाला पहला मुगल शासक अकबर था। अकबर ने 1564 ईo में जज़िया कर समाप्त किया,
औरंगजेब ने 1679 ईo में जजिया कर लगाया।
औरंगजेब की मृत्यु के बाद बहादुर शाह प्रथम गददी पर बैठा।
बहादुर शाह प्रथम के समय राजदरबार में फिर से होली खेलने की शुरूआत हुई।
बहादुर शाह प्रथम ने सती प्रथा का समर्थन भी किया परन्तु जजिया का खत्म नहीं किया।
औरंगजेब के बाद में जजिया को समाप्त सर्वप्रथम जहाँदार शाह ने किया,
जजिया को अंतिम रूप से समाप्त करने का श्रेय मुहम्मद शाह रंगीला को दिया जाता है
Incorrect
व्याख्या-
जजिया एक प्रकार का धार्मिक कर था जिसे गैर मुसलमानों (जिम्मियों) से वसूल किया जाता था
भारत में जजिया कर लगाने का प्रथम साक्ष्य मुहम्मद बिन कासिम के आक्रमण के बाद देखने को मिलता है।
दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान फिरोज तुगलक था। इसने जजिया को खराज (भूराजस्व) से निकालकर पृथक कर के रूप में वसूला।
फिरोज तुगलक ने ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लगा दिया।
कश्मीर में सर्वप्रथम जजिया कर सिकंदर शाह द्वारा लगाया गया।
जैनुल आबदीन (1420-70 ईo) शासक बना और सिकन्दर द्वारा लगाए गए कश्मीर में जजिया को समाप्त कर दिया।
गुजरात में जजिया सर्वप्रथम अहमदशाह (1411-42 ईo) के समय लगाया गया।
जजिया कर को समाप्त करने वाला पहला मुगल शासक अकबर था। अकबर ने 1564 ईo में जज़िया कर समाप्त किया,
औरंगजेब ने 1679 ईo में जजिया कर लगाया।
औरंगजेब की मृत्यु के बाद बहादुर शाह प्रथम गददी पर बैठा।
बहादुर शाह प्रथम के समय राजदरबार में फिर से होली खेलने की शुरूआत हुई।
बहादुर शाह प्रथम ने सती प्रथा का समर्थन भी किया परन्तु जजिया का खत्म नहीं किया।
औरंगजेब के बाद में जजिया को समाप्त सर्वप्रथम जहाँदार शाह ने किया,
जजिया को अंतिम रूप से समाप्त करने का श्रेय मुहम्मद शाह रंगीला को दिया जाता है
Unattempted
व्याख्या-
जजिया एक प्रकार का धार्मिक कर था जिसे गैर मुसलमानों (जिम्मियों) से वसूल किया जाता था
भारत में जजिया कर लगाने का प्रथम साक्ष्य मुहम्मद बिन कासिम के आक्रमण के बाद देखने को मिलता है।
दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान फिरोज तुगलक था। इसने जजिया को खराज (भूराजस्व) से निकालकर पृथक कर के रूप में वसूला।
फिरोज तुगलक ने ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लगा दिया।
कश्मीर में सर्वप्रथम जजिया कर सिकंदर शाह द्वारा लगाया गया।
जैनुल आबदीन (1420-70 ईo) शासक बना और सिकन्दर द्वारा लगाए गए कश्मीर में जजिया को समाप्त कर दिया।
गुजरात में जजिया सर्वप्रथम अहमदशाह (1411-42 ईo) के समय लगाया गया।
जजिया कर को समाप्त करने वाला पहला मुगल शासक अकबर था। अकबर ने 1564 ईo में जज़िया कर समाप्त किया,
औरंगजेब ने 1679 ईo में जजिया कर लगाया।
औरंगजेब की मृत्यु के बाद बहादुर शाह प्रथम गददी पर बैठा।
बहादुर शाह प्रथम के समय राजदरबार में फिर से होली खेलने की शुरूआत हुई।
बहादुर शाह प्रथम ने सती प्रथा का समर्थन भी किया परन्तु जजिया का खत्म नहीं किया।
औरंगजेब के बाद में जजिया को समाप्त सर्वप्रथम जहाँदार शाह ने किया,
जजिया को अंतिम रूप से समाप्त करने का श्रेय मुहम्मद शाह रंगीला को दिया जाता है
Question 2 of 10
2. Question
2 points
भारत के साथ समुद्री व्यापार आरंभ करने में निम्न में कौन अग्रणी थे
Correct
****भारत के साथ समुद्री व्यापार आरम्भ पुर्तगालियों ने किया ।
पुर्तगाली भारत की समयरेखा –
1498
वास्को-डी-गामा कालीकट पहुँचे जहाँ उनका स्वागत जमोरिन ने किया
1503
कोचीन में पहला पुर्तगाली फोर्ट बनाया गया था.
1505
कन्नानोर में दूसरा पुर्तगाली फोर्ट बनाया गया.
1509
मिस्र, अरब और ज़मोरिन के संयुक्त पोत समूह को पुर्तगालियों के पोत द्वारा दीव की लड़ाई में नष्ट कर दिया गया.
1510
अल्फोंसो अल्बुकर्क ने गोवा पर कब्जा कर लिया गया. गोवा पहले बीजापुर सल्तनत का हिस्सा था.
1530
गोवा को पुर्तगालियों की राजधानी घोषित कर दिया गया.
1535
दीव को पूरी तरह से अधीन बना लिया गया.
1539
पुर्तगाली दीव को ओटोमन्स, मिस्र के मामलुक, गुजरात सल्तनत और कालीकट के ज़ोमोरिन के संयुक्त पोतों द्वारा घेर लिया गया. इस युद्ध का अंत पुर्तगालियों की जीत के साथ हुआ.
Incorrect
****भारत के साथ समुद्री व्यापार आरम्भ पुर्तगालियों ने किया ।
पुर्तगाली भारत की समयरेखा –
1498
वास्को-डी-गामा कालीकट पहुँचे जहाँ उनका स्वागत जमोरिन ने किया
1503
कोचीन में पहला पुर्तगाली फोर्ट बनाया गया था.
