Correct
व्याख्या : प्राचीनकाल में गुजरात की राजधानी रहा भीनमाल (जालौर) नगर महाकवि “माघ” एवं खगोलश,
गणितज्ञ ‘ब्रह्मगुप्त’ दोनों की जन्मभूमि है। यह जैन धर्म का तीर्थस्थल भी है।
वराहमिहिर (अंग्रेज़ी: Varāhamihira, जन्म: ई. 499 – मृत्यु: ई. 587) ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ एवं खगोल शास्त्री थे। वराहमिहिर ने ही अपने पंचसिद्धान्तिका नामक ग्रंथ में सबसे पहले बताया कि अयनांश का मान 50.32 सेकेण्ड के बराबर है। कापित्थक (उज्जैन) में उनके द्वारा विकसित गणितीय विज्ञान का गुरुकुल सात सौ वर्षों तक अद्वितीय रहा। वरःमिहिर बचपन से ही अत्यन्त मेधावी और तेजस्वी थे। अपने पिता आदित्यदास से परम्परागत गणित एवं ज्योतिष सीखकर इन क्षेत्रों में व्यापक शोध कार्य किया। समय मापक घट यन्त्र, इन्द्रप्रस्थ में लौहस्तम्भ के निर्माण और ईरान के शहंशाह नौशेरवाँ के आमन्त्रण पर जुन्दीशापुर नामक स्थान पर वेधशाला की स्थापना – उनके कार्यों की एक झलक देते हैं।
ब्रह्मगुप्त (जन्म: 598 ई. – मृत्यु: 668 ई.) प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ थे। ब्रह्मगुप्त गणित ज्योतिष के बहुत बड़े आचार्य थे। आर्यभट के बाद भारत के पहले गणित शास्त्री ‘भास्कराचार्य प्रथम’ थे। उसके बाद ब्रह्मगुप्त हुए। ब्रह्मगुप्त खगोल शास्त्री भी थे और आपने ‘शून्य’ के उपयोग के नियम खोजे थे। इसके बाद अंकगणित और बीजगणित के विषय में लिखने वाले कई गणितशास्त्री हुए। प्रसिद्ध ज्योतिषी भास्कराचार्य ने इनको ‘गणकचक्र – चूड़ामणि’ कहा है और इनके मूलाकों को अपने ‘सिद्धान्त शिरोमणि’ का आधार माना है। इनके ग्रन्थों में सर्वप्रसिद्ध हैं, ‘ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त’ और ‘खण्ड-खाद्यक’। ख़लीफ़ाओं के राज्यकाल में इनके अनुवाद अरबी भाषा में भी कराये गये थे, जिन्हें अरब देश में ‘अल सिन्द हिन्द’ और ‘अल अर्कन्द’ कहते थे। पहली पुस्तक ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त’ का अनुवाद है और दूसरी ‘खण्ड-खाद्यक’ का अनुवाद है।
आर्यभट (अंग्रेज़ी: Aryabhata, जन्म: 476 ई. – मृत्यु: 550 ई.) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने ‘आर्यभटीय’ ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। प्राचीन काल के ज्योतिर्विदों में आर्यभट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, आर्यभट द्वितीय, भास्कराचार्य, कमलाकर जैसे प्रसिद्ध विद्वानों का इस क्षेत्र में अमूल्य योगदान है। इन सभी में आर्यभट सर्वाधिक प्रख्यात हैं। वे गुप्त काल के प्रमुख ज्योतिर्विद थे। नालन्दा विश्वविद्यालय में उन्होंने शिक्षा प्राप्त की थी। 23 वर्ष की आयु में आर्यभट ने ‘आर्यभटीय ग्रंथ’ लिखा था। उनके इस ग्रंथ को चारों ओर से स्वीकृति मिली थी, जिससे प्रभावित होकर राजा बुद्धगुप्त ने आर्यभट को नालन्दा विश्वविद्यालय का प्रमुख बना दिया।
सुश्रुत प्राचीन भारत के प्रसिद्ध चिकित्साशास्त्री तथा शल्य चिकित्सक थे। इन्हें “शल्य चिकित्सा का जनक” माना जाता है। सुश्रुत ने प्रसिद्ध चिकित्सकीय ग्रंथ ‘सुश्रुत संहिता’ की रचना की थी। इस ग्रंथ में शल्य क्रियाओं के लिए आवश्यक यंत्रों (साधनों) तथा शस्त्रों (उपकरणों) आदि का विस्तार से वर्णन किया गया है।
