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सिंधु घाटी सभ्यता
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1
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Answered
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Question 1 of 10
1. Question
2 points
निम्नलिखित प्राचीन जनजातियों पर विचार कीजिए
अंग
गांधारी
वात्य
उपर्युक्त में से कौन-सी जनजाति/जनजातियां वैदिक काल में अस्तित्व में थी/थीं?
Correct
2 / 2Points
व्याख्या-
प्राचीन जनजातियों में मगध के गन्धारी जनजातियां अस्तित्व में थी।
अथर्ववेद के एक मंत्र में मगध के गन्धारी और मुजवत के साथ उल्लेख कर यह प्रार्थना की गयी है कि तक्मा (ज्वर रोग) इन देशों को चला जाय। ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन युग में मगध और अंग सदृश प्राच्य देश में ऐसी आर्य भिन्न जातियों का निवास था जिसके साथ आर्यो का संघर्ष चल रहा था। इसी कारण तक्मा इन देशों में चले जाने की प्रार्थना की।
Incorrect
/ 2 Points
व्याख्या-
प्राचीन जनजातियों में मगध के गन्धारी जनजातियां अस्तित्व में थी।
अथर्ववेद के एक मंत्र में मगध के गन्धारी और मुजवत के साथ उल्लेख कर यह प्रार्थना की गयी है कि तक्मा (ज्वर रोग) इन देशों को चला जाय। ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन युग में मगध और अंग सदृश प्राच्य देश में ऐसी आर्य भिन्न जातियों का निवास था जिसके साथ आर्यो का संघर्ष चल रहा था। इसी कारण तक्मा इन देशों में चले जाने की प्रार्थना की।
Unattempted
/ 2 Points
व्याख्या-
प्राचीन जनजातियों में मगध के गन्धारी जनजातियां अस्तित्व में थी।
अथर्ववेद के एक मंत्र में मगध के गन्धारी और मुजवत के साथ उल्लेख कर यह प्रार्थना की गयी है कि तक्मा (ज्वर रोग) इन देशों को चला जाय। ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन युग में मगध और अंग सदृश प्राच्य देश में ऐसी आर्य भिन्न जातियों का निवास था जिसके साथ आर्यो का संघर्ष चल रहा था। इसी कारण तक्मा इन देशों में चले जाने की प्रार्थना की।
Question 2 of 10
2. Question
2 points
निम्नलिखित में से किसने महावीर के परम ज्ञान के शोध के दौरान छ: वर्षों तक उनके साथ कठोर तप किया?
Correct
व्याख्या –
जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक महावीर थे
महावीर के साथ गोशाल मंखलिपुत्त ने छ: वर्षों तक कठोर तप किया था।
गोशाल मंखलिपुत्त की महावीर से भेंट नालन्दा (बिहार) में हुयी थी।
इसी अवसर पर गोशाल मंखलिपुत्त ने महावीर की शिष्यता ग्रहण की थी।
गोशाल मंखलिपुत्त छ: वर्षों तक उनके साथ कठोर तप करने के पश्चात् गोशाल मंखलिपुत्त ने साथ छोड़कर एक नवीन ‘आजीवक’ सम्प्रदाय की स्थापना की।
अजीवक सम्प्रदाय नियतिवाद अथवा भाग्यवाद के मत में विश्वास करता था
अजीवक सम्प्रदाय के अनुसार संसार के प्रत्येक वस्तु भाग्य द्वारा पूर्व नियंत्रित एवं संचालित होती है
मनुष्य के जीवन पर उसके कर्म का किसी प्रकार का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है।
गोशाल मंखलिपुत्त महावीर के समान वे भी ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं करते थे और जीव तथा पदार्थ को अलग-अलग तत्व के रूप में स्वीकार करते थे।
Incorrect
व्याख्या –
जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक महावीर थे
महावीर के साथ गोशाल मंखलिपुत्त ने छ: वर्षों तक कठोर तप किया था।
गोशाल मंखलिपुत्त की महावीर से भेंट नालन्दा (बिहार) में हुयी थी।
इसी अवसर पर गोशाल मंखलिपुत्त ने महावीर की शिष्यता ग्रहण की थी।
गोशाल मंखलिपुत्त छ: वर्षों तक उनके साथ कठोर तप करने के पश्चात् गोशाल मंखलिपुत्त ने साथ छोड़कर एक नवीन ‘आजीवक’ सम्प्रदाय की स्थापना की।
अजीवक सम्प्रदाय नियतिवाद अथवा भाग्यवाद के मत में विश्वास करता था
अजीवक सम्प्रदाय के अनुसार संसार के प्रत्येक वस्तु भाग्य द्वारा पूर्व नियंत्रित एवं संचालित होती है