1505
कन्नानोर में दूसरा पुर्तगाली फोर्ट बनाया गया.
1509
मिस्र, अरब और ज़मोरिन के संयुक्त पोत समूह को पुर्तगालियों के पोत द्वारा दीव की लड़ाई में नष्ट कर दिया गया.
1510
अल्फोंसो अल्बुकर्क ने गोवा पर कब्जा कर लिया गया. गोवा पहले बीजापुर सल्तनत का हिस्सा था.
1530
गोवा को पुर्तगालियों की राजधानी घोषित कर दिया गया.
1535
दीव को पूरी तरह से अधीन बना लिया गया.
1539
पुर्तगाली दीव को ओटोमन्स, मिस्र के मामलुक, गुजरात सल्तनत और कालीकट के ज़ोमोरिन के संयुक्त पोतों द्वारा घेर लिया गया. इस युद्ध का अंत पुर्तगालियों की जीत के साथ हुआ.
Unattempted
****भारत के साथ समुद्री व्यापार आरम्भ पुर्तगालियों ने किया ।
पुर्तगाली भारत की समयरेखा –
1498
वास्को-डी-गामा कालीकट पहुँचे जहाँ उनका स्वागत जमोरिन ने किया
1503
कोचीन में पहला पुर्तगाली फोर्ट बनाया गया था.
1505
कन्नानोर में दूसरा पुर्तगाली फोर्ट बनाया गया.
1509
मिस्र, अरब और ज़मोरिन के संयुक्त पोत समूह को पुर्तगालियों के पोत द्वारा दीव की लड़ाई में नष्ट कर दिया गया.
1510
अल्फोंसो अल्बुकर्क ने गोवा पर कब्जा कर लिया गया. गोवा पहले बीजापुर सल्तनत का हिस्सा था.
1530
गोवा को पुर्तगालियों की राजधानी घोषित कर दिया गया.
1535
दीव को पूरी तरह से अधीन बना लिया गया.
1539
पुर्तगाली दीव को ओटोमन्स, मिस्र के मामलुक, गुजरात सल्तनत और कालीकट के ज़ोमोरिन के संयुक्त पोतों द्वारा घेर लिया गया. इस युद्ध का अंत पुर्तगालियों की जीत के साथ हुआ.
Question 3 of 10
3. Question
2 points
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
****1826 की यांदयू संधि ने रास्ता साफ किया
अंग्रेज व्यापारियों के लिए आश्वासनपूर्ण संरक्षण का
अंग्रेजों के लिए एक करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति का
बर्मा के लोगों तथा अंग्रेजों के बीच घोर लड़ाईयों का
चाय के लिए असम के अधिग्रहण का
इनमें से कौन सा कथन सही है .
Correct
व्याख्या-
प्रथम आंग्ल-बर्मा युद्ध-
1824-ई0 में ब्रिटिश भारत के शासकों ने बर्मा के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।
फरवरी 1826 ई0 में यांदूब संधि के द्वारा शांति स्थापित हुई थी।
यांदाबू संधि पर 24 फरवरी, 1826 को प्रथम आंग्ल-बर्मा युद्ध के बाद हस्ताक्षर किये गए थे। अंग्रेजों के और से जनरल आर्किबाल्ड द्वारा इस संधि पर हस्ताक्षर किये गये।
यांदूब संधि की शर्ते निग्न थी-
अंग्रेज व्यापारियों के लिए आश्वासनपूर्ण संरक्षण का
धर्मा सरकार ने लड़ाई के हर्जाने के रूप में एक करोड़ रुपये देना स्वीकार किया।
अराकान और तेनासेरिम के समुद्रतटीय प्रांतों से बर्मा ने अधिकार छोड़ दिया।
असम, कछार तथा जयंतिया पर वर्मा ने सारे दावे छोड़ दिये।
बर्मा ने मणिपुर को स्वतंत्र राज्य के रूप में स्वीकार कर लिया।
ब्रिटेन के साथ वर्मा ने एक व्यापारिक संधि पर बातचीत करने के लिए तैयार हो गया,
अवा में एक ब्रिटिश रेजिडेन्ट रखने और कलकत्ता में एक बर्मी
Incorrect
व्याख्या-
प्रथम आंग्ल-बर्मा युद्ध-
1824-ई0 में ब्रिटिश भारत के शासकों ने बर्मा के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।
फरवरी 1826 ई0 में यांदूब संधि के द्वारा शांति स्थापित हुई थी।
यांदाबू संधि पर 24 फरवरी, 1826 को प्रथम आंग्ल-बर्मा युद्ध के बाद हस्ताक्षर किये गए थे। अंग्रेजों के और से जनरल आर्किबाल्ड द्वारा इस संधि पर हस्ताक्षर किये गये।
यांदूब संधि की शर्ते निग्न थी-
अंग्रेज व्यापारियों के लिए आश्वासनपूर्ण संरक्षण का
धर्मा सरकार ने लड़ाई के हर्जाने के रूप में एक करोड़ रुपये देना स्वीकार किया।
अराकान और तेनासेरिम के समुद्रतटीय प्रांतों से बर्मा ने अधिकार छोड़ दिया।
असम, कछार तथा जयंतिया पर वर्मा ने सारे दावे छोड़ दिये।
बर्मा ने मणिपुर को स्वतंत्र राज्य के रूप में स्वीकार कर लिया।
ब्रिटेन के साथ वर्मा ने एक व्यापारिक संधि पर बातचीत करने के लिए तैयार हो गया,
अवा में एक ब्रिटिश रेजिडेन्ट रखने और कलकत्ता में एक बर्मी
Unattempted
व्याख्या-
प्रथम आंग्ल-बर्मा युद्ध-
1824-ई0 में ब्रिटिश भारत के शासकों ने बर्मा के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।
फरवरी 1826 ई0 में यांदूब संधि के द्वारा शांति स्थापित हुई थी।
यांदाबू संधि पर 24 फरवरी, 1826 को प्रथम आंग्ल-बर्मा युद्ध के बाद हस्ताक्षर किये गए थे। अंग्रेजों के और से जनरल आर्किबाल्ड द्वारा इस संधि पर हस्ताक्षर किये गये।