Incorrect
व्याख्या : प्राचीनकाल में गुजरात की राजधानी रहा भीनमाल (जालौर) नगर महाकवि “माघ” एवं खगोलश,
गणितज्ञ ‘ब्रह्मगुप्त’ दोनों की जन्मभूमि है। यह जैन धर्म का तीर्थस्थल भी है।
वराहमिहिर (अंग्रेज़ी: Varāhamihira, जन्म: ई. 499 – मृत्यु: ई. 587) ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ एवं खगोल शास्त्री थे। वराहमिहिर ने ही अपने पंचसिद्धान्तिका नामक ग्रंथ में सबसे पहले बताया कि अयनांश का मान 50.32 सेकेण्ड के बराबर है। कापित्थक (उज्जैन) में उनके द्वारा विकसित गणितीय विज्ञान का गुरुकुल सात सौ वर्षों तक अद्वितीय रहा। वरःमिहिर बचपन से ही अत्यन्त मेधावी और तेजस्वी थे। अपने पिता आदित्यदास से परम्परागत गणित एवं ज्योतिष सीखकर इन क्षेत्रों में व्यापक शोध कार्य किया। समय मापक घट यन्त्र, इन्द्रप्रस्थ में लौहस्तम्भ के निर्माण और ईरान के शहंशाह नौशेरवाँ के आमन्त्रण पर जुन्दीशापुर नामक स्थान पर वेधशाला की स्थापना – उनके कार्यों की एक झलक देते हैं।
ब्रह्मगुप्त (जन्म: 598 ई. – मृत्यु: 668 ई.) प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ थे। ब्रह्मगुप्त गणित ज्योतिष के बहुत बड़े आचार्य थे। आर्यभट के बाद भारत के पहले गणित शास्त्री ‘भास्कराचार्य प्रथम’ थे। उसके बाद ब्रह्मगुप्त हुए। ब्रह्मगुप्त खगोल शास्त्री भी थे और आपने ‘शून्य’ के उपयोग के नियम खोजे थे। इसके बाद अंकगणित और बीजगणित के विषय में लिखने वाले कई गणितशास्त्री हुए। प्रसिद्ध ज्योतिषी भास्कराचार्य ने इनको ‘गणकचक्र – चूड़ामणि’ कहा है और इनके मूलाकों को अपने ‘सिद्धान्त शिरोमणि’ का आधार माना है। इनके ग्रन्थों में सर्वप्रसिद्ध हैं, ‘ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त’ और ‘खण्ड-खाद्यक’। ख़लीफ़ाओं के राज्यकाल में इनके अनुवाद अरबी भाषा में भी कराये गये थे, जिन्हें अरब देश में ‘अल सिन्द हिन्द’ और ‘अल अर्कन्द’ कहते थे। पहली पुस्तक ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त’ का अनुवाद है और दूसरी ‘खण्ड-खाद्यक’ का अनुवाद है।
आर्यभट (अंग्रेज़ी: Aryabhata, जन्म: 476 ई. – मृत्यु: 550 ई.) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने ‘आर्यभटीय’ ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। प्राचीन काल के ज्योतिर्विदों में आर्यभट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, आर्यभट द्वितीय, भास्कराचार्य, कमलाकर जैसे प्रसिद्ध विद्वानों का इस क्षेत्र में अमूल्य योगदान है। इन सभी में आर्यभट सर्वाधिक प्रख्यात हैं। वे गुप्त काल के प्रमुख ज्योतिर्विद थे। नालन्दा विश्वविद्यालय में उन्होंने शिक्षा प्राप्त की थी। 23 वर्ष की आयु में आर्यभट ने ‘आर्यभटीय ग्रंथ’ लिखा था। उनके इस ग्रंथ को चारों ओर से स्वीकृति मिली थी, जिससे प्रभावित होकर राजा बुद्धगुप्त ने आर्यभट को नालन्दा विश्वविद्यालय का प्रमुख बना दिया।
सुश्रुत प्राचीन भारत के प्रसिद्ध चिकित्साशास्त्री तथा शल्य चिकित्सक थे। इन्हें “शल्य चिकित्सा का जनक” माना जाता है। सुश्रुत ने प्रसिद्ध चिकित्सकीय ग्रंथ ‘सुश्रुत संहिता’ की रचना की थी। इस ग्रंथ में शल्य क्रियाओं के लिए आवश्यक यंत्रों (साधनों) तथा शस्त्रों (उपकरणों) आदि का विस्तार से वर्णन किया गया है।