मनुष्य के जीवन पर उसके कर्म का किसी प्रकार का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है।
गोशाल मंखलिपुत्त महावीर के समान वे भी ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं करते थे और जीव तथा पदार्थ को अलग-अलग तत्व के रूप में स्वीकार करते थे।
Unattempted
व्याख्या –
जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक महावीर थे
महावीर के साथ गोशाल मंखलिपुत्त ने छ: वर्षों तक कठोर तप किया था।
गोशाल मंखलिपुत्त की महावीर से भेंट नालन्दा (बिहार) में हुयी थी।
इसी अवसर पर गोशाल मंखलिपुत्त ने महावीर की शिष्यता ग्रहण की थी।
गोशाल मंखलिपुत्त छ: वर्षों तक उनके साथ कठोर तप करने के पश्चात् गोशाल मंखलिपुत्त ने साथ छोड़कर एक नवीन ‘आजीवक’ सम्प्रदाय की स्थापना की।
अजीवक सम्प्रदाय नियतिवाद अथवा भाग्यवाद के मत में विश्वास करता था
अजीवक सम्प्रदाय के अनुसार संसार के प्रत्येक वस्तु भाग्य द्वारा पूर्व नियंत्रित एवं संचालित होती है
मनुष्य के जीवन पर उसके कर्म का किसी प्रकार का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है।
गोशाल मंखलिपुत्त महावीर के समान वे भी ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं करते थे और जीव तथा पदार्थ को अलग-अलग तत्व के रूप में स्वीकार करते थे।
Question 3 of 10
3. Question
2 points
निम्नलिखित में से कौन सा एक सम्राट अशोक के शासनकाल से सम्बन्धित प्रशासकीय अधिकारियों का, कनिष्ठ से आरम्भ कर वरिष्ठ स्तर तक, सही अनुक्रम
Correct
व्याख्या –
अशोक के शासनकाल से सम्बन्धित प्रशासकीय अधिकारियों का कनिष्ठ से वरिष्ठ स्तर क्रम महामात्र -राजुक – प्रादेशिक के रूप में था।
महामात्र -नगर व्यवहारिक के रूप में कार्य सम्पादित करने वाला अधिकारी होता था।
राजुक -वर्तमान बन्दोबस्त अधिकारी की भाँति कार्य करते थे। यह एक अति महत्वपूर्ण पद होता था जिसे कई लाख व्यक्तिया के ऊपर नियुक्त किया जाता था।
राजुक आधुनिक शासन प्रणाली के अन्तर्गत विद्यमान जिलाधिकारी मानना सही प्रतीत होता है। ये राजस्व तथा न्याय दोनों ही प्रकार के कार्य करते थे।
प्रादेशिक -मण्डल का प्रधान अधिकारी होता था जो कि वर्तमान संभागीय आयुक्त के रूप में कार्य सम्पादित करता था। वह न्याय सम्बन्धी कार्य भी करता था।
Incorrect
व्याख्या –
अशोक के शासनकाल से सम्बन्धित प्रशासकीय अधिकारियों का कनिष्ठ से वरिष्ठ स्तर क्रम महामात्र -राजुक – प्रादेशिक के रूप में था।
महामात्र -नगर व्यवहारिक के रूप में कार्य सम्पादित करने वाला अधिकारी होता था।
राजुक -वर्तमान बन्दोबस्त अधिकारी की भाँति कार्य करते थे। यह एक अति महत्वपूर्ण पद होता था जिसे कई लाख व्यक्तिया के ऊपर नियुक्त किया जाता था।
राजुक आधुनिक शासन प्रणाली के अन्तर्गत विद्यमान जिलाधिकारी मानना सही प्रतीत होता है। ये राजस्व तथा न्याय दोनों ही प्रकार के कार्य करते थे।
प्रादेशिक -मण्डल का प्रधान अधिकारी होता था जो कि वर्तमान संभागीय आयुक्त के रूप में कार्य सम्पादित करता था। वह न्याय सम्बन्धी कार्य भी करता था।
Unattempted
व्याख्या –
अशोक के शासनकाल से सम्बन्धित प्रशासकीय अधिकारियों का कनिष्ठ से वरिष्ठ स्तर क्रम महामात्र -राजुक – प्रादेशिक के रूप में था।
महामात्र -नगर व्यवहारिक के रूप में कार्य सम्पादित करने वाला अधिकारी होता था।
राजुक -वर्तमान बन्दोबस्त अधिकारी की भाँति कार्य करते थे। यह एक अति महत्वपूर्ण पद होता था जिसे कई लाख व्यक्तिया के ऊपर नियुक्त किया जाता था।
राजुक आधुनिक शासन प्रणाली के अन्तर्गत विद्यमान जिलाधिकारी मानना सही प्रतीत होता है। ये राजस्व तथा न्याय दोनों ही प्रकार के कार्य करते थे।
प्रादेशिक -मण्डल का प्रधान अधिकारी होता था जो कि वर्तमान संभागीय आयुक्त के रूप में कार्य सम्पादित करता था। वह न्याय सम्बन्धी कार्य भी करता था।
Question 4 of 10
4. Question
2 points