यांदूब संधि की शर्ते निग्न थी-
अंग्रेज व्यापारियों के लिए आश्वासनपूर्ण संरक्षण का
धर्मा सरकार ने लड़ाई के हर्जाने के रूप में एक करोड़ रुपये देना स्वीकार किया।
अराकान और तेनासेरिम के समुद्रतटीय प्रांतों से बर्मा ने अधिकार छोड़ दिया।
असम, कछार तथा जयंतिया पर वर्मा ने सारे दावे छोड़ दिये।
बर्मा ने मणिपुर को स्वतंत्र राज्य के रूप में स्वीकार कर लिया।
ब्रिटेन के साथ वर्मा ने एक व्यापारिक संधि पर बातचीत करने के लिए तैयार हो गया,
अवा में एक ब्रिटिश रेजिडेन्ट रखने और कलकत्ता में एक बर्मी
Question 4 of 10
4. Question
2 points
“यह स्थान 1674 में सम्राट औरंगजेब के सूबेदार शाइस्ता खाँ फ्रेंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी को प्रदान किया था। सप्तवर्षीय (1756-63) में जॉन कम्पनी ने इस पर अधिकार कर लिया। 1757 ई0 किन्तु बाद में (1763) फ्रांसीसियों को वापस कर दिया। 1778 मैं अंग्रेजों द्वारा पुनः अधिकृत यह स्थान अमेरिका का स्वतन्त्रता संग्राम (1776-84) छिड़ जाने पर पेरिस की सन्धि (1785) द्वारा पुनः फ्रांसीसियों को सौंप दिया गया। यूरोप में क्रान्तिकारी अपृत होकर स्थान 1815 में पुनः फ्रांसीसियों को अंतिम रूप में सौंप दिया गया। और फिर यह 1915 में भारतीय गणराज्य में स्थानान्तरित होने तक उनके वैदेशिक सामाज्य का अंग बना रहा।” यह संदर्भ किसके प्रति है?
Correct
व्याख्या-
यह विवरण ‘चन्द्रनगर के संदर्भ में दिया गया है।
1674 ई0 फ्रांसीसियों को बंगाल के सूबेदार शाइस्ता खां ने एक जगह दी
उस 1690-92 ई0 में फ्रांसीसियों ने चन्द्रनगर की प्रसिद्ध कोठी बनायी थी।
17वीं शताब्दी के अंत तक फ्रांसीसियों ने, पटना, ढाका, कासिमबाजार और वालाशोर में कोठियां स्थापित की शोभा सिंह और रहीम खान के विद्रोह के समय फ्रांसीसियों ने भी चन्द्रनगर में किलेबन्दी की और इसका नाम ‘फोर्ट औरलिएन्स’ रखा।
Incorrect
व्याख्या-
यह विवरण ‘चन्द्रनगर के संदर्भ में दिया गया है।
1674 ई0 फ्रांसीसियों को बंगाल के सूबेदार शाइस्ता खां ने एक जगह दी
उस 1690-92 ई0 में फ्रांसीसियों ने चन्द्रनगर की प्रसिद्ध कोठी बनायी थी।
17वीं शताब्दी के अंत तक फ्रांसीसियों ने, पटना, ढाका, कासिमबाजार और वालाशोर में कोठियां स्थापित की शोभा सिंह और रहीम खान के विद्रोह के समय फ्रांसीसियों ने भी चन्द्रनगर में किलेबन्दी की और इसका नाम ‘फोर्ट औरलिएन्स’ रखा।
Unattempted
व्याख्या-
यह विवरण ‘चन्द्रनगर के संदर्भ में दिया गया है।
1674 ई0 फ्रांसीसियों को बंगाल के सूबेदार शाइस्ता खां ने एक जगह दी
उस 1690-92 ई0 में फ्रांसीसियों ने चन्द्रनगर की प्रसिद्ध कोठी बनायी थी।
17वीं शताब्दी के अंत तक फ्रांसीसियों ने, पटना, ढाका, कासिमबाजार और वालाशोर में कोठियां स्थापित की शोभा सिंह और रहीम खान के विद्रोह के समय फ्रांसीसियों ने भी चन्द्रनगर में किलेबन्दी की और इसका नाम ‘फोर्ट औरलिएन्स’ रखा।
Question 5 of 10
5. Question
2 points
निम्न में से कौन सा नवाब 1856 में अवध के ब्रिटिश राज्य के अंग्रेजों द्वारा विलय किये जाने के समय पदच्युत किया गया था
Correct
व्याख्या-
अवध का अन्तिम नवाब वाजिद अली शाह (1847-56 ई०) था।
1854 ई. में बिशप हैबर की गैर-सरकारी रिपोर्ट के आधार पर व जेम्स ऑटरम की सरकारी रिपोर्ट के आधार पर कुशासन का आरोप लगाकर अवध को 1856 ई. में अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया।
1856 ई. में वाजिद अली शाह को नजरबन्द कर कलकत्ता में रखा गया।
1857 ई. के विद्रोह में डलहौजी द्वारा अवध के प्रति किया गया दुर्व्यवहार एक प्रमुख कारण माना जाता है।
Incorrect
व्याख्या-
अवध का अन्तिम नवाब वाजिद अली शाह (1847-56 ई०) था।
1854 ई. में बिशप हैबर की गैर-सरकारी रिपोर्ट के आधार पर व जेम्स ऑटरम की सरकारी रिपोर्ट के आधार पर कुशासन का आरोप लगाकर अवध को 1856 ई. में अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया।
1856 ई. में वाजिद अली शाह को नजरबन्द कर कलकत्ता में रखा गया।
1857 ई. के विद्रोह में डलहौजी द्वारा अवध के प्रति किया गया दुर्व्यवहार एक प्रमुख कारण माना जाता है।
Unattempted
व्याख्या-
अवध का अन्तिम नवाब वाजिद अली शाह (1847-56 ई०) था।
1854 ई. में बिशप हैबर की गैर-सरकारी रिपोर्ट के आधार पर व जेम्स ऑटरम की सरकारी रिपोर्ट के आधार पर कुशासन का आरोप लगाकर अवध को 1856 ई. में अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया।