Unattempted
व्याख्या : प्राचीनकाल में गुजरात की राजधानी रहा भीनमाल (जालौर) नगर महाकवि “माघ” एवं खगोलश,
गणितज्ञ ‘ब्रह्मगुप्त’ दोनों की जन्मभूमि है। यह जैन धर्म का तीर्थस्थल भी है।
वराहमिहिर (अंग्रेज़ी: Varāhamihira, जन्म: ई. 499 – मृत्यु: ई. 587) ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ एवं खगोल शास्त्री थे। वराहमिहिर ने ही अपने पंचसिद्धान्तिका नामक ग्रंथ में सबसे पहले बताया कि अयनांश का मान 50.32 सेकेण्ड के बराबर है। कापित्थक (उज्जैन) में उनके द्वारा विकसित गणितीय विज्ञान का गुरुकुल सात सौ वर्षों तक अद्वितीय रहा। वरःमिहिर बचपन से ही अत्यन्त मेधावी और तेजस्वी थे। अपने पिता आदित्यदास से परम्परागत गणित एवं ज्योतिष सीखकर इन क्षेत्रों में व्यापक शोध कार्य किया। समय मापक घट यन्त्र, इन्द्रप्रस्थ में लौहस्तम्भ के निर्माण और ईरान के शहंशाह नौशेरवाँ के आमन्त्रण पर जुन्दीशापुर नामक स्थान पर वेधशाला की स्थापना – उनके कार्यों की एक झलक देते हैं।
ब्रह्मगुप्त (जन्म: 598 ई. – मृत्यु: 668 ई.) प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ थे। ब्रह्मगुप्त गणित ज्योतिष के बहुत बड़े आचार्य थे। आर्यभट के बाद भारत के पहले गणित शास्त्री ‘भास्कराचार्य प्रथम’ थे। उसके बाद ब्रह्मगुप्त हुए। ब्रह्मगुप्त खगोल शास्त्री भी थे और आपने ‘शून्य’ के उपयोग के नियम खोजे थे। इसके बाद अंकगणित और बीजगणित के विषय में लिखने वाले कई गणितशास्त्री हुए। प्रसिद्ध ज्योतिषी भास्कराचार्य ने इनको ‘गणकचक्र – चूड़ामणि’ कहा है और इनके मूलाकों को अपने ‘सिद्धान्त शिरोमणि’ का आधार माना है। इनके ग्रन्थों में सर्वप्रसिद्ध हैं, ‘ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त’ और ‘खण्ड-खाद्यक’। ख़लीफ़ाओं के राज्यकाल में इनके अनुवाद अरबी भाषा में भी कराये गये थे, जिन्हें अरब देश में ‘अल सिन्द हिन्द’ और ‘अल अर्कन्द’ कहते थे। पहली पुस्तक ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त’ का अनुवाद है और दूसरी ‘खण्ड-खाद्यक’ का अनुवाद है।
आर्यभट (अंग्रेज़ी: Aryabhata, जन्म: 476 ई. – मृत्यु: 550 ई.) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने ‘आर्यभटीय’ ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। प्राचीन काल के ज्योतिर्विदों में आर्यभट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, आर्यभट द्वितीय, भास्कराचार्य, कमलाकर जैसे प्रसिद्ध विद्वानों का इस क्षेत्र में अमूल्य योगदान है। इन सभी में आर्यभट सर्वाधिक प्रख्यात हैं। वे गुप्त काल के प्रमुख ज्योतिर्विद थे। नालन्दा विश्वविद्यालय में उन्होंने शिक्षा प्राप्त की थी। 23 वर्ष की आयु में आर्यभट ने ‘आर्यभटीय ग्रंथ’ लिखा था। उनके इस ग्रंथ को चारों ओर से स्वीकृति मिली थी, जिससे प्रभावित होकर राजा बुद्धगुप्त ने आर्यभट को नालन्दा विश्वविद्यालय का प्रमुख बना दिया।
सुश्रुत प्राचीन भारत के प्रसिद्ध चिकित्साशास्त्री तथा शल्य चिकित्सक थे। इन्हें “शल्य चिकित्सा का जनक” माना जाता है। सुश्रुत ने प्रसिद्ध चिकित्सकीय ग्रंथ ‘सुश्रुत संहिता’ की रचना की थी। इस ग्रंथ में शल्य क्रियाओं के लिए आवश्यक यंत्रों (साधनों) तथा शस्त्रों (उपकरणों) आदि का विस्तार से वर्णन किया गया है।