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (1931) में कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में भाग लेने वाले नेता कौन थे।
Correct
व्याख्या-
दूसरा गोलमेज सम्मेलन –
7 सितंबर 1931 से 1 दिसंबर 1931 तक लंदन में आयोजित किया गया था।
महात्मा गांधी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया और सरोजिनी नायडू ने दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भारतीय महिलाओं का प्रतिनिधित्व किया।
दूसरे गोलमेज सम्मेलन के कुछ महत्वपूर्ण प्रतिभागी :
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) – महात्मा गांधी,
मुस्लिम लीग – मो. अली जिन्ना, आगा खान तृतीय, मुहम्मद इकबाल
हिंदू – एम आर जयकर
अवसादग्रस्त वर्ग – डॉ. बी.आर. अंबेडकर
अन्रंय -गास्वामी अयंगर, मदन मोहन मालवीय
दूसरा गोलमेज सम्मेलन गांधी-इरविन समझौते के परिणामों में से एक था।
अंग्रेजों ने सांप्रदायिक पुरस्कार देने का फैसला कियाभारत में अल्पसंख्यक समुदायों के लिए अलग निर्वाचक मंडल प्रदान करके अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करने के लिए और गांधीजी इसके खिलाफ थे।
*********
लंदन में 12 नवंबर 1930 से 19 जनवरी 1931 तक प्रथम गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया था।
तीसरा गोलमेज सम्मेलन 17 नवंबर 1932 से 24 दिसंबर 1932 के बीच लंदन में हुआ।
Incorrect
व्याख्या-
दूसरा गोलमेज सम्मेलन –
7 सितंबर 1931 से 1 दिसंबर 1931 तक लंदन में आयोजित किया गया था।
महात्मा गांधी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया और सरोजिनी नायडू ने दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भारतीय महिलाओं का प्रतिनिधित्व किया।
दूसरे गोलमेज सम्मेलन के कुछ महत्वपूर्ण प्रतिभागी :
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) – महात्मा गांधी,
मुस्लिम लीग – मो. अली जिन्ना, आगा खान तृतीय, मुहम्मद इकबाल
हिंदू – एम आर जयकर
अवसादग्रस्त वर्ग – डॉ. बी.आर. अंबेडकर
अन्रंय -गास्वामी अयंगर, मदन मोहन मालवीय
दूसरा गोलमेज सम्मेलन गांधी-इरविन समझौते के परिणामों में से एक था।
अंग्रेजों ने सांप्रदायिक पुरस्कार देने का फैसला कियाभारत में अल्पसंख्यक समुदायों के लिए अलग निर्वाचक मंडल प्रदान करके अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करने के लिए और गांधीजी इसके खिलाफ थे।
*********
लंदन में 12 नवंबर 1930 से 19 जनवरी 1931 तक प्रथम गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया था।
तीसरा गोलमेज सम्मेलन 17 नवंबर 1932 से 24 दिसंबर 1932 के बीच लंदन में हुआ।
Unattempted
व्याख्या-
दूसरा गोलमेज सम्मेलन –
7 सितंबर 1931 से 1 दिसंबर 1931 तक लंदन में आयोजित किया गया था।
महात्मा गांधी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया और सरोजिनी नायडू ने दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भारतीय महिलाओं का प्रतिनिधित्व किया।
दूसरे गोलमेज सम्मेलन के कुछ महत्वपूर्ण प्रतिभागी :
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) – महात्मा गांधी,
मुस्लिम लीग – मो. अली जिन्ना, आगा खान तृतीय, मुहम्मद इकबाल
हिंदू – एम आर जयकर
अवसादग्रस्त वर्ग – डॉ. बी.आर. अंबेडकर
अन्रंय -गास्वामी अयंगर, मदन मोहन मालवीय
दूसरा गोलमेज सम्मेलन गांधी-इरविन समझौते के परिणामों में से एक था।
अंग्रेजों ने सांप्रदायिक पुरस्कार देने का फैसला कियाभारत में अल्पसंख्यक समुदायों के लिए अलग निर्वाचक मंडल प्रदान करके अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करने के लिए और गांधीजी इसके खिलाफ थे।
*********
लंदन में 12 नवंबर 1930 से 19 जनवरी 1931 तक प्रथम गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया था।
तीसरा गोलमेज सम्मेलन 17 नवंबर 1932 से 24 दिसंबर 1932 के बीच लंदन में हुआ।
Question 5 of 10
5. Question
2 points
निम्नलिखित में से कौन रेगुलेटिंग अधिनियम में दिये गये गवर्नर जनरल की कौंसिल का सदस्य नहीं था? .