1856 ई. में वाजिद अली शाह को नजरबन्द कर कलकत्ता में रखा गया।
1857 ई. के विद्रोह में डलहौजी द्वारा अवध के प्रति किया गया दुर्व्यवहार एक प्रमुख कारण माना जाता है।
Question 6 of 10
6. Question
2 points
सूची 1 को सूची ॥ से सुमेलित कीजिए तथा नीचे दिए गए कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिए:
सची। सूची ।
A फकीर 1. सहजानन्द सरस्वती
B रामोसी 2. करमशाह
C पागलपन्थी 3. मंजुशाह
D बिहार किसान सभा 4. चित्तूर सिंह
Correct
फकीर विद्रोह(1776- 1777 ई०)
इस विद्रोह की शुरुआत बंगाल में घुमक्कड़ मुसलमान धार्मिक फकीरों द्वारा की गई। इसका प्रेणता मजमून शाह को माना जाता है।
इन्होंने अंग्रेजी शासन का विरोध किया तथा स्थानीय जमीदारों एवं किसानों से धन वसूलना आरंभ कर दिया।
मजमून शाह के बाद इस विद्रोह का नेतृत्व चिरागअली शाह द्वारा किया गया। इसके अतिरिक्त भवानी पाठक और देवी चौधरानी जैसे हिंदू नेताओं ने भी इस आंदोलन की सहायता की थी।
इस विद्रोह को 19वीं सदी के शुरुआती वर्षों तक अंग्रेजों द्वारा दबा दिया गया।
पागलपंथी विद्रोह(1813- 1833 ई०)
पागलपंथी उत्तरी बंगाल का एक अर्द्ध धार्मिक संप्रदाय था जिसकी शुरुआत ‘करमशाह‘ ने की थी।
आगे चलकर इस सम्प्रदाय के नेता ‘टीपू‘ हुए जिन्होंने किसानों एवं काश्तकारों के पक्ष में जमीदारों के विरुद्ध विद्रोह कर उन पर हमले किये।
इस दौरान टीपू अत्यधिक शक्तिशाली हुआ तथा उसने एक न्यायाधीश,मजिस्ट्रेट एवं जिलाधिकारी की नियुक्ति तक की।
परंतु अंग्रेजों द्वारा 1833 तक इस विद्रोह को भी कुचल दिया गया।
रामोसी विद्रोह(1822- 1826 ई०)
रामोसी पश्चिमी घाट की जनजाति थी जो मराठों की सैन्य सेवा में थे परंतु अंग्रेजों के शासनकाल में यह बेरोजगार हो गए।
इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने इनकी जमीन पर लगान भी बढ़ा दिया था इसी कारण 1822 में चित्तर सिंह के नेतृत्व में सतारा में रामोसियों ने विद्रोह कर दिया।
1826 में उमाजी के नेतृत्व में दूसरी बार विद्रोह किया गया।
सरकार द्वारा इस विद्रोह को दबाने के लिए इन्हें भूमि अनुदान में दी गई तथा पहाड़ी पुलिस में नौकरी प्रदान की गई।
*****बिहार किसान सभा की स्थापना स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने की थी।
Incorrect
फकीर विद्रोह(1776- 1777 ई०)
इस विद्रोह की शुरुआत बंगाल में घुमक्कड़ मुसलमान धार्मिक फकीरों द्वारा की गई। इसका प्रेणता मजमून शाह को माना जाता है।
इन्होंने अंग्रेजी शासन का विरोध किया तथा स्थानीय जमीदारों एवं किसानों से धन वसूलना आरंभ कर दिया।
मजमून शाह के बाद इस विद्रोह का नेतृत्व चिरागअली शाह द्वारा किया गया। इसके अतिरिक्त भवानी पाठक और देवी चौधरानी जैसे हिंदू नेताओं ने भी इस आंदोलन की सहायता की थी।
इस विद्रोह को 19वीं सदी के शुरुआती वर्षों तक अंग्रेजों द्वारा दबा दिया गया।
पागलपंथी विद्रोह(1813- 1833 ई०)
पागलपंथी उत्तरी बंगाल का एक अर्द्ध धार्मिक संप्रदाय था जिसकी शुरुआत ‘करमशाह‘ ने की थी।
आगे चलकर इस सम्प्रदाय के नेता ‘टीपू‘ हुए जिन्होंने किसानों एवं काश्तकारों के पक्ष में जमीदारों के विरुद्ध विद्रोह कर उन पर हमले किये।
इस दौरान टीपू अत्यधिक शक्तिशाली हुआ तथा उसने एक न्यायाधीश,मजिस्ट्रेट एवं जिलाधिकारी की नियुक्ति तक की।
परंतु अंग्रेजों द्वारा 1833 तक इस विद्रोह को भी कुचल दिया गया।
रामोसी विद्रोह(1822- 1826 ई०)
रामोसी पश्चिमी घाट की जनजाति थी जो मराठों की सैन्य सेवा में थे परंतु अंग्रेजों के शासनकाल में यह बेरोजगार हो गए।
इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने इनकी जमीन पर लगान भी बढ़ा दिया था इसी कारण 1822 में चित्तर सिंह के नेतृत्व में सतारा में रामोसियों ने विद्रोह कर दिया।
1826 में उमाजी के नेतृत्व में दूसरी बार विद्रोह किया गया।
सरकार द्वारा इस विद्रोह को दबाने के लिए इन्हें भूमि अनुदान में दी गई तथा पहाड़ी पुलिस में नौकरी प्रदान की गई।
*****बिहार किसान सभा की स्थापना स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने की थी।
Unattempted
फकीर विद्रोह(1776- 1777 ई०)
इस विद्रोह की शुरुआत बंगाल में घुमक्कड़ मुसलमान धार्मिक फकीरों द्वारा की गई। इसका प्रेणता मजमून शाह को माना जाता है।
इन्होंने अंग्रेजी शासन का विरोध किया तथा स्थानीय जमीदारों एवं किसानों से धन वसूलना आरंभ कर दिया।
मजमून शाह के बाद इस विद्रोह का नेतृत्व चिरागअली शाह द्वारा किया गया। इसके अतिरिक्त भवानी पाठक और देवी चौधरानी जैसे हिंदू नेताओं ने भी इस आंदोलन की सहायता की थी।
इस विद्रोह को 19वीं सदी के शुरुआती वर्षों तक अंग्रेजों द्वारा दबा दिया गया।
पागलपंथी विद्रोह(1813- 1833 ई०)
पागलपंथी उत्तरी बंगाल का एक अर्द्ध धार्मिक संप्रदाय था जिसकी शुरुआत ‘करमशाह‘ ने की थी।
आगे चलकर इस सम्प्रदाय के नेता ‘टीपू‘ हुए जिन्होंने किसानों एवं काश्तकारों के पक्ष में जमीदारों के विरुद्ध विद्रोह कर उन पर हमले किये।
इस दौरान टीपू अत्यधिक शक्तिशाली हुआ तथा उसने एक न्यायाधीश,मजिस्ट्रेट एवं जिलाधिकारी की नियुक्ति तक की।
परंतु अंग्रेजों द्वारा 1833 तक इस विद्रोह को भी कुचल दिया गया।
रामोसी विद्रोह(1822- 1826 ई०)
रामोसी पश्चिमी घाट की जनजाति थी जो मराठों की सैन्य सेवा में थे परंतु अंग्रेजों के शासनकाल में यह बेरोजगार हो गए।
इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने इनकी जमीन पर लगान भी बढ़ा दिया था इसी कारण 1822 में चित्तर सिंह के नेतृत्व में सतारा में रामोसियों ने विद्रोह कर दिया।
1826 में उमाजी के नेतृत्व में दूसरी बार विद्रोह किया गया।
सरकार द्वारा इस विद्रोह को दबाने के लिए इन्हें भूमि अनुदान में दी गई तथा पहाड़ी पुलिस में नौकरी प्रदान की गई।
*****बिहार किसान सभा की स्थापना स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने की थी।
Question 7 of 10
7. Question
2 points
ऐनी बेसेंटके सम्बन्ध में निम्न में से कौन सा वक्तव्य सही नहीं है?
Correct
व्याख्या-
एनी बेसेंट की उपलब्धियाँ,तथा उद्धरण-
एनी बेसेन्ट एक आयरिश महिला थीं।
थियोसोफिकल सोसायटी से सक्रिय रूप से जुड़ी थीं।
एनी बेसेंट 1889 में थियोसोफी के विचारों से प्रभावित हुई। वह 21 मई, 1889 को थियोसोफिकल सोसायटी से जुड़ गईं। शीघ्र ही उन्होंने थियोसोफिकल सोसायटी की वक्ता के रूप में महत्वपूर्ण स्थान बनाया।
उनका 1893 में भारत आगमन हुआ। वर्ष 1907 में वह थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं। उन्होंने पाश्चात्य भौतिकवादी सभ्यता की कड़ी आलोचना करते हुए प्राचीन हिंदू सभ्यता को श्रेष्ठ सिद्ध किया। धर्म में उनकी गहरी दिलचस्पी थी।
उस काल में बाल गंगाधर तिलक के अलावा उन्होंने भी गीता का अनुवाद किया। वह भूत-प्रेत जैसी रहस्यमयी चीजों में भी विश्वास करती थीं।
वह 1913 से लेकर 1919 तक भारत के राजनीतिक जीवन की अग्रणी विभूतियों में एक थीं।
कांग्रेस ने उन्हें काफी महत्व दिया और उन्हें अपने एक अधिवेशन की अध्यक्ष भी निर्वाचित किया। उन्होंने बाल गंगाधर तिलक के साथ मिलकर होमरूल लीग (स्वराज संघ) की स्थापना की और स्वराज के आदर्श को लोकप्रिय बनाने में जुट गई। हालांकि बाद में तिलक से उनका विवाद हो गया।
जब गांधीजी ने सत्याग्रह आंदोलन प्रारंभ किया तो वह भारतीय राजनीति की मुख्यधारा से अलग हो गईं।एनी बेसेंट ने निर्धनों की सेवा में आदर्श समाजवाद देखा। वह विधवा विवाह एवं अंतर-जातीय विवाह के पक्ष में थीं, लेकिन बहुविवाह को नारी गौरव का अपमान एवं समाज के लिए अभिशाप मानती थीं।
प्रख्यात समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी एनी बेसेंट ने भारत को एक सभ्यता के रूप में स्वीकार किया था तथा भारतीय राष्ट्रवाद को अंगीकार किया था।
******महिला विश्वविद्यालय की स्थापना डी के कर्वे ने 1906 ई० में बम्बई में की।
Incorrect
व्याख्या-
एनी बेसेंट की उपलब्धियाँ,तथा उद्धरण-
एनी बेसेन्ट एक आयरिश महिला थीं।
थियोसोफिकल सोसायटी से सक्रिय रूप से जुड़ी थीं।
एनी बेसेंट 1889 में थियोसोफी के विचारों से प्रभावित हुई। वह 21 मई, 1889 को थियोसोफिकल सोसायटी से जुड़ गईं। शीघ्र ही उन्होंने थियोसोफिकल सोसायटी की वक्ता के रूप में महत्वपूर्ण स्थान बनाया।
उनका 1893 में भारत आगमन हुआ। वर्ष 1907 में वह थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं। उन्होंने पाश्चात्य भौतिकवादी सभ्यता की कड़ी आलोचना करते हुए प्राचीन हिंदू सभ्यता को श्रेष्ठ सिद्ध किया। धर्म में उनकी गहरी दिलचस्पी थी।
उस काल में बाल गंगाधर तिलक के अलावा उन्होंने भी गीता का अनुवाद किया। वह भूत-प्रेत जैसी रहस्यमयी चीजों में भी विश्वास करती थीं।
वह 1913 से लेकर 1919 तक भारत के राजनीतिक जीवन की अग्रणी विभूतियों में एक थीं।