Correct
व्याख्या –
1773 का रेग्यूलेटिंग एक्ट-
ब्रिटीश क्राउन का कम्पनी पर नियन्त्रण लाया गया।
केन्द्रीय शासन की नींव डाली गई।
बंगाल के गर्वनर वारेन-हेस्टिंग्स को गर्वनर जनरल बना दिया गया।
बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स को बनाया गया
गर्वनर जनरल 4 सदस्यीय कार्यकारिणी बनाई गई। जिसके सारे निर्णय बहुमत से लिए जाते थे।
कार्यकारिणी सदस्य– फ्रांसिस, मानसन, क्लेवरिंग, बारवैल। इन सभी का कार्यकाल 5 वर्ष था
कार्यकारिणी सदस्यो को कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर्स की संस्तुति पर केवल इंग्लैण्ड का सम्राट ही इन्हें हटा सकता था।
मद्रास व बम्बई के गर्वनर इसके अधीन रखे गए।
गर्वनर जनरल 4 सदस्यीय कार्यकारिणी बनाई गई। जिसके सारे निर्णय बहुमत से लिए जाते थे।
1773 के विनियमन अधिनियम ने फोर्ट विलियम, कलकत्ता में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की।
इस सुप्रीम कोर्ट में एक मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य नियमित न्यायाधीश या अवर न्यायाधीश शामिल थे।
सर एलीजा इम्पे इस सुप्रीम कोर्ट के पहले मुख्य न्यायाधीश थे।
तीन अन्य न्यायधिशो में स्टीफनम, चैम्बर और जान हाइड थे
शासन चलाने हेतु बोर्ड ऑफ़ कन्ट्रोल और बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर बनाए गए।
व्यापार की सभी सूचनाएं क्राउन को देना सुनिश्चित किया।
Incorrect
व्याख्या –
1773 का रेग्यूलेटिंग एक्ट-
ब्रिटीश क्राउन का कम्पनी पर नियन्त्रण लाया गया।
केन्द्रीय शासन की नींव डाली गई।
बंगाल के गर्वनर वारेन-हेस्टिंग्स को गर्वनर जनरल बना दिया गया।
बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स को बनाया गया
गर्वनर जनरल 4 सदस्यीय कार्यकारिणी बनाई गई। जिसके सारे निर्णय बहुमत से लिए जाते थे।
कार्यकारिणी सदस्य– फ्रांसिस, मानसन, क्लेवरिंग, बारवैल। इन सभी का कार्यकाल 5 वर्ष था
कार्यकारिणी सदस्यो को कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर्स की संस्तुति पर केवल इंग्लैण्ड का सम्राट ही इन्हें हटा सकता था।
मद्रास व बम्बई के गर्वनर इसके अधीन रखे गए।
गर्वनर जनरल 4 सदस्यीय कार्यकारिणी बनाई गई। जिसके सारे निर्णय बहुमत से लिए जाते थे।
1773 के विनियमन अधिनियम ने फोर्ट विलियम, कलकत्ता में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की।
इस सुप्रीम कोर्ट में एक मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य नियमित न्यायाधीश या अवर न्यायाधीश शामिल थे।
सर एलीजा इम्पे इस सुप्रीम कोर्ट के पहले मुख्य न्यायाधीश थे।
तीन अन्य न्यायधिशो में स्टीफनम, चैम्बर और जान हाइड थे
शासन चलाने हेतु बोर्ड ऑफ़ कन्ट्रोल और बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर बनाए गए।
व्यापार की सभी सूचनाएं क्राउन को देना सुनिश्चित किया।
Unattempted
व्याख्या –
1773 का रेग्यूलेटिंग एक्ट-
ब्रिटीश क्राउन का कम्पनी पर नियन्त्रण लाया गया।
केन्द्रीय शासन की नींव डाली गई।
बंगाल के गर्वनर वारेन-हेस्टिंग्स को गर्वनर जनरल बना दिया गया।
बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स को बनाया गया
गर्वनर जनरल 4 सदस्यीय कार्यकारिणी बनाई गई। जिसके सारे निर्णय बहुमत से लिए जाते थे।
कार्यकारिणी सदस्य– फ्रांसिस, मानसन, क्लेवरिंग, बारवैल। इन सभी का कार्यकाल 5 वर्ष था
कार्यकारिणी सदस्यो को कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर्स की संस्तुति पर केवल इंग्लैण्ड का सम्राट ही इन्हें हटा सकता था।
मद्रास व बम्बई के गर्वनर इसके अधीन रखे गए।
गर्वनर जनरल 4 सदस्यीय कार्यकारिणी बनाई गई। जिसके सारे निर्णय बहुमत से लिए जाते थे।
1773 के विनियमन अधिनियम ने फोर्ट विलियम, कलकत्ता में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की।
इस सुप्रीम कोर्ट में एक मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य नियमित न्यायाधीश या अवर न्यायाधीश शामिल थे।
सर एलीजा इम्पे इस सुप्रीम कोर्ट के पहले मुख्य न्यायाधीश थे।