कांग्रेस ने उन्हें काफी महत्व दिया और उन्हें अपने एक अधिवेशन की अध्यक्ष भी निर्वाचित किया। उन्होंने बाल गंगाधर तिलक के साथ मिलकर होमरूल लीग (स्वराज संघ) की स्थापना की और स्वराज के आदर्श को लोकप्रिय बनाने में जुट गई। हालांकि बाद में तिलक से उनका विवाद हो गया।
जब गांधीजी ने सत्याग्रह आंदोलन प्रारंभ किया तो वह भारतीय राजनीति की मुख्यधारा से अलग हो गईं।एनी बेसेंट ने निर्धनों की सेवा में आदर्श समाजवाद देखा। वह विधवा विवाह एवं अंतर-जातीय विवाह के पक्ष में थीं, लेकिन बहुविवाह को नारी गौरव का अपमान एवं समाज के लिए अभिशाप मानती थीं।
प्रख्यात समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी एनी बेसेंट ने भारत को एक सभ्यता के रूप में स्वीकार किया था तथा भारतीय राष्ट्रवाद को अंगीकार किया था।
******महिला विश्वविद्यालय की स्थापना डी के कर्वे ने 1906 ई० में बम्बई में की।
Unattempted
व्याख्या-
एनी बेसेंट की उपलब्धियाँ,तथा उद्धरण-
एनी बेसेन्ट एक आयरिश महिला थीं।
थियोसोफिकल सोसायटी से सक्रिय रूप से जुड़ी थीं।
एनी बेसेंट 1889 में थियोसोफी के विचारों से प्रभावित हुई। वह 21 मई, 1889 को थियोसोफिकल सोसायटी से जुड़ गईं। शीघ्र ही उन्होंने थियोसोफिकल सोसायटी की वक्ता के रूप में महत्वपूर्ण स्थान बनाया।
उनका 1893 में भारत आगमन हुआ। वर्ष 1907 में वह थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं। उन्होंने पाश्चात्य भौतिकवादी सभ्यता की कड़ी आलोचना करते हुए प्राचीन हिंदू सभ्यता को श्रेष्ठ सिद्ध किया। धर्म में उनकी गहरी दिलचस्पी थी।
उस काल में बाल गंगाधर तिलक के अलावा उन्होंने भी गीता का अनुवाद किया। वह भूत-प्रेत जैसी रहस्यमयी चीजों में भी विश्वास करती थीं।
वह 1913 से लेकर 1919 तक भारत के राजनीतिक जीवन की अग्रणी विभूतियों में एक थीं।
कांग्रेस ने उन्हें काफी महत्व दिया और उन्हें अपने एक अधिवेशन की अध्यक्ष भी निर्वाचित किया। उन्होंने बाल गंगाधर तिलक के साथ मिलकर होमरूल लीग (स्वराज संघ) की स्थापना की और स्वराज के आदर्श को लोकप्रिय बनाने में जुट गई। हालांकि बाद में तिलक से उनका विवाद हो गया।
जब गांधीजी ने सत्याग्रह आंदोलन प्रारंभ किया तो वह भारतीय राजनीति की मुख्यधारा से अलग हो गईं।एनी बेसेंट ने निर्धनों की सेवा में आदर्श समाजवाद देखा। वह विधवा विवाह एवं अंतर-जातीय विवाह के पक्ष में थीं, लेकिन बहुविवाह को नारी गौरव का अपमान एवं समाज के लिए अभिशाप मानती थीं।
प्रख्यात समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी एनी बेसेंट ने भारत को एक सभ्यता के रूप में स्वीकार किया था तथा भारतीय राष्ट्रवाद को अंगीकार किया था।
******महिला विश्वविद्यालय की स्थापना डी के कर्वे ने 1906 ई० में बम्बई में की।
Question 8 of 10
8. Question
2 points
स्थायी भू बन्दोवस्त में जमींदारों का हिस्सा होता था।
Correct
व्याख्या –
स्थायी बंदोबस्त (sthayi bandobast) उर्फ जमींदारी व्यवस्था
किसके द्वारा शुरू किया गया
लॉर्ड कार्नवालिस
****स्थायी बंदोबस्त के विचार की कल्पना सर जॉन शोर ने की थी
वर्ष
1793
शामिल क्षेत्र
बंगाल, बिहार, ओडिशा, बनारस के जिले, मद्रास के उत्तरी जिले
राजस्व राशि
1/11 वां हिस्सा जमींदारों द्वारा रखा जा सकता था, शेष राशि का भुगतान ब्रिटिश सरकार को किया जाना था।
भूमि का स्वामित्व
भूमि जमींदारों का स्वामित्व
निपटान की प्रकृति
जमींदारी व्यवस्था में जमींदारों को राजस्व एकत्र करने के लिए स्वतंत्र होना था
जमींदारी वंशानुगत हो गई
शोषण चरम पर था क्योंकि जमींदार वसूले जाने वाले राजस्व की राशि तय करने के लिए स्वतंत्र थे, सरकारी तंत्र का कोई हस्तक्षेप नहीं था।
जमींदार किसानों को पट्टा देते थे
गुण
जमींदार मिट्टी के पुत्र होने के कारण मिट्टी की प्रकृति, जलवायु को समझ सकते थे, अंग्रेजों से बेहतर उत्पादन कर सकते थे
अंग्रेजों के लिए राजस्व संग्रह आसान था
चूंकि बंदोबस्त स्थायी प्रकृति का था, जमींदार और किसान दोनों जानते थे कि राजस्व के रूप में कितना लेवी देना है
दोष
राजस्व निश्चित था, उपज की परवाह किए बिना,
भू-सर्वेक्षण की व्यवस्था नहीं, जमींदारों की मर्जी से लगा राजस्व
प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा आदि के कारण उत्पादन करने में विफल रहने पर भी किसानों के लिए कोई बचने का रास्ता नहीं है
जमींदारी वंशानुगत हो गए, वे हमेशा अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे
Incorrect
व्याख्या –
स्थायी बंदोबस्त (sthayi bandobast) उर्फ जमींदारी व्यवस्था