तीन अन्य न्यायधिशो में स्टीफनम, चैम्बर और जान हाइड थे
शासन चलाने हेतु बोर्ड ऑफ़ कन्ट्रोल और बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर बनाए गए।
व्यापार की सभी सूचनाएं क्राउन को देना सुनिश्चित किया।
Question 6 of 10
6. Question
2 points
1881 का फैक्ट्री एक्ट निम्नांकित दृष्टि से पारित किया गया था
Correct
व्याख्या-
प्रथम फैक्ट्री अधिनियम-
लार्ड रिपन के समय 1881 ई0 में प्रथम फैक्ट्री अधिनियम पारित हुआ।
यह केवल उन कारखानों पर लागू होता था जहाँ 100 से अधिक श्रमिक कार्यरत थे।
इसके अनुसार किसी फैक्ट्री में 7 वर्ष से कम आयु के बच्चे कार्य नहीं कर सकते थे
7- 12 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये काम का समय सिमित किया गया और संकटपूर्ण मशीनों पर बाड़ा लगाना आवश्यक हो गया।
Incorrect
व्याख्या-
प्रथम फैक्ट्री अधिनियम-
लार्ड रिपन के समय 1881 ई0 में प्रथम फैक्ट्री अधिनियम पारित हुआ।
यह केवल उन कारखानों पर लागू होता था जहाँ 100 से अधिक श्रमिक कार्यरत थे।
इसके अनुसार किसी फैक्ट्री में 7 वर्ष से कम आयु के बच्चे कार्य नहीं कर सकते थे
7- 12 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये काम का समय सिमित किया गया और संकटपूर्ण मशीनों पर बाड़ा लगाना आवश्यक हो गया।
Unattempted
व्याख्या-
प्रथम फैक्ट्री अधिनियम-
लार्ड रिपन के समय 1881 ई0 में प्रथम फैक्ट्री अधिनियम पारित हुआ।
यह केवल उन कारखानों पर लागू होता था जहाँ 100 से अधिक श्रमिक कार्यरत थे।
इसके अनुसार किसी फैक्ट्री में 7 वर्ष से कम आयु के बच्चे कार्य नहीं कर सकते थे
7- 12 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये काम का समय सिमित किया गया और संकटपूर्ण मशीनों पर बाड़ा लगाना आवश्यक हो गया।
Question 7 of 10
7. Question
2 points
भारत में अंग्रेजी शिक्षा का माध्यम बनाया गया?
Correct
व्याख्या-
1835 में लोक शिक्षा समिति में दस सदस्य थे।
लॉर्ड विलियम बैन्टिंग ने मार्च, 1835 ई० को मैकाले द्वारा प्रस्तुत स्मरणार्थ लेख को स्वीकार कर लिया।
1835 ई० में अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया गया।
लॉर्ड हार्डिंग के कार्यकाल में 1844 ई० में सरकारी नौकरियों में अंग्रेजी शिक्षा अनिवार्य कर दिया गया।
लोक शिक्षा समिति में दो दल थे-
1. प्राच्यवादी, 2. पाश्चात्यवादी।
प्राच्यवादी-
प्राच्यवादी दल के नेता एच०टी० मिन्सेप तथा एच०एच०विल्सेन थे।
इस दल का मानना था कि भारत में संस्कृति और अरबी के अध्ययन को प्रोत्साहन दिया जाए
भारत में पाश्चात्य विज्ञान और ज्ञान का प्रसार इन्हीं भाषाओं में किया जाए।
पाश्चात्यवादी
भारत में शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी भाषा को लागू किया जाए।
ये भारत पर पश्चिमी मापदण्डों को पूर्णत: आरोपित करना चाहते थे।
प्राच्यवादी व पाश्चात्यवादी विवादों को दूर करने के लिए विलयम बैन्टिंग ने अपने काउन्सिल के विधि सदस्य मैकाले को बंगाल की लोक शिक्षा समिति का प्रमुख नियुक्त किया
मैकाले पाश्चात्यवादी दल का समर्थक था।
2 फरवरी, 1835 ई० को उसने अपना स्मरणार्थ लेख प्रस्तुत किया जिसमें भारतीय भाषा और साहित्य की तीखी आलोचना की।
मैकाले के अनुसार, एक अच्छे यूरोपीय पुस्तकालय की एक आलमारी भारत तथा अरब के संपूर्ण साहित्य के बराबर मुल्यवान है।
Incorrect
व्याख्या-
1835 में लोक शिक्षा समिति में दस सदस्य थे।
लॉर्ड विलियम बैन्टिंग ने मार्च, 1835 ई० को मैकाले द्वारा प्रस्तुत स्मरणार्थ लेख को स्वीकार कर लिया।
1835 ई० में अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया गया।
लॉर्ड हार्डिंग के कार्यकाल में 1844 ई० में सरकारी नौकरियों में अंग्रेजी शिक्षा अनिवार्य कर दिया गया।
लोक शिक्षा समिति में दो दल थे-
1. प्राच्यवादी, 2. पाश्चात्यवादी।
प्राच्यवादी-
प्राच्यवादी दल के नेता एच०टी० मिन्सेप तथा एच०एच०विल्सेन थे।
इस दल का मानना था कि भारत में संस्कृति और अरबी के अध्ययन को प्रोत्साहन दिया जाए
भारत में पाश्चात्य विज्ञान और ज्ञान का प्रसार इन्हीं भाषाओं में किया जाए।
पाश्चात्यवादी
भारत में शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी भाषा को लागू किया जाए।
ये भारत पर पश्चिमी मापदण्डों को पूर्णत: आरोपित करना चाहते थे।
प्राच्यवादी व पाश्चात्यवादी विवादों को दूर करने के लिए विलयम बैन्टिंग ने अपने काउन्सिल के विधि सदस्य मैकाले को बंगाल की लोक शिक्षा समिति का प्रमुख नियुक्त किया
मैकाले पाश्चात्यवादी दल का समर्थक था।
2 फरवरी, 1835 ई० को उसने अपना स्मरणार्थ लेख प्रस्तुत किया जिसमें भारतीय भाषा और साहित्य की तीखी आलोचना की।
मैकाले के अनुसार, एक अच्छे यूरोपीय पुस्तकालय की एक आलमारी भारत तथा अरब के संपूर्ण साहित्य के बराबर मुल्यवान है।
Unattempted
व्याख्या-
1835 में लोक शिक्षा समिति में दस सदस्य थे।
लॉर्ड विलियम बैन्टिंग ने मार्च, 1835 ई० को मैकाले द्वारा प्रस्तुत स्मरणार्थ लेख को स्वीकार कर लिया।
1835 ई० में अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया गया।
लॉर्ड हार्डिंग के कार्यकाल में 1844 ई० में सरकारी नौकरियों में अंग्रेजी शिक्षा अनिवार्य कर दिया गया।
लोक शिक्षा समिति में दो दल थे-
1. प्राच्यवादी, 2. पाश्चात्यवादी।
प्राच्यवादी-
प्राच्यवादी दल के नेता एच०टी० मिन्सेप तथा एच०एच०विल्सेन थे।
इस दल का मानना था कि भारत में संस्कृति और अरबी के अध्ययन को प्रोत्साहन दिया जाए
भारत में पाश्चात्य विज्ञान और ज्ञान का प्रसार इन्हीं भाषाओं में किया जाए।
पाश्चात्यवादी
भारत में शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी भाषा को लागू किया जाए।
ये भारत पर पश्चिमी मापदण्डों को पूर्णत: आरोपित करना चाहते थे।
प्राच्यवादी व पाश्चात्यवादी विवादों को दूर करने के लिए विलयम बैन्टिंग ने अपने काउन्सिल के विधि सदस्य मैकाले को बंगाल की लोक शिक्षा समिति का प्रमुख नियुक्त किया
मैकाले पाश्चात्यवादी दल का समर्थक था।
2 फरवरी, 1835 ई० को उसने अपना स्मरणार्थ लेख प्रस्तुत किया जिसमें भारतीय भाषा और साहित्य की तीखी आलोचना की।
मैकाले के अनुसार, एक अच्छे यूरोपीय पुस्तकालय की एक आलमारी भारत तथा अरब के संपूर्ण साहित्य के बराबर मुल्यवान है।
Question 8 of 10
8. Question
2 points
पूर्व योजना के अनुसार मुस्लिम लीग ने ‘सीधी कार्यवाही’ दिवस कब मनाया?
Correct
व्याख्या –
डायरेक्ट एक्शन डे:
1946 के संविधान सभा के चुनाव में मुस्लिम लीग को 78 में से 73 स्थान प्राप्त हए।
16 अगस्त 1946 को, मुस्लिम लीग ने मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में “डायरेक्ट एक्शन डे” का आह्वान किया।
मुस्लिम लीग द्वारा डायरेक्ट एक्शन डे, पाकिस्तान को कानूनी तरीकों से नहीं तो हिंसक माध्यम से प्राप्त करने के लिए था।
मोहम्मद अली जिन्ना ने घोषणा की कि या तो हमारा भारत “विभाजित भारत या नष्ट भारत” होगा।
डायरेक्ट एक्शन डे, 1946 कलकत्ता हत्याओं के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रांत के कलकत्ता में मुसलमानों और हिंदुओं के बीच व्यापक सांप्रदायिक दंगों का दिन था।
इसी समय से कलकत्ता में दंगे प्रारम्भ हुए, जो आगे अढ़कर नोवाखाली और अन्य प्रान्तों में फैल गये।
Incorrect
व्याख्या –
डायरेक्ट एक्शन डे:
1946 के संविधान सभा के चुनाव में मुस्लिम लीग को 78 में से 73 स्थान प्राप्त हए।
16 अगस्त 1946 को, मुस्लिम लीग ने मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में “डायरेक्ट एक्शन डे” का आह्वान किया।
मुस्लिम लीग द्वारा डायरेक्ट एक्शन डे, पाकिस्तान को कानूनी तरीकों से नहीं तो हिंसक माध्यम से प्राप्त करने के लिए था।
मोहम्मद अली जिन्ना ने घोषणा की कि या तो हमारा भारत “विभाजित भारत या नष्ट भारत” होगा।
डायरेक्ट एक्शन डे, 1946 कलकत्ता हत्याओं के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रांत के कलकत्ता में मुसलमानों और हिंदुओं के बीच व्यापक सांप्रदायिक दंगों का दिन था।