किसके द्वारा शुरू किया गया
लॉर्ड कार्नवालिस
****स्थायी बंदोबस्त के विचार की कल्पना सर जॉन शोर ने की थी
वर्ष
1793
शामिल क्षेत्र
बंगाल, बिहार, ओडिशा, बनारस के जिले, मद्रास के उत्तरी जिले
राजस्व राशि
1/11 वां हिस्सा जमींदारों द्वारा रखा जा सकता था, शेष राशि का भुगतान ब्रिटिश सरकार को किया जाना था।
भूमि का स्वामित्व
भूमि जमींदारों का स्वामित्व
निपटान की प्रकृति
जमींदारी व्यवस्था में जमींदारों को राजस्व एकत्र करने के लिए स्वतंत्र होना था
जमींदारी वंशानुगत हो गई
शोषण चरम पर था क्योंकि जमींदार वसूले जाने वाले राजस्व की राशि तय करने के लिए स्वतंत्र थे, सरकारी तंत्र का कोई हस्तक्षेप नहीं था।
जमींदार किसानों को पट्टा देते थे
गुण
जमींदार मिट्टी के पुत्र होने के कारण मिट्टी की प्रकृति, जलवायु को समझ सकते थे, अंग्रेजों से बेहतर उत्पादन कर सकते थे
अंग्रेजों के लिए राजस्व संग्रह आसान था
चूंकि बंदोबस्त स्थायी प्रकृति का था, जमींदार और किसान दोनों जानते थे कि राजस्व के रूप में कितना लेवी देना है
दोष
राजस्व निश्चित था, उपज की परवाह किए बिना,
भू-सर्वेक्षण की व्यवस्था नहीं, जमींदारों की मर्जी से लगा राजस्व
प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा आदि के कारण उत्पादन करने में विफल रहने पर भी किसानों के लिए कोई बचने का रास्ता नहीं है
जमींदारी वंशानुगत हो गए, वे हमेशा अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे
Unattempted
व्याख्या –
स्थायी बंदोबस्त (sthayi bandobast) उर्फ जमींदारी व्यवस्था
किसके द्वारा शुरू किया गया
लॉर्ड कार्नवालिस
****स्थायी बंदोबस्त के विचार की कल्पना सर जॉन शोर ने की थी
वर्ष
1793
शामिल क्षेत्र
बंगाल, बिहार, ओडिशा, बनारस के जिले, मद्रास के उत्तरी जिले
राजस्व राशि
1/11 वां हिस्सा जमींदारों द्वारा रखा जा सकता था, शेष राशि का भुगतान ब्रिटिश सरकार को किया जाना था।
भूमि का स्वामित्व
भूमि जमींदारों का स्वामित्व
निपटान की प्रकृति
जमींदारी व्यवस्था में जमींदारों को राजस्व एकत्र करने के लिए स्वतंत्र होना था
जमींदारी वंशानुगत हो गई
शोषण चरम पर था क्योंकि जमींदार वसूले जाने वाले राजस्व की राशि तय करने के लिए स्वतंत्र थे, सरकारी तंत्र का कोई हस्तक्षेप नहीं था।
जमींदार किसानों को पट्टा देते थे
गुण
जमींदार मिट्टी के पुत्र होने के कारण मिट्टी की प्रकृति, जलवायु को समझ सकते थे, अंग्रेजों से बेहतर उत्पादन कर सकते थे
अंग्रेजों के लिए राजस्व संग्रह आसान था
चूंकि बंदोबस्त स्थायी प्रकृति का था, जमींदार और किसान दोनों जानते थे कि राजस्व के रूप में कितना लेवी देना है
दोष
राजस्व निश्चित था, उपज की परवाह किए बिना,
भू-सर्वेक्षण की व्यवस्था नहीं, जमींदारों की मर्जी से लगा राजस्व
प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा आदि के कारण उत्पादन करने में विफल रहने पर भी किसानों के लिए कोई बचने का रास्ता नहीं है
जमींदारी वंशानुगत हो गए, वे हमेशा अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे
Question 9 of 10
9. Question
2 points
1865 में बंगाल में घटित नील विद्रोह के नेता का नाम इंगित कीजिए।
Correct
व्याख्या-
नील आंदोलन-
कारण: बंगाल के वे काश्तकार जो अपने खेतों में चावल या अन्य खाद्यान्न फसलें उगाना चाहते थे, ब्रिटिश नील बागान मालिकों द्वारा उन्हें नील की खेती करने के लिए बाधित किया जाता था।
नील की खेती करने से मना करने वाले किसानों को नील बागान मालिकों के दमन चक्र का सामना करना पड़ता था।
ददनी प्रथा: नील उत्पादक (बागान मालिक) किसानों को एक मामूली रकम अग्रिम देकर उनसे एक अनुबंध/करारनामा लिखवा लेते थे। यही ददनी प्रथा थी। इससे किसान नील की खेती करने के लिए बाध्य हो जाता था।
नेतृत्व कर्ता: दिगम्बर विश्वास एवं विष्णु विश्वास के नेतृत्व में इस आन्दोलन की शुरूआत बंगाल के नदिया जिले के गोविन्दपुर गांव में हुई।
1865 ई में बंगाल में होने वाले नील विद्रोह के नेता शिशिर कुमार घोष थे।
यह आधुनिक भारत का पहला कृषक आंदोलन माना जाना जाता है।
इस आंदोलन को ईसाई मिशनरियों ने भी अपना समर्थन दिया।
हरिशचन्द्र मुखर्जी ने भी अपने पत्र ‘हिन्दू पैट्रियाट’ के माध्यम से इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया।
दीनबन्धु मित्र के नाटक नील दर्पण में किसानों पर किये जा रहे अत्याचारों को दिखाया गया।
नील आयोग (1860 ई.)