इसी समय से कलकत्ता में दंगे प्रारम्भ हुए, जो आगे अढ़कर नोवाखाली और अन्य प्रान्तों में फैल गये।
Unattempted
व्याख्या –
डायरेक्ट एक्शन डे:
1946 के संविधान सभा के चुनाव में मुस्लिम लीग को 78 में से 73 स्थान प्राप्त हए।
16 अगस्त 1946 को, मुस्लिम लीग ने मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में “डायरेक्ट एक्शन डे” का आह्वान किया।
मुस्लिम लीग द्वारा डायरेक्ट एक्शन डे, पाकिस्तान को कानूनी तरीकों से नहीं तो हिंसक माध्यम से प्राप्त करने के लिए था।
मोहम्मद अली जिन्ना ने घोषणा की कि या तो हमारा भारत “विभाजित भारत या नष्ट भारत” होगा।
डायरेक्ट एक्शन डे, 1946 कलकत्ता हत्याओं के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रांत के कलकत्ता में मुसलमानों और हिंदुओं के बीच व्यापक सांप्रदायिक दंगों का दिन था।
इसी समय से कलकत्ता में दंगे प्रारम्भ हुए, जो आगे अढ़कर नोवाखाली और अन्य प्रान्तों में फैल गये।
Question 9 of 10
9. Question
2 points
“कुशल अकर्मण्यता’ की नीति का सम्बन्ध था
Correct
व्याख्या-
सर जॉन लॉरेन्स (Sir John Lawrence)
जान लारेंस 1863 ई. में भारत का वायसराय बना था।
जान लारेंस 1830 ई. में भारत आया था,
प्रथम आंग्ल-सिक्ख युद्ध में उल्लेखनीय योगदान के कारण जान लारेंस पहले जालंधर दोआब का कमिश्नर तथा 1853 ई. में इसे पंजाब का चीफ कमिश्नर बना दिया गया।
कार्यकाल – 1864 – 69 ई.
सर जॉन लॉरन्स को “भारत का रक्षक तथा विजय का संचालक कहा जाता है।”
पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिलाए जाने के पश्चात वह चीफ कमिश्नर नियुक्त किया गया।
अफगानिस्तान के सन्दर्भ में उसने अहस्तक्षेप /”कुशल अकर्मण्यता’ की नीति का पालन किया तथा तत्कालीन शासक शेर अली से दोस्ती की।
1865 ई. में भूटानियों ने ब्रिटिश साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया।
उसके समय में 1866 ई. में उड़ीसा में तथा 1868-69 ई. में बन्देलखण्ड एवं राजपूताना में भीषण अकाल पड़ा।
सर जॉर्ज कैम्पबेल के नेतृत्व में अकाल आयोग नियुक्त किया गया, जो अकालों का मुकाबला करने के सबसे सफल उपायों पर विचार कर सके।
लॉरेन्स के काल में 1865 ई. में भारत एवं यूरोप के बीच प्रथम समुद्री टेलीग्राफ सेवा आरम्भ हुई।
इसी के काल में 1868 ई. में पंजाब तथा अवध के काश्तकारी अधिनियम पारित हुए थे।
Incorrect
व्याख्या-
सर जॉन लॉरेन्स (Sir John Lawrence)
जान लारेंस 1863 ई. में भारत का वायसराय बना था।
जान लारेंस 1830 ई. में भारत आया था,
प्रथम आंग्ल-सिक्ख युद्ध में उल्लेखनीय योगदान के कारण जान लारेंस पहले जालंधर दोआब का कमिश्नर तथा 1853 ई. में इसे पंजाब का चीफ कमिश्नर बना दिया गया।
कार्यकाल – 1864 – 69 ई.
सर जॉन लॉरन्स को “भारत का रक्षक तथा विजय का संचालक कहा जाता है।”
पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिलाए जाने के पश्चात वह चीफ कमिश्नर नियुक्त किया गया।
अफगानिस्तान के सन्दर्भ में उसने अहस्तक्षेप /”कुशल अकर्मण्यता’ की नीति का पालन किया तथा तत्कालीन शासक शेर अली से दोस्ती की।
1865 ई. में भूटानियों ने ब्रिटिश साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया।
उसके समय में 1866 ई. में उड़ीसा में तथा 1868-69 ई. में बन्देलखण्ड एवं राजपूताना में भीषण अकाल पड़ा।
सर जॉर्ज कैम्पबेल के नेतृत्व में अकाल आयोग नियुक्त किया गया, जो अकालों का मुकाबला करने के सबसे सफल उपायों पर विचार कर सके।
लॉरेन्स के काल में 1865 ई. में भारत एवं यूरोप के बीच प्रथम समुद्री टेलीग्राफ सेवा आरम्भ हुई।
इसी के काल में 1868 ई. में पंजाब तथा अवध के काश्तकारी अधिनियम पारित हुए थे।
Unattempted
व्याख्या-
सर जॉन लॉरेन्स (Sir John Lawrence)
जान लारेंस 1863 ई. में भारत का वायसराय बना था।
जान लारेंस 1830 ई. में भारत आया था,
प्रथम आंग्ल-सिक्ख युद्ध में उल्लेखनीय योगदान के कारण जान लारेंस पहले जालंधर दोआब का कमिश्नर तथा 1853 ई. में इसे पंजाब का चीफ कमिश्नर बना दिया गया।
कार्यकाल – 1864 – 69 ई.