ब्रिटिश सरकार द्वारा नील आन्दोलन समस्या की जांच के लिए सीटोन कार की अध्यक्षता में चार सदस्यीय आयोग का गठन किया गया। आयोग ने रिपोर्ट में किसानों के शोषण की बात को स्वीकार किया।
1860 ई. में अधिसूचना जारी कर नील की जबरन खेती पर रोक लगा दी गयी।
Incorrect
व्याख्या-
नील आंदोलन-
कारण: बंगाल के वे काश्तकार जो अपने खेतों में चावल या अन्य खाद्यान्न फसलें उगाना चाहते थे, ब्रिटिश नील बागान मालिकों द्वारा उन्हें नील की खेती करने के लिए बाधित किया जाता था।
नील की खेती करने से मना करने वाले किसानों को नील बागान मालिकों के दमन चक्र का सामना करना पड़ता था।
ददनी प्रथा: नील उत्पादक (बागान मालिक) किसानों को एक मामूली रकम अग्रिम देकर उनसे एक अनुबंध/करारनामा लिखवा लेते थे। यही ददनी प्रथा थी। इससे किसान नील की खेती करने के लिए बाध्य हो जाता था।
नेतृत्व कर्ता: दिगम्बर विश्वास एवं विष्णु विश्वास के नेतृत्व में इस आन्दोलन की शुरूआत बंगाल के नदिया जिले के गोविन्दपुर गांव में हुई।
1865 ई में बंगाल में होने वाले नील विद्रोह के नेता शिशिर कुमार घोष थे।
यह आधुनिक भारत का पहला कृषक आंदोलन माना जाना जाता है।
इस आंदोलन को ईसाई मिशनरियों ने भी अपना समर्थन दिया।
हरिशचन्द्र मुखर्जी ने भी अपने पत्र ‘हिन्दू पैट्रियाट’ के माध्यम से इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया।
दीनबन्धु मित्र के नाटक नील दर्पण में किसानों पर किये जा रहे अत्याचारों को दिखाया गया।
नील आयोग (1860 ई.)
ब्रिटिश सरकार द्वारा नील आन्दोलन समस्या की जांच के लिए सीटोन कार की अध्यक्षता में चार सदस्यीय आयोग का गठन किया गया। आयोग ने रिपोर्ट में किसानों के शोषण की बात को स्वीकार किया।
1860 ई. में अधिसूचना जारी कर नील की जबरन खेती पर रोक लगा दी गयी।
Unattempted
व्याख्या-
नील आंदोलन-
कारण: बंगाल के वे काश्तकार जो अपने खेतों में चावल या अन्य खाद्यान्न फसलें उगाना चाहते थे, ब्रिटिश नील बागान मालिकों द्वारा उन्हें नील की खेती करने के लिए बाधित किया जाता था।
नील की खेती करने से मना करने वाले किसानों को नील बागान मालिकों के दमन चक्र का सामना करना पड़ता था।
ददनी प्रथा: नील उत्पादक (बागान मालिक) किसानों को एक मामूली रकम अग्रिम देकर उनसे एक अनुबंध/करारनामा लिखवा लेते थे। यही ददनी प्रथा थी। इससे किसान नील की खेती करने के लिए बाध्य हो जाता था।
नेतृत्व कर्ता: दिगम्बर विश्वास एवं विष्णु विश्वास के नेतृत्व में इस आन्दोलन की शुरूआत बंगाल के नदिया जिले के गोविन्दपुर गांव में हुई।
1865 ई में बंगाल में होने वाले नील विद्रोह के नेता शिशिर कुमार घोष थे।
यह आधुनिक भारत का पहला कृषक आंदोलन माना जाना जाता है।
इस आंदोलन को ईसाई मिशनरियों ने भी अपना समर्थन दिया।
हरिशचन्द्र मुखर्जी ने भी अपने पत्र ‘हिन्दू पैट्रियाट’ के माध्यम से इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया।
दीनबन्धु मित्र के नाटक नील दर्पण में किसानों पर किये जा रहे अत्याचारों को दिखाया गया।
नील आयोग (1860 ई.)
ब्रिटिश सरकार द्वारा नील आन्दोलन समस्या की जांच के लिए सीटोन कार की अध्यक्षता में चार सदस्यीय आयोग का गठन किया गया। आयोग ने रिपोर्ट में किसानों के शोषण की बात को स्वीकार किया।
1860 ई. में अधिसूचना जारी कर नील की जबरन खेती पर रोक लगा दी गयी।
Question 10 of 10
10. Question
2 points
1939 के त्रिपुरी के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में निम्नलिखित में से किसने अध्यक्षीय उद्बोधन का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ा था?
Correct
व्याख्या–
त्रिपुरी अधिवेशन -1939
1939 में कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन की अध्यक्षता सुभाष चन्द्र बोस ने की ।
इस अधिवेशन में शरतचन्द्र बोस ने अध्यक्षीय उदबोधन का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ा था।
Incorrect
व्याख्या–
त्रिपुरी अधिवेशन -1939
1939 में कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन की अध्यक्षता सुभाष चन्द्र बोस ने की ।
इस अधिवेशन में शरतचन्द्र बोस ने अध्यक्षीय उदबोधन का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ा था।
Unattempted
व्याख्या–
त्रिपुरी अधिवेशन -1939
1939 में कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन की अध्यक्षता सुभाष चन्द्र बोस ने की ।
इस अधिवेशन में शरतचन्द्र बोस ने अध्यक्षीय उदबोधन का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ा था।