सर जॉन लॉरन्स को “भारत का रक्षक तथा विजय का संचालक कहा जाता है।”
पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिलाए जाने के पश्चात वह चीफ कमिश्नर नियुक्त किया गया।
अफगानिस्तान के सन्दर्भ में उसने अहस्तक्षेप /”कुशल अकर्मण्यता’ की नीति का पालन किया तथा तत्कालीन शासक शेर अली से दोस्ती की।
1865 ई. में भूटानियों ने ब्रिटिश साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया।
उसके समय में 1866 ई. में उड़ीसा में तथा 1868-69 ई. में बन्देलखण्ड एवं राजपूताना में भीषण अकाल पड़ा।
सर जॉर्ज कैम्पबेल के नेतृत्व में अकाल आयोग नियुक्त किया गया, जो अकालों का मुकाबला करने के सबसे सफल उपायों पर विचार कर सके।
लॉरेन्स के काल में 1865 ई. में भारत एवं यूरोप के बीच प्रथम समुद्री टेलीग्राफ सेवा आरम्भ हुई।
इसी के काल में 1868 ई. में पंजाब तथा अवध के काश्तकारी अधिनियम पारित हुए थे।
Question 10 of 10
10. Question
2 points
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष कौन था?
Correct
व्याख्या –
कांग्रेस के महत्वपूर्ण अधिवेशन
वर्ष
अधिवेशन का क्रमांक
अधिवेशन का स्थान
अधिवेशन का अध्यक्ष
महत्वपूर्ण टिप्पणी
1885
प्रथम
बम्बई (वर्तमान मुम्बई)
उमेश चन्द्र बनर्जी (व्योमेश चन्द्र बनर्जी के रूप में भी जाने जाते हैं)
i) प्रथम अधिवेशन
ii) 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था
iii) दादा भाई नौरोजी ने कांग्रेस के नाम का सुझाव दिया था
1886
द्वितीय
कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता)
दादा भाई नौरोजी
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी की नेशनल कॉन्फ्रेंस का कांग्रेस में विलय
1887
तृतीय
मद्रास (वर्तमान चेन्नई)
बदरुद्दीन तैयब
पहले मुस्लिम अध्यक्ष
मौलाना अबुल कलाम आजाद को सबसे कम उम्र के कांग्रेस के अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त है।
मौलाना मोहम्मद अली ने 1923 में कांग्रेस का अड़तीसवाँ अधिवेशन काकीनाड़ा में अध्यक्षता बने ।
शैकत अली कभी कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं बने।
Incorrect
व्याख्या –
कांग्रेस के महत्वपूर्ण अधिवेशन
वर्ष
अधिवेशन का क्रमांक
अधिवेशन का स्थान
अधिवेशन का अध्यक्ष
महत्वपूर्ण टिप्पणी
1885
प्रथम
बम्बई (वर्तमान मुम्बई)
उमेश चन्द्र बनर्जी (व्योमेश चन्द्र बनर्जी के रूप में भी जाने जाते हैं)
i) प्रथम अधिवेशन
ii) 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था
iii) दादा भाई नौरोजी ने कांग्रेस के नाम का सुझाव दिया था
1886
द्वितीय
कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता)
दादा भाई नौरोजी
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी की नेशनल कॉन्फ्रेंस का कांग्रेस में विलय
1887
तृतीय
मद्रास (वर्तमान चेन्नई)
बदरुद्दीन तैयब
पहले मुस्लिम अध्यक्ष
मौलाना अबुल कलाम आजाद को सबसे कम उम्र के कांग्रेस के अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त है।
मौलाना मोहम्मद अली ने 1923 में कांग्रेस का अड़तीसवाँ अधिवेशन काकीनाड़ा में अध्यक्षता बने ।
शैकत अली कभी कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं बने।
Unattempted
व्याख्या –
कांग्रेस के महत्वपूर्ण अधिवेशन
वर्ष
अधिवेशन का क्रमांक
अधिवेशन का स्थान
अधिवेशन का अध्यक्ष
महत्वपूर्ण टिप्पणी
1885
प्रथम
बम्बई (वर्तमान मुम्बई)
उमेश चन्द्र बनर्जी (व्योमेश चन्द्र बनर्जी के रूप में भी जाने जाते हैं)
i) प्रथम अधिवेशन
ii) 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था
iii) दादा भाई नौरोजी ने कांग्रेस के नाम का सुझाव दिया था
1886
द्वितीय
कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता)
दादा भाई नौरोजी
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी की नेशनल कॉन्फ्रेंस का कांग्रेस में विलय
1887
तृतीय
मद्रास (वर्तमान चेन्नई)
बदरुद्दीन तैयब
पहले मुस्लिम अध्यक्ष
मौलाना अबुल कलाम आजाद को सबसे कम उम्र के कांग्रेस के अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त है।
मौलाना मोहम्मद अली ने 1923 में कांग्रेस का अड़तीसवाँ अधिवेशन काकीनाड़ा में अध्यक्षता बने ।